देशभर में नागिरकता संशोधन कानून, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी है। वहीं, इसे लेकर विपक्षी दल लगातार केंद्र की मोदी सराकर को घेरने में लगा हुआ है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।
दरअसल, एनपीआर की पूरी प्रकिया पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। जिसपर आज कोर्ट ने इस पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। साथ ही कोर्ट ने कहा है कि अब इस मामले की सुनवाई सीएए के साथ होगी।
1 अप्रैल से शुरू होगी जनगणना
बता दें कि पिछले साल दिसंबर में नरेंद्र मोदी सरकार की कैबिनेट ने एनपीआर को मंजूरी दे दी है। जिसके तहत सभी भारतीय नागरिकों के बायोमेट्रिक और वंशावली को डेटा तैयार किया जाएगा। 1 अप्रैल से 30 सितंबर, 2020 के बीच असम के अलावा देश भर में घरों की गिनती के दौरान एनपीआर के लिए डाटा एकत्रित किया जाएगा।
बता दें कि एक अप्रैल से शुरू होने वाली एनपीआर में आधार, पासपोर्ट नंबर, बैंक अकाउंट, वोटर आईडी कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस की जानकारी देना आवश्यक होगा। गृह मंत्रालय के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक किसी भी व्यक्ति के पास इनमें से किसी भी तरह का कोई प्रूफ या कोई दस्तावेज होगा तो उसको इसकी जानकारी देना अनिवार्य होगा। हालांकि इन दस्तावेजों में पैनकार्ड की जानकारी देने वाला कॉलम विरोध करने के बाद हटा दिया गया है।
क्या है NPR ?
गौरतलब है कि एनपीआर भारत में रहने वाले मूल निवासियों का एक रजिस्टर है, जिसमें उनके मूल पते की जानकारी होती है। ये नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों के तहत स्थानीय, उप-जिला, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जाता है। इसके तहत कोई भी निवासी जो 6 महीने या उससे अधिक समय से स्थानीय क्षेत्र में निवास कर रहा है तब उसे NPR में अनिवार्य रूप से पंजीकरण करना होता है।
देश के हर निवासी की पूरी पहचान और अन्य जानकारियों के आधार पर उनका डेटाबेस तैयार करना इसका मूल उद्देश्य है। इस डाटा में जनसंख्या के आंकड़ों के साथ ही भारत के हर नागरिक की बायोमेट्रिक जानकारी भी दर्ज होगी। आधार कार्ड की तरह ही इस बार एनपीआर में भी आंखों की रैटिना और फिंगर प्रिंट भी लिए जाएंगे।