पिता पर्वत समान जहाँ मिलता है सुखद विश्राम। वह रोक लेते है अपने ऊपर प्रतिकूल आंधी और तूफान।। मिलता है सहज संरक्षण तपिश में वर्षा जल की शीतल बूंदे। दूर रहता है संताप…पिता पर्वत समान
पिता के जाते ही अदृश्य हो जाता है। प्रकृति का यह वरदान नहीं दिखाई देता।। कोई पर्वत जो रोक ले आपदा के सैलाब। दूर दूर तक सुनसान सपाट…पिता पर्वत समान
तुम्हारे वियोग के साथ ही चला जाता है बचपन। आ जाता है जिम्मेदारियों का पहाड़।। पार हो जाते है एक साथ उम्र के कई पड़ाव। याद आता है तम्हारा डांटना।। कभी हाँथ थाम कर दिखाना राह। छिपाने से भी नहीं छिपता था।। भीतर का स्नेह करुणा भाव…पिता पर्वत समान।
मैं जानता हूँ अब कभी नहीं आओगे। फिर भी स्मृतियों में सदा रहते हो साथ।। इसी से मिलता है सम्बल। जीवन के प्रति विश्वास…पिता पर्वत समान।