पर्वत पिता पर्वत समान जहाँ मिलता है सुखद विश्राम। वह रोक लेते है अपने ऊपर प्रतिकूल आंधी और तूफान।। मिलता है सहज संरक्षण तपिश में वर्षा जल की शीतल बूंदे। दूर रहता है संताप…पिता पर्वत समान पिता के जाते ही अदृश्य हो जाता है। प्रकृति का यह वरदान नहीं दिखाई देता।। ...
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