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पण्डित कविराज संस्कृत के विद्वान और महान दार्शनिक थे : प्रो. हरेराम त्रिपाठी

वाराणसी। महामहोपाध्याय अतिविशिष्ट आचार्य पद्मविभूषण पं गोपीनाथ कविराज का जन्म ढाका (बंग्लादेश) में बैकुंठनाथ बागची के घर जन्म हुआ था। उन्हे सम्मान में ‘कविराज’ कहा जाता था। कविराज जी सम्पूर्ण रुप से शास्त्र थे, जिन्हे साहित्य, व्याकरण, वेद वेदान्त एवं योगतंत्रागम आदि शास्त्रों के प्रकांड विद्वान के रूप में सम्पूर्ण विश्व वांगमय जानता है।

संस्कृत के तन्त्र विद्या के एक मात्र मानक विद्वान के रुप में प्रतिष्ठित कविराज जी विद्वानों के लिये एवं संस्कृत जगत के कर्णधारों के लिये आदर्श पुरुष के रुप में जाने जाते हैं। इस दीर्घकाल में प्राच्य तथा पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान की विशिष्ट चिन्तन पद्धतियोंका गहन अनुशीलन कर, दर्शन और इतिहास के क्षेत्र में जो अंशदान किया है उससे मानव संस्कृति तथा साधना की अंतर्धारा पर नवीन प्रकाश एवं नवीन दृष्टि पड़ी है।


उक्त विचार सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के योगसाधना केन्द्र में कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी की अध्यक्षता में आज सांख्ययोगतंत्रागम विभाग के अतिविशिष्ट आचार्य पद्म विभूषण महामहोपाध्याय पं गोपीनाथ कविराज जी की 134वीं जयंती पर व्यक्त किया। कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने कहा कि 07 सितंबर 1887 को जन्में पण्डित कविराज जी संस्कृत के विद्वान और महान दार्शनिक थे।

1914 में पुस्तकालयाध्यक्ष से आरम्भ करते हुये 1923 से 37 तक वाराणसी के शासकीय संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य रहे इस अवधि में सरस्वती भवन ग्रंथमाला के सम्पादक भी रहे। ऐसे विशिष्ट विद्वानों के व्यक्तित्व कृतित्व पर एक वृत्तचित्र का निर्माण कर नई पीढ़ी के लिये प्रेरणादायक सिद्ध होगी।ऐसे श्रेष्ठ महान विभूति, देवतुल्य आचार्य के लिये कृत्य प्रकाश श्रद्धांजलि जैसा होगा।

मुख्य वक्ता प्रो. रामकिशोर त्रिपाठी ने कहा कि महामहोपाध्याय पं. गोपीनाथ कविराज वर्तमान युग के विश्वविख्यात भारतीय प्राच्यविद तथा मनीषी रहे हैं। इनकी ज्ञान-साधना का क्रम वर्तमान शताब्दी के प्रथम दशक से आरम्भ हुआ और प्रयाण काल तक अबाधरूप से चलता रहा।प्राचीनता के संपोषक एवं नवीनता के पुरस्कर्ता के रुप में कविराज महोदय का विराट व्यक्तित्व संधिकाल की उन सम्पूर्ण विशेषताओं से समन्वित है,जिनसे जातीय जीवन प्रगति-पथ पर अग्रसर होने का संबल प्राप्त करता रहा है।

प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि ममत,वामन एवं अभिनवगुप्त का साहित्य के प्रति अविस्मरणीय योगदान है, इन विद्वानो के साहित्य शास्त्र को आत्मसात् करने वाले पं. कविराज जी साक्षात् प्रतीक थे। जिस तरह से काव्य विविध गुणों से युक्त, दोषरहित एवं अलंकार परिपूर्ण होता है उसी प्रकार से कविराज जी सांसारिक दोषों से मुक्त एवं आध्यत्मिक गुणों से युक्त थे। स्वागत भाषण दर्शन संकायाध्यक्ष प्रो सुधाकर मिश्र, धन्यवाद ज्ञापन प्रो. ललित कुमार चौबे ने किया। संचालन प्रो. राघवेंद्र जी दुबे ने किया।

जयंती कार्यक्रम के प्रारम्भ में वैदिकमंगलाचरण डॉ. विजय कुमार शर्मा, पौराणिक मंगलाचरण पं अखिलेश मिश्र ने किया। अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती एवं कविराज जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीपप्रज्जवलन किया गया तथा मंचस्थ अतिथियों का माल्यार्पण कर स्वागत-अभिनंदन किया गया। उस दौरान कुलसचिव डॉ. ओमप्रकाश, प्रो रामपूजन पान्डेय, प्रो. हीरककांति चक्रवर्ती, प्रो. महेंद्र पान्डेय, प्रो. कमलकांत त्रिपाठी, प्रो रमेश प्रसाद, प्रो शम्भु नाथ शुक्ल, प्रो. ललित कुमार चौबे, प्रो शैलेश कुमार मिश्र, प्रो. हीरक कान्ति, डॉ. दिनेश कुमार गर्ग, डॉ. विजय पान्डेय उपस्थित थे।

रिपोर्ट-संजय गुप्ता

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