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बच्चें दो ही अच्छे!

आज अपनी कामवाली बाई से कुछ बातें हुई! आज उसने पाँच हज़ार रुपये एडवांस मांगे, मैंने ऐसे ही पूछा किस लिए चाहिए? तो बोली, मैडम रूम का भाड़ा देना है! इस महीने दो बच्चें बिमार हो गए तो पगार उनकी दवाई में खर्च हो गया। क्या बताऊँ..जब वो गरीब दो सिरे जोड़ नहीं पाई तो आज एक माँ होकर उसके मुँह से निकल गया, मैडम एक दो बच्चें को मौत आ जाए तो जान छूटे। मैं हैरान सी सुनकर सन्न रह गई।

वैसे उसके चार बच्चें है। मैंने कहा, इस महंगाई के ज़माने में इतने बच्चें क्यूँ पैदा कर लिए! और आज अपने ही बच्चों को बद्दुआ दे रही हो? तो बोली, अरे उपरवाले की देन है मैडम, हो गए और हमारे बच्चें तो पल जाते है! जो बनाकर देते है खा लेते है, जो लाकर देते है पहन लेते है; आपके बच्चों की तरह कोई लाड़ नहीं करते। वो खुद तो पति-पत्नी मजदूरी और घर काम करते है पर उसका बड़ा बेटा भी स्विपर का काम करता है। पढ़ाई के नाम पर एक लड़की सातवीं कक्षा तक पढ़ी। बाकी बच्चों को लगता है अपना बुढ़ापा पालने के लिए पैदा किए है।

मुझे गुस्सा भी आया और ताज्जुब भी हुआ। जब आप बच्चों को अच्छी परवरिश, अच्छा खाना, अच्छे कपड़े, अच्छा एज्युकेशन और अच्छी ज़िंदगी देने की हैसियत नहीं रखते तो क्या हक है आपको बच्चों को धरती पर कीड़े मकोड़े की तरह जन्म देकर उपरवाले के भरोसे छोड़ देने का? बच्चें तो नहीं कहते हमें पैदा करो। अपनी गलती, अपने अज्ञान और रंग रैलियों का इल्ज़ाम उपरवाले पर थोपकर बच्चों को बेहाल ज़िंदगी की सज़ा देना कहाँ का न्याय है? एक, या दो बच्चें पैदा करके आप भी अपने बच्चों को वो लाड़ और सुख सुविधा दीजिए न जो हम अपने बच्चों को दे रहे है।

जितनी हैसियत हो बच्चें भी उस हिसाब से पैदा करने चाहिए, भले एक ही बच्चा हो! बाकी तीन के हिस्से की खुशियाँ एक को देकर एक ज़िंदगी आबाद करना सही होगा, या चार बच्चें पैदा करके चारों से उनकी खुशियाँ छीनना? पहले अपनी जेब टटोलिए उसके बाद बच्चों की लाईन लगाईये।

भावना ठाकर ‘भावु’

देश में बहुत सारे मुद्दों में एक मुद्दा बढ़ती हुई आबादी भी अहम मुद्दा है, ऐसे में कई लोग बिना सोचे, बिना अपने बैंक बेलेंस की परवाह किए और बिना ये सोचे कि परिवार वहन कैसे होगा चार पाँच बच्चों की लाईन लगा लेते है। फिर भले चाहे बच्चें फटेहाल हालत में कुपोषण का शिकार होते पल रहे हो।

परिवार नियोजन में सबसे पहला मुद्दा हर दंपत्ति का आर्थिक स्थिति को लेकर होता है। बच्चे पैदा करना बड़ी बात नहीं, आप बच्चों को किस तरह की परवरिश देना चाहते हो ये बात बहुत मायने रखती है। सोचो घर में आप एक ही कमाने वाले है और तीन चार बच्चें पैदा कर लेते है तो न तो आप खर्चे झेल पाओगे न बच्चें ठीक से पले बढ़ेंगे। इसलिए सबसे पहले अपनी आय को महेत्व देते हुए ये निर्णय लीजिए की बच्चे को जन्म देने के बाद आप सारे खर्च उठाने के काबिल है ? क्यूँकि परिवार नियोजन में आर्थिक परिस्थिति बहुत मायने रखती है। आजकल एज्युकेशन से लेकर हर चीज़ महंगी हो गई है। no doubt सबके बच्चें हर हाल में पल ही जाते है, पर एक अभिभावक के नाते आपका फ़र्ज़ बनता है कि अपने बच्चों को आला दरज्जे की सुख सुविधा देकर पाले, पोषें।

फ़ैमिली प्लानिंग से अपने परिवार को छोटा रखें, एक या दो बच्चे आराम से पल जाते है। बच्चों के खानपान, परवरिश और शिक्षा पर जितना खर्च करने में आप सक्षम हो उतने ही बच्चों की प्लानिंग करें, और दो बच्चों के बीच तीन चार साल का फासला रखें ताकि एक बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाए कुछ खर्चे बंद हो जाए उसके बाद दूसरे बच्चे के लिए सोचें। और अगर आपको लगे की एक बच्चे में ही आप खर्चे उठाने में थक गए है तो एक ही काफ़ी है, दूसरे बच्चे के बारे में सोचिए भी मत।

क्यूँकि बच्चें पैदा कर लेना ही काफ़ी नहीं, उस बच्चे की ज़िंदगी का सवाल है! अगर अच्छी #परवरिश नहीं दे सकते तो बच्चे पैदा करनेका आपको कोई हक नहीं। तभी तो परिवार नियोजन वालों ने ये सूत्र रखा है कि “छोटा परिवार सुखी परिवार” फैमिली प्लानिंग और आर्थिक स्थिति के बीच मजबूत संबंध है इसलिए सोचें, समझे फिर बच्चें पैदा करें।

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