अयोध्या। रत की धर्म-सत्ता का बारह वपीय समागम् का अद्भुत सामंजस्य कल्पवा संगम-स्नान, खत-दान और पुरातन भारतीय मूल्यों का अधुनातन स्वरूप समेटे यह प्रसंग महाकुंभ कहलाता है। 13 जनवरी से शुरू होने वाले महाकुंभ का हम सभी के जीवन में विशेष महत्त्व है। भारत के लिए यह अमृत पर्व है। ऐसा अमृत-पर्व जो हमारी जातीय चेतना, सांस्कृतिक बोध तथा विश्व कल्याण की भावना का असाधारण प्रतिफलन है।
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भारत तीयों की भूमि है। इसके प्रत्येक अंचल में पुण्यकचाएं है, जो मनुष्यता को पापबोध से उबारती है। गंगा-यमुना की दिव्य धाराओं के मध्य बसा नगर प्रयागराज्ज तीथों के राजा के रूप में प्रतिष्ठित है। संगम की सिंहासन और अक्षयवट को छात्र के रूप में धारण किए हुए तीर्थराज प्रयाग की महिमा माघ महीने में अपूर्व हो जाती है।
धर्मशास्त्र कहते हैं कि माघ महीने में जब सूर्य मकर राशि में और गुरु मेष राशि में होते हैं तब जो अमावस्या आती और वह अमृत-योग को प्रकट करती है। अमृत जीवन की सबसे बड़ी लालसा है, महाकुंभ उसी अमृताभिलाषा के लिए भारतीय ऋषि-परम्परा की आश्वस्ति है। असंख्य पीढ़ियों से देश की श्रद्धा-भक्ति माथ में संगम स्नान, कल्पवास और विविध धार्मिक अनुष्ठान की योजना करती आई है।
कथा-कहानियों तथा रीतियों और विश्वासों में निहित भारतीयता अपनी सांस्कृतिक चेतना को धर्म से परिष्कृत करती है। हमारे आधुनिकता बोध के वर्तमान संस्करण से युगों पहले इस देश ने अमृत पदार्थ का विचार और अमृत पाने का यात्न किया था। उसी बाल रूप में महासागर का मंथन हुआ। चौदह रत्न प्राप्त हुए। लक्ष्मी कौस्तुभ मणि, पारिजात वृक्ष, ऐरावत हाथी, उच्चैःश्रवा घोड़ा तथा कामधेनु आदि का अविभांव प्रसिद्ध है।
उसी से विष और अमृत का जन्म म हुआ। विष की ज्वाला से जगत को बचाने के लिए भगवान शिव ने अनुग्रह किया और सारा विप अकेले पीकर जगत की रक्षा की, उनकी इस कृपा से कृतज्ञ विश्व उन्हें मृत्युयंज कहकर पूजता है। परन्तु, अमृत पीने को लेकर महमति नहीं बन सकी भगवान धंवन्तरि ने अमृत का कलश समुद्र मंथन के प्रमुख देवराज इंद्र को सौंपा, जिसे असुर छीनकर ले भागे।
अमृत के लिए संघर्ष हुआ, जिसका समाधान भगवान ने मोहिनी रूप धारण करके किया। पर उस संघर्ष से अमृत कलश की बूंदें छलक कर धरती पर आई और भूलोक के जीयों को भी अमृत का प्रभाव सुलभ हुआ। कथा यह भी है कि अमृत घट की रक्षा के लिए उसे इंद्रपुत्र जयंत ने कुल बारह स्थानों पर रखा। इन स्थानों में आठ स्वर्ग के अंतर्गत है, जबकि चार स्थान धरती के है, जहां अमृत का संसर्ग होने से माहाकुंभ पर्व प्रकट हो गया। महाकुंभ अर्थात मृत्युलोक का अमृत पर्व।
ध्यान से देखने पर इतिहास-पुराण का यह संदर्भ मानव चेतना के अमृत-शोध का भी रहस्य खोलता है। हमारी पूर्वज परंपरा में जीवन समुद्र को मथा गया है। जीवन के अनेक आयामों में अमृत की पहचान हुई है और उस पहचाने हुए अमृत को सुरक्षित करने तथा आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने के उपाय किए गए हैं। ब्रह्मचारी के
13 जनवरी से शुरू होने वाले महाकुंभ का सभी के जीवन में विशेष महत्व है। भारत के लिए तो यह अमृत पर्व है। तीर्थराज प्रयाग, अमृत प्राप्ति का लौकिक स्थल है। ऐसा अमृत-पर्व जो हमारी आतीय चेतना, सांस्कृतिक बोध तथा विश्व कल्याण की भावना को मजबूत करता, शक्ति देता है।
लिए गुरु का उपदेश अमृत है के लिए। देवताओं पितरों-अतिधि को खिलाने से बचा हुआ भोजन अमृत है। साधक के लिए अयाचित भिक्षा अमृत है और आयुर्वेद के लिए गाय का दूध अमृत है। यही अमृत-विचार हमें अनादिकाल से एकत्र होने, परस्पर संवाद और अपनी समेकित जीवन पद्धति से अपने प्रश्नों के समाधान इंधने के लिए प्रेरित करता हैं। महाकुंभ पर्व भारत के पुरुषार्थ विमर्श का वैश्विक आयोजन है। इसमें लोक पितामह ब्रह्मा, धर्मराज युधिष्ठिर, आदि शंकराचार्य, सम्राट हर्षवर्धन समेत जीवन के विविध आयामों की विभूतियों का इतिहास गुम्फित है।
भारत की संत-परम्परा, विद्वत्परम्परा, समस्त वर्ग-वर्ण का बृहत्तर बृहत्तर समाज आबाल-वृद्ध नर-नारी के रूप में सब इस महाकुंभ में सम्मिलित। होते हैं। भूल-चूक से हुए पापों के प्रायश्चित एवं आगे पाप न करने की प्रतिज्ञा का अनुष्ठान है महाकुंभ। त्रिवेणी के संगम पर कल्पवास, संगम में स्नान, पथाशक्ति दान, भगवान वेणी माधव, अक्षय वट और नाग बासुकि का दर्शन, संतों के प्रवचन-उपदेश आदि से विश्वभर से प्रयाग आया हुआ समाज स्वयं को अपने सांस्कृतिक जीवन-मूल्यों में प्रतिक्षित करता है।
यह देखना रोचक है कि धर्मप्राण भारत देश ने धार्मिक आस्या भाव के बल पर विश्व का सबसे बड़ा आयोजन तीर्थराज प्रयाग की भूमि पर करते हुए स्वानुशासन, संगठन और सेवा का अद्वितीय प्रकल्प रचा है। पुरातन भारत से अधुनातन भारत एक प्रवाहित आस्था की धारा में सनातनता कैसे अक्षुण्ण रहती है, महाकुंभ का आयोजन इसका प्रमाण है। मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में परिभाषित करते हुए यूनेस्को ने महाकुंभ के वैश्विक महत्त्व को स्थापित किया है। यह हर्ष और गौरव का विषय है कि धर्म निरपेक्षता का दंभ करती दुनिया के सम्मुख धरती का सबसे बड़ा आयोजन करने का श्रेय सनातन के नाम है।
विश्वास विचार, सभ्यता-संस्कार, हाट-बाजार और सद्भाव सहकार का अद्वितीय उपक्रम महाकुंभ हमारी धार्मिकता, सहकारिता और पारम्परिक निष्ठा का उदाहरण तो है ही, यह हमारी सनातन उत्सव धर्मिता का भी प्रमाण है। माप के तेज ठंड में करोड़ों लोग उत्साह के साथ पवित्र नदी में स्नान करने को एकत्र होते हैं, यह हमारी धार्मिक प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
एक सीमित भूभाग में एक महीने की महाकुंभ के माध्यम से अरबों रुपए की अर्थव्यवस्था, हजारी-हजार लोगों की आजीविका, असंख्य युवकों के लिए कार्य कौशल के अवसर तथा विभिन्न उत्पाद-शिल्प और कलाओं के लिए संभावना ने नए। द्वार खुलेंगे।
महाकुंभ भारत की समावेशी जीवन पद्धति की वैश्विक प्रयोगशाला है, जहां धर्म, अध्यात्म, संस्कार, बाजार और लोकमंगल के अनेक आधाम परस्परता और संवादशीलता को बढ़ावा देते हैं। केंद्र व उत्तर प्रदेश सरकार और देशभर के नागरिक इस अमृत पर्व में अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। 2025 का प्रयागराज महाकुंभ आधुनिक विश्व में भारत को रचनात्मकता, सर्वमंगलकारिता और सार्वभौमिकता का अद्भुत प्रतीक बनेगा।
रिपोर्ट-जय प्रकाश सिंह