श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में मथुरा की जिला जज की कोर्ट ने याचिका को स्वीकार कर लिया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 18 नवंबर को मामले की अगली सुनवाई होगी. कोर्ट ने दूसरे पक्ष, जिसमें सुन्नी वक्फ बोर्ड, ट्रस्ट मस्जिद ईदगाह, श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संस्थान को नोटिस भेजा गया है. इसका मतलब है कि अब इस केस में सुनवाई का सिलसिला शुरू होगा. याचिका में मांग की गई है कि 1968 में जन्मभूमिक को लेकर जो समझौता हुआ था उसे रद्द किया जाए और मस्जिद को वहां से हटाया जाए.
भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की तरफ से वकील
भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की तरफ से वकील हरि शंकर जैन, विष्णु जैन और पंकज वर्मा ने पक्ष रखा. भगवान श्रीकृष्ण विराजमान के वाद मित्र ( हृद्ग&ह्ल स्नह्म्द्बद्गठ्ठस्र) के रूप में हाईकोर्ट की वकील रंजना अग्निहोत्री भी कोर्ट में मौजूद थी. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि इस मामले में वरशिप एक्ट लागू नहीं होता. उन्होंने कहा था कि नहीं. इस केस में वरशिप एक्ट का प्वॉइंट नहीं आएगा. अप्लाई नहीं करता है. वो सिर्फ प्रेस में वरसिप एक्ट चल रहा है. जिसे लेकर हम बात कर रहे हैं उसपर 1968 के बाद अतिक्रमण करके बनाया गया है.
वरशिप एक्ट की कटऑफ डेट 1945 की या उससे पहले की है. दरअसल, प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट के मुताबिक, 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस संप्रदाय का था वो आज और भविष्य में भी उसी का रहेगा. इसका मतलब है कि अगर आजादी के दिन एक जगह पर मन्दिर था तो उसपर मुस्लिम दावा नहीं कर सकता. चाहे आजादी से पहले वहां मस्जिद ही क्यूं न रहा हो. ठीक ऐसे ही 15 अगस्त 1947 को एक जगह पर मस्जिद था तो वहां पर आज भी मस्जिद की ही दावेदारी मानी जाएगी. इस कानून से अयोध्या विवाद को अलग रखा गया था.
कृष्ण जन्मभूमि मंदिर और मस्जिद अगल-बगल है
मथुरा में शाही मस्जिद ईदगाह और कृष्ण जन्मभूमि मंदिर बिल्कुल अगल-बगल है. यहां पूजा अर्चना और पांच वक्त की नमाज नियमित रूप से चलती है. इतिहासकारों का दावा है कि 17वीं सदी में बादशाह औरंगजेब ने एक मंदिर तुड़वाया था और उसी पर मस्जिद बनी. हिंदू संगठनों को कहना है कि मस्जिद के स्थान पर ही भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था.