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थूकने का प्रैक्टिस

जब से कोरोना काल का दौर शुरु हुआ तब से मेरीअपनी भी वाट लग गई। न जाने किस मनहूस की छाया हमारे देश पर मड़राने लगी थी।शहर-दर-शहर से लेकर गांव-ज्वार तक में अपना प्रभाव निर्विघ्न गति से बेखौफ होकर,अपना कहर बरपाना शुरू कर दी। इसका कहर इतना पावरफुल था कि जहर भी थोड़े समय के लिए मात खा जाए।

हर जगह प्रतिबंध। न तो आप कहीं, किसी के घर जा सकते हैं, और ना ही अगलाआपके घर आ सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो यही कह सकते हैं कि डर का खामियाजा दोनों पक्षों को भुगतना पड़ रहा था।

इस कोरोना ने तो सब कुछ चौपट,तहस नहस करके रख दिया। सारा विश्व त्रस्त था इसके नापाक करतूतों,ओछी हरकतों से। इसने तो रिश्तों के भूगोल को भी नहीं छोड़ा। उस पर सरकारी फरमान। लाकडाऊन! सब कुछ पर प्रतिबंध! आवागमन ठप्प! ना कहीं आप जा सकते हैं,और ना ही खाने-पीने की मनपसंद चीजों को आप मंगा सकते हैं। पकड़ाने पर मोटी रकम ऐंठने की सरकारी दंड की व्यवस्था भी की गई थी। अलग-अलग कैटेगरी का अलग-अलग दंड प्रक्रिया लागू था।

थूकने का प्रैक्टिस

मास्क नहीं पहने हैं उसका अलग,बिना मतलब का घुम रहे हैं मार्निंग या इवनिंग वाक की इसका आर्थिक दंड भिन्न-भिन्न है।यानि घर में बैठे-बैठे कोसते रहो घुटते रहो, जो भी आटा, चावल, दाल से जो व्यंजन तैयार हो जाए,नाक,मुंह सिकुड़ाते हुए ठुसते रहो। ये महामारी है या मन की मारी है। कुछ समझ में नहीं आता था।

अब क्या बताऊं अपना। कोरोना काल के पूर्व थुकने में तो अपना महारत हासिल है।थुक प्रतियोगिता में कितना पुरस्कार जीत चुका हूं।आपलोगों को विश्वास नहीं होगा,बढिया से थुके हुए साल गुजर गया। सार्वजनिक जगहों पर थुकने पर प्रतिबंध लगा था। ये कमबख्त कोरोना जो ना कराए। थुकने के मामले में मुहल्ला क्या पूरा पंचायत अपना लोहा मानता है।

पहले हम हर तरह का थुक थुकते थे।म्यूजिक थुक,यानि आक्थू! साइलेंसर थुक, राह चलते समय पीछे से थुक दीजिए बिना आवाज का उसको पता भी नहीं चलेगा, उसके पिछले भाग में विश्व का नक्शा बन गया। चलता-फिरता थुक, जिधर देखा उछाल दिया। और अंत में पिचकारी थुक।

खैनी, गुटखा खानेवाले, पान चबाने वाले अधिकांश लोग पिचकारी थुक थुकते हैं।यानि हर तरह के थुकने की सुखानुभूति होती थी।थुकने के मामले में ऑल राउंडर था। अभी कुछ सप्ताह पहले की बात है। शाम को इवनिंग वाक के लिए निकला था। एक सज्जन म्यूजिक थुक थुकते हुए पुलिस के हाथों पकड़ा गए। फिर उनका रोना-गिड़गिड़ाना देख हल्का-फुल्का उपचार करके बेचारे को छोड़ दिया गया। ये कसम लेकर कि थुकना भी है तो आजू-बाजू देखकर।

थूकिए! खुब थुकिए!! लेकिन देखकर!!!

उस सज्जन का उपचार देखकर थुक का लूक देखे मुझे कितना वक्त बीत गया। कभी मैं भी राजनीतिक कुव्यवस्था से लेकर भ्रष्टाचार, अनाचार, दुराचार के पौधे को फलने फुलने,या अपना पांव जमाने की जमीन तराशती व्यवस्था को देखते ही अपना थुकथुकी शुरू हो जाता था।लेकिन क्या कहूं।जब से कोरोना माता का आगमन हुआ है, बढिया से थुके हुए न जाने कितने महीना गुजर गया।उस पर भी प्रतिबंध लग गया था।

जब से सुना कि एक बार फिर से थुक से संबंधित प्रतियोगिता शुरू होने वाली है तब से मैं एक बार फिर से थुकने का प्रैक्टिस शुरू कर दिया हूं। हाल-फिलहाल तो थुकने का बहुत लोग प्रैक्टिस कर रहे हैं।बता नहीं सकता कि इस बार मैं प्रतियोगिता जीत पाऊंगा कि नहीं। क्योंकि अब मैदान खाली नहीं बल्कि अभी थुकने वाले बहुत हो गए हैं। कम्पटिशन थोड़ा भारी हो गया है।अभी अपना सारा फोकस थुक पर केन्द्रित है।

       राजेंद्र कुमार सिंह

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