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सर्दियों में बढ़ जाता है हाइपोथर्मिया का खतरा, जानें इस बीमारी के बारे में

मौसम में बदलाव शरीर पर भी प्रभाव डालता है. सर्दियों का मौसम आने के साथ कई तरह की दिक्कतें हो सकती हैं. ठंड के इस मौसम में शरीर का तापमान नीचे चला जाता है. तापमान बहुत कम होने से शरीर का तापमान संतुलन में नहीं रहता है. इस वजह से हाइपोथर्मिया होने का जोखिम ज्यादा रहता है. हाइपोथर्मिया को सामान्य भाषा में ठंड लगना कहते हैं, जिससे ज्यादातर बच्चे और बुजुर्ग प्रभावित होते हैं.

आमतौर पर हाइपोथर्मिया तब होता है जब शरीर का तापमान ठंडे वातावरण के कारण काफी कम हो जाता है. यह अक्सर ठंडे मौसम में रहने या ठंडे पानी में जाने से होता है. इस स्थिति में व्यक्ति का शरीर तेजी से गर्मी खोता है. शरीर का तापमान इस दौरान 35 डिग्री सेल्सियस से नीचे गिर जाता है, जबकि शरीर का सामान्य तापमान 37 डिग्री सेल्सियस होता है. इसके साथ ही थकान और पानी की कमी से भी इसका जोखिम बढ़ जाता है. हाइपोथर्मिया हल्का, मध्यम और गंभीर रूप ले सकता है. 28 डिग्री से नीचे तापमान जाने पर गंभीर स्थिति मानी जाती है.

इन संकेतों का मतलब हो सकता है हाइपोथर्मिया​.

त्वचा का तेजी से ठंडा होना, कंपकंपी, थकान, स्पष्ट न बोल पाना हाइपोथर्मिया का संकेत हो सकता है. कुछ लोगों को बहुत नींद आना, उलझन या अच्छा महसूस न करना जैसे लक्षण भी हो सकते हैं. अगर बीमारी बढ़ जाए तो मांसपेशियों में अकड़न, बेहोशी, नब्ज धीमी होना, सांस लेने में कठिनाई जैसी स्थिति महसूस हो सकती है. गंभीर स्थिति में व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु हो सकती है. इन लक्षणों के नजर आने पर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.

हाइपोथर्मिया के कारण- शराब का सेवन करने वालों में ठंड महसूस करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है. उन्हें लगता है कि शरीर अंदर से गर्म है लेकिन वास्तव में शराब पीने से रक्त वाहिकाएं फैल जाती हैं जिससे शरीर तेजी से गर्मी खो देता है. कुछ दवाओं के सेवन से भी यह स्थिति पैदा हो सकती है जिसमें एंटीडिप्रेसेंट्स, सेडेटिव और एंटीसाइकोटिक दवाएं शामिल हैं. ये शरीर के तापमान को नियंत्रित करने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है. हाइपोथायरायडिज्म, डायबिटीज, गठिया, डिहाइड्रेशन, पार्किंसंस रोग जैसी बीमारियां तापमान बनाए रखने की क्षमता पर असर डालती हैं. जो लोग ऐसी जगह रहते हैं जहां का तापमान बहुत कम रहता है, उनमें हाइपोथर्मिया का जोखिम बढ़ जाता है. शिशुओं और बुजुर्गों को ज्यादा खतरा रहता है क्योंकि शरीर के तापमान को नियंत्रित करने की क्षमता कम हो जाती है.

इस बीमारी से गैंग्रीन या ऊतकों को नुकसान पहुंचना, ट्रेंच फुट, फ्रॉस्टबाइट, तंत्रिकाओं और रक्त वाहिकाओं को नुकसान हो सकता है. इसलिए लक्षणों को नोटिस करने के बाद समय पर इलाज शुरू करा देना चाहिए.

ये है इलाज- इसके इलाज का पहला उद्देश्य शरीर के तापमान को सामान्य रखना है. हाइपोथर्मिया से ग्रस्त व्यक्ति को ठंड से बचाएं, गीले कपड़े न पहनने दें, व्यक्ति के मुंह को छोड़कर पूरा शरीर कंबल से ढकें. व्यक्ति को गुनगुने पानी की बोतल या गर्म सिकाई दें. मास्क और नेजल ट्यूब्स से एयरवे रिवार्मिंग भी किया जा सकता है. इसके अलावा पंप के जरिए पेट को गर्म करना यानी कैविटी लैवेज मददगार साबित होता है.

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