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नवयुग कन्या महाविद्यालय में विज्ञान एवं पर्यावरण विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन 

लखनऊ। आज राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के उपलक्ष्य पर नवयुग कन्या महाविद्यालय लखनऊ एवं स्टूडेंट्स फॉर डेवलपमेंट के संयुक्त तत्वावधान में भारतीय ज्ञान परंपरा: सतत भविष्य के लिए विज्ञान एवं पर्यावरण विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि के रूप में महेंद्र प्रताप सिंह प्रख्यात पर्यावरणविद्, मुख्य वक्ता प्रो वेंकटेश दत्ता, पर्यावरण विज्ञान विभाग भीम राव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय लखनऊ, डा इंद्रेश शुक्ला रसायन विज्ञान विभाग बीएसएनवी पीजी कॉलेज लखनऊ मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती पूजन एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ।

नवयुग कन्या महाविद्यालय में विज्ञान एवं पर्यावरण विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन 

कार्यक्रम के प्रस्तावक के रूप में महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो मंजुला उपाध्याय ने अतिथियों का औपचारिक परिचय देते हुए पर्यावरण और समाज के बीच के संबंध पर प्रकाश डाला। उन्होंने विकास के लिए प्रकृति को कम से कम हानि पहुंचाकर विकास के पथ पर अग्रसर होने का सुझाव दिया। प्रथम वक्ता डा इंद्रेश कुमार ने विज्ञान को नवाचार का विषय बताया।उन्होंने विज्ञान दिवस के इतिहास को बताते हुए उसको भारतीय ज्ञान परंपरा से जोड़ा।

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उन्होंने स्टूडेंट फॉर डेवलपमेंट संस्था की परिकल्पना के बारे में जानकारी देते हुए पर्यावरण संरक्षण में विद्यार्थी वर्ग के महत्त्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डाला। भारतीय ज्ञान परंपरा में पर्यावरण सरंक्षण का इतिहास काफी पुराना है और उसी की अवधारणा में जन, जल, जमीन को संरक्षित करने के मूल्यों पर हमेशा से बल दिया गया हैं।

नवयुग कन्या महाविद्यालय में विज्ञान एवं पर्यावरण विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन 

मुख्य अतिथि डा महेंद्र प्रताप सिंह ने अपने वक्तव्य में प्राचीन सभ्यता में विज्ञान की कई संकल्पनाओं का उदाहरण देते हुए विज्ञान की महत्ता पर प्रकाश डाला। शून्य की अवधारणा, पुष्पक विमान, राम सेतु ज्योतिष शास्त्र, गुरुत्वाकर्षण, नागार्जुन, भास्कराचार्य के योगदान पर प्रकाश डालते हुए उससे पर्यावरण संरक्षण से जोड़ा। उन्होंने पाश्चात्य संस्कृति के योगदान को स्वीकारा लेकिन अपनी संस्कृति में उपस्थित उदा हरण को जान ने और उसके महत्व पर भी प्रकाश डाला।

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सूर्य, अंतरिक्ष से जुड़े योगदान को बताते हुए भारत के विश्व गुरु की अवधारणा को सही माना। धरती के संसाधनों का दोहन पर्यावरण के लिए सबसे घातक बताया। उन्होंने “पल बनाम कल” की विचारधारा को आज की व्यवस्था बताया। वृक्षारोपण, जल स्रोतों का संरक्षण, प्लास्टिक का कम से कम प्रयोग को अपनी संस्कृति का हिस्सा बनाने पर अधिक बल दिया।उन्होंने राम चरित मानस को चौपाई “तुलसी तरुबर बिबिध सुहाए। कहुँ कहुँ सियँ कहुँ लखन लगाए।। बट छायाँ बेदिका बनाई। सियँ निज पानि सरोज सुहाई।।” द्वारा वृक्षारोपण के इतिहास और महत्व को बताया।

नवयुग कन्या महाविद्यालय में विज्ञान एवं पर्यावरण विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन 

मुख्य वक्ता प्रो दत्ता ने अपना वक्तव्य शांति मंत्र से शुरू किया। उन्होंने ऋग्वेद से लेकर पद्म पुराण में पर्यावरण संरक्षण के उल्लेख के बारे में बताया। शिकागो में विवेकानंद द्वारा शून्य पर दिए गए भाषण का उल्लेख करते हुए बताया कि किस प्रकार जेआरडी टाटा द्वारा विवेकानंद जी के सहयोग से इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की स्थापना की गई। पृथ्वी के उद्गम में छठा विनाश के काल के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि पृथ्वी के उद्गम की जानकारी दी।

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उन्होंने भगवान शिव का उदाहरण देते हुए उनके शीश को हिमालय, जटाओं को जंगल की उपाधि दी। उन्होंने भगवान की नई परिभाषा देते हुए भगवान को भूमि, गगन, वायु,अग्नि, नीर को ही भगवान माना। गंगा के उद्गम और उसके इतिहास को समझाते हुए उन्होंने हिम युग की चर्चा की।उन्होंने बताया किस प्रकार हिम युग के बाद नदियों, जल प्रपात, डेल्टा के निर्माण के बारे में बताया। गंगा जल की शुद्धता के बारे में उन्होंने बताया किस प्रकार बैक्टरीयोफेज, डिसोल्व्ड ऑक्सीजन की वजह से गंगा जल कभी खराब नहीं होता है।

उन्होंने हड़प्पा संस्कृति को धोलावीरा साइट का उल्लेख करते हुए बताया कि किस प्रकार वहां एक व्यवथित टाउनशिप, स्नानगार, कुएं पाए गए थे। उन्होंने बताया कि किस प्रकार मॉनसून प्रक्रिया, इंद्रधनुष का उल्लेख महाभारत में किया गया है। प्राच्य संस्कृति का उदाहरण देते हुए प्रो दत्ता ने बताया कि वैदिक काल में सूर्य के प्रकाश में सात रंग की किरणें होती है, ब्रह्मांड पुराण में बादल फटने, बवंडर बनने की प्रक्रिया का उल्लेख है। उन्होंने अपनी गोमती यात्रा की यादें भी साझा की और नदियों को बचाने के लिए किए गए प्रयासों से जुड़े अनुभवों को भी साझा किया।

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प्रो दत्ता ने वक्तव्य के अंत में प्लास्टिक उत्पादों का सही तरीके से निस्तारण करने सुझाव दिए। प्रो.दत्ता के वक्तव्य का मुख्य उद्देश्य अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति में उल्लेखित पर्यावरण संरक्षण के मूल्यों को समझने और उसपर गर्व करने को आज के समय की आवश्यकता बताया। धन्यवाद ज्ञापन जंतु विज्ञान की अध्यक्षा प्रो ऋचा शुक्ला द्वारा किया गया। कार्यक्रम का सफल आयोजन स्टूडेंट्स फॉर डेवलपमेंट लखनऊ प्रांत की ओर से शाश्वत अवस्थी, रमाकांत द्वारा मंच संचालन एवं महाविद्यालय के विज्ञान संकाय सदस्यों के सहयोग से पूर्ण किया गया।कार्यक्रम में विज्ञान संकाय की समस्त छात्राएं उपस्थित रही। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।

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