मकर संक्रांति पर मकर राशि में कई महत्वपूर्ण ग्रह एक साथ गोचर करेंगे। इस दिन सूर्य, शनि, गुरु, बुध और चंद्रमा मकर राशि में रहेंगे। जो एक शुभ योग का निर्माण करते हैं। इसीलिए इस दिन किया गया दान और स्नान जीवन में बहुत ही पुण्य फल प्रदान करता है और सुख समृद्धि लाता है।
इस वर्ष मकर संक्रांति पर सूर्य, शनि, गुरु, बुध और चंद्रमा मकर राशि में होंगे। इस स्थिति को मकर संक्रांति के लिए बेहद शुभ फलदायी माना गया है। हमारे ज्योतिष गणना के अनुसार इस वर्ष 14 जनवरी को दिन में 2:37 मिनट से प्रारम्भ हो रहा है।जिससे मकर संक्रांति व खिचड़ी का त्यौहार मनाया जायेगा एवं इस दिन से ही मकर राशि में सूर्य देव का प्रवेश हो जायेंगा उसके बाद गुरु जी ने मकर संक्रांति पर प्रकाश डालते हुए बोले की प्रति वर्ष जब सूर्य देव हेमन्त ऋतु कालीन के पौष मास में उत्तरायण हो कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तों सूर्य देव के इस संक्रांति को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है एवं इसी दिन मकर संक्रांति का त्यौहार भी मनाया जाता है।
हमारे पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति का दिन देवताओं का व दैत्यों का रात्रि बताया गया है। इस दिन सभी व्यक्ति को गंगा स्नान व पूजन पाठ करना चाहिए क्यों की पुराणों में वर्णन आया है कि इस दिन का किया हुआ पूजन पाठ व दान हमें सौ गुना होकर वापस लौटता है। इस दिन जो भी व्यक्ति घी एवं कम्बल का दान करतें हैं उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाभारत काल में भीष्म पितामह जी नें अपना शरीर त्यागने का दिन मकर संक्रांति का ही दिन तय किये थें। इसी दिन ही पतित पावनी माँ गंगा जी ने भगीरथ जी के पीछे पीछे चल कर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई जाकर सागर में मिली थी फिर से उन्होंने कहाँ कि इस दिन क्यों तिल दान किया जाता है।
इसका वर्णन हमारे श्रीमद्भागवत एवं देवी पुराण में आया है जो कि इस प्रकार हैं शनि देव का अपने पिता सूर्य देव से वैर भाव था। क्योंकि सूर्य देव ने उनकी माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद भाव करते हुए देख लिए थे। इसी बात से नराज हो कर सूर्य देव नें संज्ञा और उनके पुत्र शनि देव को अपने से अलग कर दियें थें इसके वजह से शनि देव और उनकी माता छाया जी नें सूर्य देव को कुष्ठ रोगी होने का शाप दे दिये थे। उसके बाद यमराज जी नें अपने पिता सूर्य देव को कुष्ठ रोगी से पीड़ित देख कर काफी दुःखी हुए फिर यमराज जी नें अपने पिता सूर्य देव को कुष्ठ रोग से मुक्ति होने लिए के लिए तपस्या किये लेकिन सूर्य देव नें क्रोधित होकर शनि देव की राशि व घर कुम्भ को जला कर भस्म कर दियें।
इस वजह से शनि देव और उनकी माता छाया जी को कष्ट होने लगा तब यमराज जी नें अपनी सौतेली माँ और भाई शनि देव को कष्ट में देख कर उनके कल्याण की कामना के लिए पिता सूर्य देव को समझाया तब जाकर सूर्य देव प्रसन्न हो कर शनि देव की राशि व घर कुम्भ में पहुंचे, लेकिन शनि देव का घर जल जानें के कारण काला तिल के अलावा उनके पास और कुछ नहीं था। इसी वजह से शनि देव ने अपने पिता सूर्य देव को काला तिल से ही पूजन किये।
उस पूजन से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने अपने पुत्र शनि देव को आशीर्वाद दियें कि आज से शनि का दूसरा घर मकर राशि होगा व मकर राशि में मेरे आनें पर धन धान्य से भर जायेंगा इसी वजह से शनि देव को काला तिल सबसे प्रिय हैं क्यों की उसी काला तिल से के वजह से उन्हें सम्पूर्ण वैभव प्राप्त हुआ था व उनके पिता सूर्य देव काला तिल के पूजन से प्रसन्न हुए थें एवं इसी कारण वस मकर संक्रांति के दिन काला तिल से भगवान सूर्य देव व उनके पुत्र शनि देव का पूजन करने का प्रचलन प्रारम्भ हुआ था व मकर संक्रांति इव खिचड़ी के दिन काला तिल का दान करने का भी नियम प्रचलित हुआ।
इस दिन सूर्यदेव के साथ इन सब ग्रहों का पूजन करें। सूर्यदेव के साथ नवग्रहों का विधि-विधान से पूजा करने पर व्यक्ति को मनचाहा वरदान प्राप्त होता है। मकर संक्रांति के दिन अगर दान किया जाए तो इसका महत्व बेहद विशेष होता है। इस दिन व्यक्ति को अपने सामर्थ्यनुसार दान देना चाहिए। साथ ही पवित्र नदियों में स्नान करना चाहिए। इस दिन खिचड़ी का दान देना विशेष फलदायी माना जाता है। साथ ही गुड़-तिल, रेवड़ी, गजक आदि का प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर चलता है, इस दौरान सूर्य की किरणों को अशुभ माना गया है, लेकिन जब सूर्य पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगता है, तब उसकी किरणें शुभता, सेहत और शांति को बढ़ाती हैं। जो आध्यात्मिक क्रियाओं से जुड़े हैं उन्हें शांति और सिद्धि प्राप्त होती है। अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो पूर्व के कड़वे अनुभवों को भुलकर मनुष्य आगे की ओर बढ़ता है।
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