लखनऊ। ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती के अवसर पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। बतादें कि प्रत्येक वर्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पावन जयंती के अवसर पर भाषा विश्वविद्यालय के अटल हॉल में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ द्वारा किया गया।
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संगोष्ठी का आयोजन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो नरेन्द्र बहादुर सिंह के मार्गदर्शन में हुआ। संगोष्ठी की शुरुआत मुख्य अतिथि को शॉल ओढ़ाकर और प्रतीक चिन्ह भेंट किया गया। कार्यक्रम की रूपरेखा शोधपीठ के समन्वयक डॉ लक्ष्मण सिंह ने रखी। डॉ सिंह ने संगोष्ठी की प्रस्तावना रखते हुए कार्यक्रम के बारे में अवगत कराया। कार्यक्रम की अगली श्रृंखला में शोधार्थियों ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के ऊपर शोध पत्र प्रस्तुत किया।
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कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर राजशरण शाही ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि विदेशियों ने हमारे ऊपर शासन शस्त्र से नहीं बल्कि शास्त्र से किया गया। विभन्न पाश्चत्य विद्वानों ने आंग्ल के माध्यम से भारत की गुलाम बनाने के लिए किया गया। भारत के लोगों को उनकी मूल चेतना से काटना है तो उनकी भाषा से काटना चाहिए। भारत में आज भी भाषाई अस्मिता के लिए आज भी संघर्ष करना पड़ रहा है।
प्रो शाही ने भाषा अनुवादक के रूप में पहचान को बंद करने का आह्वान किया गया। उन्होंने मूल भाषा से सदैव जुड़ने के लिए सभी श्रोताओं से आग्रह किया। भारत ने हमेशा लोक जीवन के अनुरूप कार्य किया है। भारत की संस्कृति समन्वय की है। प्रो शाही ने सर्वाइवल ऑफ़ द वीकेष्ट के चिंतन पर बल दिया गया।
कार्यक्रम में वक्तव्य देते हुए कुलपति प्रो नरेन्द्र बहादुर सिंह ने कहा कि हमें पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन संघर्ष से सीखना चाहिए। कुलपति ने पंडित जी के अंत्योदय के सूत्र को आधुनिक जीवन में लोक कल्याणकारी बताया। भारत के चिंतन अन्तिम व्यक्ति के उपर आधारित है। संगोष्ठी का धन्यवाद ज्ञापन शोधपीठ की निदेशक प्रो चन्दना डे ने किया।
कार्यक्रम का संचालन इतिहास विभाग की विषय प्रभारी डॉ पूनम चौधरी ने किया। संगोष्ठी में पण्डित दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ के सदस्य डॉ मनीष कुमार, प्रो एहतेशाम अहमद, डॉ रूचिता चौधरी, डॉ राहुल मिश्रा, डॉ काजिम रिज़वी सहित विश्वविद्यालय के तमाम शिक्षक और विद्यार्थी उपस्थित रहे।