रावण सोए हुए कुम्भकरण को जगाते हुए बोला “भाई उठ जा..”रावण दहन के दिन करीब आ गए है।” रावण कुम्भकरण को बार बार जगा रहा था, किन्तु कुम्भकरण टस से मस न हुआ, रावण बोला भाई तेरी नींद तो भ्र्ष्टाचार जैसी हो रही है, कितनी भी कोशिश कर लो पर जरा भी कम नहीं हो रही। जैसे ‘तुझे जितना जगा रहा हूँ, उतने ही तेरे खर्राटे बढ़ रहें है।’
हे शिव, किसे अपनी व्यथा सुनाऊ! रावण कोशिश करता रहा कुम्भकरण को जगाने की! उठ भाई..उठ.., कितना सोए गा..! देख तो सही आज हमसे ज्यादा सडयंत्र कारी और क्रूरता की पराकाष्ठा करने वाले लोग जमीन पर हो गए हैं। आज कट्टरता, धर्मान्तरण, आम हो गया, प्रेम को वासना ने निगल लिया है।
आज नारी स्वयं को उपभोग की वस्तु बना रही है। चरित्र मान-मर्यादा खूंटी पर टांग रही हैं। “धन लालसा प्रचार में नग्न अवस्था में थिरक रही है।” धर्म के नाम गोरख धंधा फल फूल रहा..,! देश द्रोह, दंगा, आतंकवादी मुंह फाड़ रहा। आज हवस में छोटी छोटी बच्चियों को मार रहा है। रावण फिर कुम्भकरण को हांथो से हिला डुला कर जगाने की कोशिश करने लगा। कुम्भकरण को हिलाने पर उसने करवट तो बदल ली पर उठा नहीं..! रावण सोचने लगा क्या करुँ? जिससे कुंभकरण उठ जाए, देख भाई आज हमसे भी ज्यादा निर्दयी, निष्ठुर बुराइयों में लिप्त, जनमानस दुनियाँ में भर गए है, फिर रावण हांथो से कुम्भकरण के गाल थप- थपाते हुए जगाने लगा।
जाग भाई…. जाग..! कुम्भकरण ने धीरे से आंखे खोली, रावण को देख मुस्कुराते हुए बोला, “भैया आपकी सब बात सुन रहा था।” आपका प्रेम से मुझे उठाना अच्छा लग रहा था। इसलिए ऐसे ही आँखे मूंद कर सुन रहा था। कुम्भकरण बोला “भैया रावण, मेघनाथ, कुम्भकरण से ज्यादा बुराइयाँ तो मानव जात में बढ़ रही है। आपने सीता मैया का अपहरण किया था, किन्तु उनको कभी स्पर्श तक नहीं किया, किन्तु जमीन पर तो कुछ मानव ने घर की कन्या को ही हवस का पुजारी बन मृत्यु घाट उतार दिया। हमारा अंत तो प्रभु राम ने कर दिया था। किन्तु ऐसे पापियों का अंत प्रभु कब करेंगे ? रावण बोला उनका भी अंत जल्द होगा, कुंभकरण बोला धरती वासी हर वर्ष हमारा पुतला ही क्यों दहन करते है ? इन्हें तो दशहरे (विजयादशमी) के दिन आतंक, धर्मान्तरण, भ्रष्टाचार, कट्टरता,दंगा, बलात्कार, व्यभिचार,सडयंत्र,क्रूरता, लालच,वासना, इनका दहन करना चाहिए!