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Riyadh में रूस-यूक्रेन शांति वार्ता शुरू, EU व Ukraine नहीं हुए शामिल, भारत को होगा फायदा!

किशन सनमुखदास भावनानी

वैश्विक स्तर पर कयास लगाए जा रहे थे कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव (US presidential election) में डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) की जीत के बाद दुनिया बदलने की और अग्रसर होगी। इसी कड़ी में उन्होंने अब 18 फरवरी को सऊदी अरब (Saudi Arabia) के रियाद (Riyadh) में बैठक रखी है, जिसमें रूस व अमेरिका (Russia and America) के विदेश मंत्री शामिल हुए हैँ। यूक्रेन व यूरोपीय संघ को इस बैठक से अलग रखा गया है, जिससे हड़कंप मचा हुआ है, ईयू (EU) समेत अनेक सदस्य देश अलग-अलग राग अलाप रहे हैं। इस वार्ता से रूस -यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine war) अब समाप्त होने की संभावना प्रबल है।

रूस-यूक्रेन के बीच शांति समझौते के लिए अमेरिका और रूस सऊदी अरब में बैठक चल रही है। सुलह की संभावना के बीच सोमवार को कच्चे तेल की कीमतों में लगातार चौथे दिन गिरावट देखी गई है। रूस-यूक्रेन शांति समझौते से रूस पर लगे प्रतिबंधों में ढील दी जाएगी और इसकी संभावना भर से ही तेल की कीमतें नीचे जा रही हैं। ट्रंप ने दुनियाँ के देशों पर जो टैरिफ लगाया है, उससे भी आर्थिक विकास धीमा होने और ऊर्जा का मांग कम होने की आशंका है।तेल की कीमतों पर इन चिंताओं का भी असर देखने को मिल रहा हैँ।

वैश्विक क्रूड ट्रेडमार्क ब्रेंट रूस- यूक्रेन को बीच शांति से भारत को क्या होगा फायदा? भारत दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है और अपनी 85 प्रतिशत से अधिक जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है। रूस-यूक्रेन के बीच शांति समझौते से भारत को बहुत फायदा मिलने वाला है, क्योंकि रूस भारत का शीर्ष कच्चा तेल सप्लायर है। एक जानकारी के मुताबिक, दिसंबर 2024 में भारत के कुल कच्चा तेल आयात में रूसी तेल का हिस्सा 31 पेर्सेंट था, वहीं, नवंबर 2024 में यह 36 पेर्सेंट था। रूसी तेल पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों से भारत को रूस से साथ तेल व्यापार में दिक्कतें आ रही हैं।एक दिक्कत खरीदे गए तेल के भुगतान का भी है, लेकिन अगर रूस पर लगे प्रतिबंध हटते हैं तो भारत को फायदा होगा।भारत की विकासशील अर्थव्यवस्था तेल आधारित है जिसपर तेल की कीमतों में गिरावट और उछाल का भारी असर देखने को मिलता है।

 

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को रुकवा सकते हैं। इस युद्ध को रोकना इतना भी आसान नहीं है, जितना ट्रंप समझ रहे हैं, क्योंकि एक तरफ ट्रंप और पुतिन तो सीजाफायर के लिए हामी भर रहे हैं, लेकिन यूक्रेन और यूरोप इसमें अगर- मगर कर रहे हैं ।रूस- यूक्रेन का युद्ध रोकना इतना आसान इसलिए भी नहीं है, क्योंकि यूक्रेन की बैकिंग करने वाले कई देश हैं, जो यूक्रेन को बैक सपोर्ट दे रहे हैं । इसमें सबसे बड़ा नाम ब्रिटेन केपीएम कीर स्टार्मर हैं, हाल ही में स्टार्मर ने कहा है कि वो यूक्रेन के लिए अपनी सेना भेजने को तैयार हैं। स्टार्मर ने कहा कि ब्रिटेन रूस के खिलाफ युद्ध में यूक्रेन को बढ़चढ़ समर्थन करता रहेगा। वहीं, यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की का कहना है कि वो अमेरिका के कहने पर पुतिन से शांति वार्ता के लिए तभी मिलेंगे जब अमेरिका और यूरोपीय नेताओं में एक साझा योजना पर सहमति बन जाएगी। जेलेंस्की की दूसरी शर्त है कि कि यूक्रेन नाटो में रहना चाहता है और वह रूस के कब्जा किए गए क्षेत्रों को मान्यता नहीं देगा, जब अमेरिका जेलेंस्की की इन शर्तों को मानेगा तभी वो शांति समझौते के लिए तैयार होंगे। अमेरिका जेलेंस्की की इन शर्तों को मानेगा तभी शांति वार्ता का कुछ मतलब निकलेगा।

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