योगगुरु बाबा रामदेव (Baba Ramdev) ने कहा कि हमारा शरीर निसर्ग या प्राकृतिक चीजों जैसे-जड़ी-बूटी, वनस्पति आदि को आत्मसात कर लेता है और ऐलोपैथी की दवा को फोरन मैटिरियल मानकर उनके साथ संघर्ष करता है। हमारे ऋषियों ने कहा है कि हम मात्र जड़-शरीर नहीं हैं, हम चैतन्य शाश्वत् सत्ता हैं।
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उन्होंने दावा किया कि हमने लिवर की दवा बनाने के लिए 2400 प्रोटोकॉल फॉलो किए। कहा कि सभी नियमों और मानकों को ध्यान में रखकर दवाइयां बनाईं जातीं हैं। अनेक प्रयोगों के साथ हमने ड्रग डिस्कवरी का कार्य किया। आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि शास्त्रत्तें के अनुसार हमारे ऋषियों ने लगभग 300 वनस्पतियों जैसे तुलसी, गिलोय, अश्वगंधा, एलोवेरा, दालचीनी, हल्दी, काली मिर्च, लौंग, अदरक आदि पर गहन अनुसंधान किया और औषधियों का निर्माण किया।
आयुर्वेद की परम्परा कालान्तर में लुप्त न हो जाएं इसलिए हमारे ऋषियों ने इसे परम्पराओं से जोड़ दिया। एकादशी व्रत, वट वृक्ष व तुलसी की पूजा इन्हीं परम्पराओं के उदाहरण हैं। पतंजलि के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. अनुराग वार्ष्णेय ने बताया कि हमने जड़ी-बूटियों व वनस्पतियों के घनसत्व पर प्रयोग कर गुणकारी औषधियों का निर्माण किया है।
उन्होंने कहा कि एलोपैथी आजकल जड़ पैथी हो गई है। इससे आंशिक सफलता तो मिल जाएगी परन्तु जड़ के पीछे जो चैतन्य है, उस पर भी हमें केन्द्रित होना पड़ेगा। पतंजलि अनुसंधान संस्थान के तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन ‘प्लांट्स टू पेशन्ट्स-एथनोफार्माकोलॉजी पर पुनर्विचार’ में योगगुरु रामदेव ने कहा कि आयुर्वेद, जड़ी-बूटियां, एक स्वस्थ आध्यात्मिक सुखी जीवन का मार्गदर्शक, उसकी शिक्षा-दीक्षा जो हमने अपने पूर्वजों से प्राप्त की थी, उसको वैदिक ज्ञान व आधुनिक अनुसंधान के संगम के साथ हम आगे बढ़ा रहे हैं।