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तकनीकी प्राचीन ज्ञान का क्षेत्रीय भाषाओं में होना जरूरी

तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के फैकल्टी ऑफ इंजीनियरिंग-एफओई के सिविल इंजीनियरिंग विभाग में भारत के स्वदेशी विज्ञान आंदोलन, दिल्ली के सहयोग से प्राचीन और आधुनिक भारतीय ज्ञान प्रणालियों के संदर्भ में सतत विकास- विज्ञान, अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी की भूमिका पर नेशनल कॉन्फ्रेंस

• क्षेत्रीय भाषा में अपनी ब्रांचों में ज्यादा प्रगति कर सकेंगे स्टुडेंट्स: वीसी
• ग्रामीण क्षेत्रों में एंटरप्रिन्योरशिप को लेकर विज्ञान भारती गंभीर: डॉ भट्ट

मुरादाबाद। तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो रघुवीर सिंह ने कहा, तकनीकी शिक्षा को क्षेत्रीय भाषा में बढ़ावा देना होगा। इसके लिए तकनीकी शिक्षा की किताबों को क्षेत्रीय भाषा में परिवर्तित करना होगा। इससे स्टुडेंट्स की तकनीकी शिक्षा के प्रति समझ विकसित होगी। साथ ही छात्र अपनी ब्रांचों में ज्यादा प्रगति कर सकेंगे। सही मायने में ऐसा करके ही प्राचीन भारतीय ज्ञान को तकनीकी शिक्षा में जोड़ा जा सकता है।

तकनीकी प्राचीन ज्ञान का क्षेत्रीय भाषाओं में होना जरूरी

स्वदेशी साइंस मूवमेंट ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ डीपी भट्ट विज्ञान भारती की विकास यात्रा पर प्रकाश डालते हुए बोले, स्वदेशी ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए देश के 22 सूबों में विज्ञान भारती का संचालन हो रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में एंटरप्रिन्योरशिप को लेकर विज्ञान भारती गंभीर है। गांव-गांव युवाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उन्होंने मुरादाबाद मंडल के अपने अनुभवों को भी साझा किया। पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर एसपी सिंह गंगवार ने बतौर मुख्य अतिथि कहा, इंजीनियरिंग के छात्रों को क्षेत्रीय भाषा में तकनीकी ज्ञान देना वक्त की दरकार है।

तकनीकी प्राचीन ज्ञान का क्षेत्रीय भाषाओं में होना जरूरी

ये हस्तियां तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के फैकल्टी ऑफ इंजीनियरिंग-एफओई के सिविल इंजीनियरिंग विभाग में भारत के स्वदेशी विज्ञान आंदोलन, दिल्ली के सहयोग से प्राचीन और आधुनिक भारतीय ज्ञान प्रणालियों के संदर्भ में सतत विकास- विज्ञान, अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी की भूमिका पर आयोजित नेशनल कॉन्फ्रेंस में बोल रही थीं।

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पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर एसपी सिंह गंगवार बतौर मुख्य अतिथि, यूपी जल निगम के मुख्य अभियंता एके सिंह बतौर विशिष्ट अतिथि, स्वदेशी साइंस मूवमेंट ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ डीपी भट्ट, वीसी प्रो रघुवीर सिंह, रजिस्ट्रार डॉ आदित्य शर्मा, सीसीएसआईटी के निदेशक एवम् कॉन्फ्रेंस चेयर प्रो आरके द्विवेदी, कार्यक्रम समन्वयक डॉ विकास श्रीवास्तव ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित करके नेशनल कॉन्फ्रेंस का शुभारम्भ किया।

तकनीकी प्राचीन ज्ञान का क्षेत्रीय भाषाओं में होना जरूरी

इस मौके पर कांफ्रेंस के समन्वयक अरुण कुमार पिपरसेनिया, सिविल इजीनियिरिंग के विभागाध्यक्ष डॉ आशीष सिमल्टी, ज्वाइंट रजिस्ट्रार, आरएंडडी डॉ ज्योति पुरी, डॉ पंकज गोस्वामी आदि की उल्लेखनीय मौजूदगी रही। धीरेन्द्र ग्रुप ऑफ कम्पनीज़ के सीईओ डॉ गोपाल राय ने भी बतौर की-नोट स्पीकर अपने विचार व्यक्त किए।

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इससे पूर्व डॉ प्रतीक पारेख ने अनुष्ठान और वेद स्तुति की। कॉन्फ्रेंस का राष्ट्रगीत के साथ उदघाटन हुआ। नेशनल कॉन्फेंस में द्विभाषीय स्मारिका का विमोचन भी हुआ। सभी अतिथियों को शाल और गीता भेंट करके स्वागत किया और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। संचालन इंदु त्रिपाठी ने किया।

सीसीएसआईटी के निदेशक एवम् कॉन्फ्रेंस चेयर प्रो आरके द्विवेदी बोले, हमारे प्राचीन ज्ञान को चरणबद्ध तरीके से तोड़ा गया है। संस्कृत के एक श्लोक को कोट करते हुए बोले, जहां धर्म है, वहीं जीत है। विज्ञान भारती की ओर से कार्यक्रम समन्व्यक डॉ विकास श्रीवास्तव ने राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्देश्य पर विस्तार से प्रकाश डाला।

तकनीकी प्राचीन ज्ञान का क्षेत्रीय भाषाओं में होना जरूरी

नेशनल कॉन्फ्रेंस में वक्ताओं ने जलवायु परिवर्तन, विज्ञान और मानविकी, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी, वित्त प्रबंधन, भारतीय ज्ञान प्रणाली, शासन और राजनीति, राष्ट्रीय संसाधन प्रबंधन, टिकाऊ गतिशीलता और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर आईआईटी, बीएचयू, सीबीआरआई, एनआईएच, रूड़की आदि संस्थानों के वैज्ञानिकों और प्रोफेसर्स ने अपने-अपने अनुभवों को साझा किया।

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तकनीकी सत्र ब्लैंडेड मोड में हुआ, जिसमें दो दर्जन से अधिक शोध पत्र पढ़े गए। कॉन्फेंस में प्रो आरके जैन, डॉ विपिन कुमार, डॉ अमित शर्मा, डॉ सिद्धार्थ माथुर, निकिता जैन, अंकित वार्ष्णेय, अंकित शर्मा, नवनीत विश्नोई, विश्वदीप सिंह, मनोज गुप्ता आदि की भी मौजूदगी रही।

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