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काशी कॉरिडोर की तकनीक समझें विद्यार्थी : राज्यपाल

पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्री काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का लोकार्पण किया था। राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल उस समारोह में उपस्थित थी। उन्होंने पहले भी श्री विश्वनाथ धाम के दर्शन किये थे। उस समय मंदिर क्षेत्र केवल तीन हजार वर्ग फीट में था। वह अब करीब पांच लाख वर्ग फीट का हो गया है। आनन्दी बेन ने इस नवनिर्मित परिसर का अवलोकन किया था। आज आनन्दी बेन ने तकनीक के विद्यार्थियों को संबोधित किया। यहां उन्होंने प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्र को समर्पित बाबा विश्वनाथ धाम कारिडोर का उल्लेख किया। कहा कि इसका निर्माण कोरोना काल होते हुए भी रिकार्ड मात्र दो वर्ष में नवीनतम तकनीकी का उपयोग करते हुए किया गया।

एकेटीयू के छात्रों को चाहिए कि वे भ्रमण कार्यक्रम तय करके वहां किये गये कार्यों का अध्ययन करें। प्रोजेक्ट बनाएं तथा वहां अपनायी गयी तकनीकी को आत्मसात करते हुए यह संकल्प लें कि वे अपने दायित्वों को समयबद्धता एवं गुणवत्ता के साथ पूर्ण करेंगे। राज्यपाल ने एकेटीयू के कुलपति को निर्देश दिया कि विद्यार्थियों को प्रदेश में चल रहे रनिंग प्रोजेक्टों का अध्ययन कराएं। इससे उन्हें कार्यानुभव मिलेगा। यह उनके आगे के जीवन के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।तकनीकी शिक्षा विद्यार्थियों के लिये रोजगार और स्वरोजगार प्राप्ति की सबसे सहज राह होती है। हुनर से रोजगार तक का आसान मार्ग तकनीकी सेक्टर से ही होकर गुजरता है। विश्वविद्यालय को चाहिए कि वे विद्यार्थियों के कौशल विकास को निखारें तथा उन्हें रोजगारपरक तकनीकी और वोकेशनल कोर्सों से जोड़ने का कार्य करें। इससे वे रोजगार ढूंढ़ने के बजाए रोजगार देने योग्य बनेंगे।

शिक्षा व लोकहित

आनन्दी बेन पटेल शिक्षा के साथ ही सामाजिक सरोकारों को भी अपरिहार्य मानती है। इसके अभाव में शिक्षा का महत्व नहीं होता। एक बार फिर उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य केवल उपाधि प्राप्त करने तक सीमित नहीं है। बल्कि उसके ध्येय दूरगामी होते हैं। ज्ञान को नौकरी पाने का साधन नहीं बनना चाहिये। लोकहित तथा जनहित से जुडे़ बगैर शिक्षा सार्थक नहीं होती।

कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय, लखनऊ के उन्नीसवें दीक्षान्त समारोह को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि नेक कार्यों से ही व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब बनता है। इसलिए मानव मूल्यों एवं नैतिकता के मार्ग पर सदैव चलना चाहिए।

नई शिक्षा नीति का महत्व

आनन्दी बेन ने नई शिक्षा नीति के महत्व को रेखांकित किया। कहा कि मजबूत एवं आत्मनिर्भर भारत का निर्माण हमारी वैश्विक सोच के केन्द्र में है। विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थी स्थानीय संसाधनों, अनुभवों एवं ज्ञान का उपयोग कर शोध तथा इनोवेशन के माध्यम से स्थानीय विकास को बल प्रदान करके शिक्षा को सही अर्थों में उपयोगी बनाएं। शिक्षा क्लास रूम और पाठ्यक्रमों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा की शक्ति को दृष्टिगत रखते हुए पहली बार आईआईटी और एनआईटी के साथ प्रतिष्ठित कालेजों में प्रवेश के लिए जेईई परीक्षा को अंग्रेजी के अलावा बारह अन्य भारतीय भाषाओं में कराया गया। निश्चित रूप से इससे बहुत से विद्यार्थियों को लाभ हुआ होगा। क्योंकि मातृ भाषा,क्षेत्रीय भाषा एवं स्थानीय भाषा में पढ़ने से छात्र अधिक तेजी से समझते और सीखते हैं।

उन्होंने कहा कि अपनी भाषा में व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलने से समाज का बहुत बड़ा वर्ग अपना कौशल विकास कर सकेगा। मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रो एसजी धांडे ने कहा कि प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्चतर शिक्षा तक में समन्वय होना उचित है। विश्वविद्यालय व महाविद्यालय के शिक्षक समय समय पर अपने घर के आसपास के स्कूल में जाकर पढ़ाएं। इसका छोटे बच्चों के कोमल मन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। शिक्षा व्यवस्था थ्री एल अर्थात Long Life Learning पर आधारित है। इसके आधार पर हर मनुष्य जीवन भर कुछ न कुछ सीखता है। एकलव्य ने अपने दम पर तीरंदाजी के सभी गुण सीखे। वास्तव में अभ्यास मनुष्य को पूर्ण रूप से दक्ष बनाता है। आज डिजिटल एकलव्यों की जरूरत है।

आंगनबाड़ी के प्रति दायित्व

आनन्दी बेन ने कहा कि प्रदेश के विभिन्न जनपदों में अब तक विश्वविद्यालय और सम्बद्ध संस्थानों के सहयोग से लगभग दो सौ पैसठ आंगनवाड़ी केन्द्रों को गोद लिया गया है। विद्यार्थी एवं शिक्षकगण सुविधा सम्पन्न बनाये गये आंगनबाड़ी केन्द्रों का भ्रमण अवश्य करें। आंगनबाड़ी एवं प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक की भूमिका भी निभाएं। ऐसा करने से बच्चों में आत्मविश्वास जगेगा।

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