मैं आज प्रपंच चबूतरे पर थोड़ा देर से पहुंचा। चतुरी चाचा बीचोबीच चबूतरे पर विराजमान थे। चबूतरे के तीन तरफ दो-दो गज की दूरी पर कुर्सियां पड़ी थीं। इन कुर्सियों पर ककुवा, कासिम चचा, मुन्शीजी व बड़के दद्दा बैठे थे। वहीं, एक कोने में कुछ मॉस्क और सेनिटाइजर की शीशियां ...
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