प्रख्यात अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने चुनावी बॉण्ड योजना को रद्द करने के उच्चतम न्यायालय के हालिया फैसले का सोमवार को स्वागत किया और इस योजना को घोटाला बताकर इसकी निंदा की।
सेन ने अमेरिका के मैसाचुसेट्स से ‘पीटीआई-भाषा’ से बात की और कहा कि इस कदम से चुनाव के संदर्भ में लोगों के बीच अधिक पारदर्शिता आएगी। उन्होंने कहा, ‘‘चुनावी बॉण्ड एक घोटाला था और मुझे खुशी है कि अब उसे हटा दिया गया है। मुझे उम्मीद है कि लोग चुनाव के संदर्भ में एक-दूसरे को जो समर्थन देते हैं, उसमें अधिक पारदर्शिता आएगी।’’
उच्चतम न्यायालय ने इस महीने की शुरुआत में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए राजनीति के वित्तपोषण के लिए लाई गई चुनावी बॉण्ड योजना को ‘‘असंवैधानिक’’ करार देते हुए निरस्त कर दिया था और चंदा देने वालों, बॉण्ड के मूल्यों और उनके प्राप्तकर्ताओं की जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था।
प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने 2018 की इस योजना को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं सूचना के संवैधानिक अधिकारों का “उल्लंघन” बताया। शीर्ष अदालत केंद्र की इस दलील से सहमत नहीं थी कि इस योजना का उद्देश्य राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाना और काले धन पर अंकुश लगाना था।
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लोकसभा चुनाव से पहले आए इस फैसले में न्यायालय ने इस योजना को तत्काल बंद करने तथा इस योजना के लिए अधिकृत वित्तीय संस्थान ‘भारतीय स्टेट बैंक’ (एसबीआई) को 12 अप्रैल, 2019 से अब तक खरीदे गए चुनावी बॉण्ड का विस्तृत ब्योरा छह मार्च तक निर्वाचन आयोग को सौंपने का भी निर्देश दिया।
सेन ने कहा, ‘‘भारत में चुनावी प्रणाली दलगत राजनीति की प्रकृति से काफी प्रभावित है, जिससे आम लोगों के लिए यह सुनना बहुत कठिन हो जाता है कि उन्हें चुनाव में भाग लेना चाहिए।’’ अर्थशास्त्री ने कहा कि देश की चुनावी प्रणाली इस बात से प्रभावित होती है कि सरकार विपक्षी दलों के साथ कैसा व्यवहार करती है।