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प्रविंद जगन्नाथ की काशी यात्रा

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

अनेक ऐसे देश हैं, जिनसे भारत के रिश्ते दोस्ती नहीं बल्कि बन्धुत्व पर आधारित हैं। इसका अनुभव शासन,सत्ता,विदेश नीति ही नहीं, समाज के भी स्तर पर किया जाता है। एक दूसरे देशों के सुख दुख का भावनात्मक असर होता है। भौगोलिक दूरी होने के बावजूद भावनात्मक लगाव बना रहता है। कुछ दिन पहले नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा काशी यात्रा पर आए थे। उन्होंने कहा था कि श्री काशी विश्वनाथ धाम व यहां से गंगा मैया के दर्शन कर उनका जीवन धन्य हुआ। कुछ दिन के अंतराल पर मॉरिशस प्रविंद्र जगन्नाथ काशी पहुंचे। मॉरिसस को भारत से गए लोगों ने सजाया सँवारा है। कई पीढ़ी पहले श्रमिक बन कर भारत से गए लोगों ने ही इस भूखण्ड को इंसानों के रहने लायक बनाया। आज यहॉ सभी आधुनिक संसाधन उपलब्ध हैं।

सामाजिक आधार पर भारत और मॉरीशस का रिश्ता करीब एक सौ सत्तर वर्ष पुराना है। प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम से सात आठ वर्ष पहले अंग्रेजो ने पूर्वी उत्तर प्रदेश से श्रमिको को मॉरीशस भेजने शुरुआत की थी। यह क्रम करीब सत्तर वर्षो तक चलता रहा। गिरमिटिया मजदूर के रूप में पचास लाख से ज्यादा मजदूर पूर्वी उत्तर प्रदेश से गए थे।

पोर्टलुइस के अस्थाई निवास को अप्रवासी घाट कहा जाता है। कई पीढ़ी बीतने के बावजूद यहां के लोग भारत से अपने जुड़ाव को भूलना नहीं चाहते है। वहां के सामान्य नागरिक से लेकर राष्ट्रपति तक जब अपने पूर्वजों का गांव तलाश करते है,तब भारत को खुशी और गर्व की अनुभूति होती है।  यह संयोग है कि यूपी के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल मॉरिसस में आयोजित अप्रवासी दिवस समारोह में सहभागी हो चुके है।भारत और मॉरीशस के संबन्ध मात्र दो मित्र देशों जैसे ही नहीं है। बल्कि उससे भी आगे दोनों देशों के बीच बंधुत्व भाव भी है। वहां की करीब सत्तर प्रतिशत आबादी भारतीय मूल की है। उन्हें इस बात का गर्व है, उन्होंने अपनी भारतीय धरोहर को सहेज कर भी रखा है। प्रयागराज कुंभ में वहां के राष्ट्रपति सहित हजारों लोग पवित्र स्नान हेतु आये थे। भारत के हजारों लोग समुद्री यात्रा के बाद पहली बार यहां पहुंचे थे। जहाँ उनके पहले कदम पड़े उसी को प्रवासी घाट कहा जाता है। यह वैश्विक धरोहर है। उनकी अगली पीढ़ियों ने भारतीय संस्कृति को सदैव प्रतिष्ठित रखा।

कुछ वर्ष पहले सवाने जनपद में मां दुर्गा की विशाल प्रतिमा को विधि विधान के साथ स्थापित किया गया था। यह तीर्थाटन का महत्वपूर्व स्थान बन गया। सवाने जिले में ही गंगा तलाओ नाम की झील है। यह गंगा जी प्रतीक रूप में सम्मानित है। प्रत्येक पर्वो पर लोग इसके जल से स्नान करते है। इसे पवित्र झील माना जाता है। इसी स्थान पर एक सुंदर सागर शिव मंदिर की स्थापना भी की गई। करीब सात वर्ष पहले यहां भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित की गई थी। यह भी तीर्थाटन का स्थल बन गया। स्पष्ट है कि इस देश का माहौल भारतीय है। प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ काशी में दशाश्वमेध घाट गए। उन्होंने अपने पिता मॉरीशस के पूर्व प्रधानमंत्री अनिरूद्ध जगन्नाथ के अस्थि कलश को गंगा में विधि विधान से विसर्जित किया। श्रीकाशी विश्वनाथ धाम पहुंच कर उन्होंने पूजा अर्चना की। प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ उनकी बैठक हुई।

प्रविंद्र जगन्नाथ के साथ उनकी पत्नी कोबिता जगन्नाथ भी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आमंत्रण पर मॉरीशस के प्रधानमंत्री अपनी पत्नी कोबिता जगन्नाथ और उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ आठ दिवसीय दौरे पर भारत आए हैं। करीब तीन वर्ष पहले वह काशी में आयोजित पन्द्रहवें प्रवासी भारतीय सम्मेलन में शामिल हुए थे। प्रविन्द्र जगन्नाथ ने अपनी पिछली काशी यात्रा को भी याद किया। तीन वर्ष पहले पहली बार विश्व की सबसे प्राचीन नगरी काशी में यह सम्मेलन आयोजित हुआ था। काशी के प्रवासी सम्मेलन में लगभग नब्बे देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। प्रवासी भारतीय विश्व के किसी भी हिस्से में हों काशी के प्रति उनका भक्तिभाव रहता है। दूसरा संयोग प्रयागराज कुम्भ ने बनाया था। योगी आदित्यनाथ ने इसे कुम्भ आयोजन से जोड़ने का अभूतपूर्व कार्य किया था। वह प्रवासी भारतीयों के लिए यह भाव विभोर करने वाला निर्णय था। काशी में सम्मेलन और प्रयागराज में कुम्भ ने भी एक प्रकार का संगम बनाया था।

योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर प्रवासी सम्मेलन स्थल का स्वरूप भी सांस्कृतिक गौरव को रेखांकित करने वाला बनाया गया था। अटल बिहारी वाजपेयी सभागार में प्रवेश के लिए सात द्वार बनाये गए थे। गंगा सागर, पाटलीपुत्र,काशी, प्रयागराज, रिद्वार, गंगोत्री नामकरण किया गया था। योगी आदित्यनाथ ने प्रवासी भारतियों को कुंभ दर्शन का औपचारिक आमंत्रण दिया था। सैकड़ों वर्षों बाद प्रयागराज में अक्षयवट और सरस्वती कूप के दर्शन का मौका मिला था। मॉरीशस के प्रधानमंत्री की यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों के सदाबहार सम्बंध को और मजबूत बनाना है। ब्रिटिश उपनिवेशवाद से मुक्ति के आंदोलन में मॉरिशस भी भारत का सहयोगी रहा।

दोनों देश मुक्त व्यापार,ब्लू ओशन इकनॉमी,समुद्री सुरक्षा जैसे अहम मसलों पर साझीदार हैं। भारत मॉरीशस के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदारों और निर्यातकों में से एक है। भारतीय दिवस के अवसर पर मॉरीशस में भारतीय मूल के लोगों के लिए विशेष ओसीआई कार्ड की व्यवस्था की गई थी। मॉरीशस ने पहले ही भारतीय पर्यटकों के लिए वीजा मुक्त व्यवस्था की शुरुआत की थी। मॉरीशस में तीस दिनों तक की अवधि के लिए आने वाले भारतीय पर्यटकों को वीजा की आवश्यकता नहीं होती है।

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