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दिल्ली मेट्रो में एक नयी तस्वीर…टिफिन बॉक्स से…

4 दिसंबर वैसे तो दिल्ली में एमसीडी के होने वाले चुनाव के कारण सुर्खियों में बना रहा दिन था। किन्तु इसी दिन एक घटना ओर घटी। दिल्ली #मेट्रो में गलती से एक युवक के टिफिन बॉक्स से खाना गिर गया था। जिसे उसने बिना देरी किए अपने रूमाल से पूरी तरह से साफ कर दिया। युवक का ये अंदाज लोगों को खूब पसंद आया। फर्श की #सफाई करते युवक की तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं। जहां हमारे समाज में एक तरफ ऐसे लोगों की भरमार है जो गंदगी फैलाने का कोई मौका नहीं छोड़ते है वहीं दूसरी ओर इस तरह का एक युवक का कार्य लोगों को बहुत ही अलग अनुभव दे गया।

बच्चें दो ही अच्छे!

जहां हम सभी हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी के स्वच्छ भारत अभियान के आरंभ होने के बाद सफाई के नाम पर दो अक्टूबर को बस तस्वीरों और भीड़ का हिस्सा बनने के लिए अपने आसपास सफाई करते हुए स्वयं को संतुष्टि देने का कार्य करते ‌नजर आ जाते‌ थे बहुत से भारतीय। वहीं इस समय‌ में कुछ महान अनुभव वाले व्यक्तिगण साफ़ स्थान को‌ गन्दा कर फिर साफ करने का अभिनय करते नजर आते थे। यह सब केवल समाचार और सोशल मीडिया के लिए किया जाता था। वहां एक ऐसा दृश्य जो किसी सोशल मीडिया के तस्वीर के लिए नहीं ना किसी योजना का हिस्सा बनने के लिए हो रही हो, केवल इसलिए हो रही है क्योंकि जिस देश और शहर में हम रहते है उसे साफ रखना हमारी जिम्मेदारी बनती है।

जहां एक ओर #एमसीडी का चुनाव का प्रचार करने वाले दिल्ली की सफाई का जिम्मा लेने के लिए जोर शोर से प्रचार करते हुए जिस गंदगी को साफ करने के लिए पांच साल की जिम्मेदारी दिल्ली वालों से लेने के लिए जगह-जगह पैम्फलेट और कागजों की बाहर कर के गंदगी बढ़ा रहे थे। वही दूसरी ओर एक युवक ने दिल्ली में अपने किए कार्य से #समाज में अलग ही जागरूकता ला दी।

क्या हमारे समाज के ऐसे युवकों को आगे ला कर ऐसे स्थान प्रदान नहीं करनी चाहिए जिससे देश की जनता को कुछ सीखने का मौका प्राप्त हो। क्यों हमारे देश में होने वाले चुनावों में अक्सर गलियां, शहर और देश को कूड़ेदान बना दिया जाता है। जगह-जगह पेपर फैलें क्यों नज़र आते है। क्या देश और शहर को साफ रखना चुनाव में खड़े अभिभावकों की जिम्मेदारी नहीं बनती क्यों वहां अपने साथ प्रचार करने वाले सभी व्यक्तियों को यह नहीं समझाते कि कल हम जिस देश के लिए कार्य करने की जिम्मेदारी अपने देश के लोगों से मांगा रहें है, उस देश को आज साफ रखने की जिम्मेदारी हमारी भी बनती है।

हमारे देश में हर साल सभी शहरों द्वारा साफ़ सफाई के नाम पर‌ करोड़ों का बजट सरकार द्वारा तैयार किया जाता है चाहे वह किसी नदी की सफाई हो या किसी सड़क या स्थान की करोड़ों का बजट पानी की तरह सफाई के नाम पर बर्बाद किया जाता है। फिर भी अंत में अधिकतर देखने को मिलता है कि करोड़ों के बजट के बावजूद भी स्थिति में कुछ फर्क नहीं आता है। जिसके कारण आज हमारे देश में कचड़ो के ढेर बढ़ते जा रहे हैं। जिसका नुकसान हमारे स्वास्थ्य को भी होता है।

आँखे

हम अपने देश ‌की बुराई करते नजर आते हैं अक्सर हम बोलते हैं कि हमारे देश को बाकी देशों की तरह साफ सुथरा नहीं है किंतु हम उसे साफ रखने में अपनी कितनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं इस पर हम कभी विचार करना जरूरी नहीं समझते हैं सरकार को हमारे द्वारा फैलाई जाने वाली गंदगी से कितना नुकसान होता है यह हम कभी नहीं सोचते हैं। केवल #गुटखा खाकर थूकने से ही भारतीय रेलवे हर साल गुटखा थूकने के बाद हुई गंदगी को साफ करने पर करीब 1200 करोड़ रुपये और लाखों लीटर पानी खर्च करता है।

यह आंकड़ा किसी को भी चौंका सकता है लेकिन देश में #रेलवे स्टेशन और ट्रेनों की संख्या के साथ-साथ यात्रियों की तादाद को देखते हुए यह रकम जायज नजर आती है। कोरोना काल में लोगों को साफ-सफाई का खास ध्यान रखने को कहा गया, बावजूद इसके लोगों ने अपने बर्ताव में जरा भी सुधार नहीं किया। जब हमारे देश के नागरिक अपनी सुविधा को बस ध्यान में रखते हुए कही भी गंदगी करने से बाज नहीं आते तो सरकार को करोड़ों रूपए खर्च कर सफाई रखने की कोशिश करनी पड़ती है। किंतु बड़ी जनसंख्या के चलते यह कार्य कई बार असफलता की ओर बढ़ जाता है।

नियमित रूप से हिरण के खून से स्नान कर रहे पुतिन

हम अपने देश के किसी भी वर्ग से संबंध रखते हो अपने देश को‌ गंदा रखने ‌में सहयोग देते‌ हो‌ ना हो किन्तु सफाई में हमारा कोई सहयोग नहीं रहता है। हम साफ सफाई रखने की बात करते हैं किंतु कितने लोग होते हैं जो सड़क पर फैला हुआ कचरा उठा उसे कूड़ेदान में डाल दें या किसी स्थान को गलती से उनके गंदा होने पर साफ कर दें। आप कहेंगे शायद एक भी नहीं। ऐसे में यदि कोई ऐसा करता हुआ नजर आ जाए तो आश्चर्य होने से आप खुद को नहीं रोक पाएंगे क्योंकि यह किसी फिल्म का दृश्य नहीं है जो किसी नायक द्वारा निभाया जा रहा हूं और किसी डायरेक्टर द्वारा उसकी डायरेक्टिंग की जा रही हो यह एक असल दृश्य है जो एक असल दुनिया में एक युवक द्वारा निभाए जा रहा है। जिसका विचार हम अपने सपनों में भी नहीं करते वह कार्य एक युवक सच में कर रहा है। ऐसे युवक आज की युवा पीढ़ी के नायक बन उनको वह रास्ता बतला सकते है जो देश को तरक्की की राह दिखाएं।

           राखी सरोज

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