भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहाँ प्रजातन्त्र व गणतंत्र दोनों की जड़ें गहरी व सर्वाधिक विशाल है। देश ने ब्रिटेन से स्वतन्त्रता हासिल की थी। लेकिन वहां आज भी प्रजातन्त्र तो है,लेकिन गणतंत्र नहीं है। क्योंकि वहां का सर्वोच्च पद वंश परम्परा पर आधारित है। भारत में राष्ट्रपति पद हेतु निर्वाचन होता है।
इस रूप में गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति का राष्ट्र के नाम सम्बोधन महत्वपूर्ण होता है। इस अवसर पर राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने संविधान के कतिपय तथ्यों का उल्लेख किया। इसके आधार पर उन्होने सभी लोगों से राष्ट्रहित में कार्य करने का आह्वान किया।
आपदा में अवसर
उन्होंने कहा कि आपदा को अवसर में बदलते हुए प्रधानमंत्री ने आत्म निर्भर भारत अभियान का आह्वान किया। हमारा जीवंत लोकतंत्र व यहां के लोग आत्म निर्भर भारत के निर्माण के हमारे प्रयासों को ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं। मांग को पूरा करने के घरेलू प्रयासों द्वारा तथा इन प्रयासों में आधुनिक टेक्नॉलॉजी के प्रयोग से भी इस अभियान को शक्ति मिल रही है। इस अभियान के तहत माइक्रो,स्मॉल और मीडियम इंटरप्राइजेज़ को बढ़ावा देकर तथा स्टार्ट अप इको सिस्टम को और अधिक मजबूत बनाकर आर्थिक विकास के साथ साथ रोजगार उत्पन्न करने के भी कदम उठाए गए हैं। आत्म निर्भर भारत अभियान एक जन आंदोलन का रूप ले रहा है।
संकल्पों में सहायक
आत्मनिर्भर भारत अभियान उन राष्ट्रीय संकल्पों को पूरा करने में भी सहायक होगा जिन्हें हमने नए भारत की परिकल्पना के तहत, देश की आजादी के 75वें वर्ष तक सन 2022 तक हासिल करने का लक्ष्य रखा है। हर परिवार को बुनियादी सुविधाओं से युक्त पक्का मकान दिलाने से लेकर, किसानों की आय को दोगुना करने तक, ऐसे महत्वपूर्ण लक्ष्यों की तरफ बढ़ते हुए हम अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ के ऐतिहासिक पड़ाव तक पहुंचेंगे।
समावेशी समाज
राष्ट्रपति ने कहा कि नए भारत के समावेशी समाज का निर्माण करने के लिए हम शिक्षा स्वास्थ्य,पोषाहार,वंचित वर्गों के उत्थान और महिलाओं के कल्याण पर विशेष बल दिया जा हैं। संविधान की प्रस्तावन में रेखांकित न्याय,स्वतंत्रता समता और बंधुता के जीवन मूल्य सबके लिए पुनीत आदर्श हैं। इस पर अमल की जिम्मेदारी सरकार व समाज दोनों की है।
जीवन दर्शन के शाश्वत सिद्धांत
मातृभूमि के स्वर्णिम भविष्य की उनकी परिकल्पनाएं अलगअलग थीं। संविधान के माध्यम से इसको एकरूपता प्रदान की गई। न्याय,स्वतंत्रता, समता और बंधुता हमारे जीवन दर्शन के शाश्वत सिद्धांत हैं। इनका अनवरत प्रवाह,हमारी सभ्यता के आरंभ से ही जीवन को समृद्ध करता रहा है। अनादि काल से धरती और यहां की सभ्यता इन जीवन मूल्यों को संजोती रही है।