एक अध्यापक ने विद्यार्थियों का कौतुहलवश एक परीक्षण किया। परीक्षण उन्होंने प्रयोगशाला में नहीं बल्कि अपने छात्रों के व्यवहार पर ही किया। उन्होंने अपने सभी छात्रों से कहा कि ’ आप सभी एक पर्चे पर उस सहपाठी का नाम लिख दें, जिसको आप पसंद नहीं करते हैं, जो आपको अच्छा नहीं लगता है। फिर वह पर्चा एक लिफाफे में बंद कर मुझे दे देवें। वह पर्चा मैं किसी को नहीं दिखाऊंगा और आपके दिए गए नामों को सिर्फ मैं ही देखूंगा। ’
सभी विद्यार्थियों ने कागज पर
सभी विद्यार्थियों ने कागज पर अपने उन सहपाठियों के नाम लिखे, जिनको वह नापसंद करते थे। फिर उन्होंने वह कागज अपने शिक्षक को दे दिए। अध्यापक ने उन सभी कागजों का निरीक्षण किया। सभी छात्रों ने अपने उन सहपाठियों के नाम लिखे थे, जिनको वह नापसंद करते थे। सभी छात्रों में एक छात्र ऐसा भी था, जिसने लिखा था कि मुझे कोई भी नापसंद नहीं है। मुझे सभी अच्छे लगते हैं और सभी सहपाठी मेरे अच्छे मित्र हैं।
अध्यापक यह जानकर आश्चर्य भी हुआ और प्रसन्नता भी हुई कि सभी छात्र- छात्राओं के नाम एक-दूसरे की पसंद-नापसंद की सूची में आ गए थे, परन्तु उस छात्र का नाम किसी ने भी नहीं लिखा था। उस छात्र से सभी ने प्रेम और मित्रवत व्यवहार रखा था। इस घटना को एक अरसा बीत गया और सभी छात्रों में यह जानने की उत्कंठा पैदा हुई कि कौन उनको पसंद करता है कौन नहीं।
छात्रों ने अध्यापक से इस बात की जानकारी लेने की कोशिश भी की, लेकिन वह इस बात का उत्तर टाल गए। एक स्थिति ऐसा आई कि सभी छात्रों ने मिलकर अध्यापक से अनुरोध किया, लेकिन अध्यापक ने फिर भी मना कर दिया। एक दिन अध्यापक ने कक्षा शुरू होने से पहले प्रार्थना में कहा कि ’ जिसको किसी ने नकारा नहीं है वह सबका प्रिय पात्र है। ’