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इन 6 फैक्टर्स के ईर्द-गिर्द हो रहे हैं उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव, सभी पार्टियों ने झोंकी पूरी ताकत

     दया शंकर चौधरी

उत्तर प्रदेश में चुनावी शंखनाद हो चुका है, 403 विधानसभा सीट वाले इस राज्य की सत्ता पर काबिज होने के लिए देश की शीर्ष राजनीतिक दलों के बीच नूरा-कुश्ती का दौर अभी चल रहा है। सत्तारूढ़ बीजेपी जहां पांच साल में सरकार के कामों को गिनाकर वोटर्स का मन लुभाने की कोशिश में लगी है तो वहीं विपक्ष इन दावों को खोखला बताते हुए सरकार की विफलताओं को रेखांकित कर रहा है। दावों और वादों के अलावा भी कुछ कारक हैं, जो उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

ध्रुवीकरण: चुनाव में वोटर्स का ध्रुवीकरण करके वोट बटोरना राजनीतिक दलों का पुराना हथकंडा रहा है। उत्तर प्रदेश भी इससे अछूता नहीं है, यहां जारी बयानबाजी का दौर इसकी बानगी है। पिछले दिनों लखनऊ में हो रहे एक कार्यक्रम में खुद सीएम योगी ने कहा था कि यह चुनाव 80 बनाम 20 फीसदी का होगा। राजनीति के जानकार मानते हैं कि चुनावों में एआईएमआईएम और ओवैसी की मौजूदगी भी ध्रुवीकरण को हवा दे रही है। हालिया राज्यों में हुए चुनाव में उनका सियासी कद भी बढ़ा है और वोटबैंक भी। इधर अखिलेश यादव, प्रियंका गांधी और मायावती भी योगी सरकार के किलेबंदी में सेंध लगाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।

जातिवाद: उत्तर प्रदेश का चुनावी इतिहास इस बात का गवाह है कि राज्य की राजनीति में जातियों का बोलबाला रहता है। हर जाति का अपना एक अलग वोट बैंक है, कुछ जातियों और वर्ग विशेष पर राजनीतिक दलों का प्रभाव भी माना जाता है। यहां ओबीसी मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा 52 फीसदी है। इसी वजह से 1990 के बाद इसका राजनीति में दबदबा बढ़ गया। अब 2022 में पिछड़ा वर्ग में शामिल 79 जातियों पर अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए सियासी रस्साकस्सी तेज हो रही है। राज्य में सवर्ण मतदाताओं की आबादी 23 फ़ीसदी है, जिसमें सबसे ज्यादा 11 प्रतिशत ब्राम्हण, 8 फ़ीसदी राजपूत और 2 फ़ीसदी कायस्थ हैं। ऐसे में इन्हें सामूहिक रूप से किंगमेकर भी माना जाता है।

कानून व्यवस्था: उत्तर प्रदेश एक घनी आबादी वाला राज्य माना जाता है, यहां की कानून व्यस्था पिछले कई दशकों में सवालों के घेरे में रही है। 2017 में योगी सरकार ने सत्ता में आने के बाद इसे सुधारने के दावे किए, कई बड़े कदम उठाए गए लेकिन इस बीच बड़ी घटनाओं ने राष्ट्रीय स्तर की सुर्खियों में जगह बनाई। सरकार दावे करती रही कि कानून व्यवस्था पर नियंत्रण है लेकिन विपक्ष को लगातार मौके मिलते रहे, जिससे सरकार पर सवाल उठाए जा सकें। इन चुनावों में विपक्ष कानून व्यवस्था को लेकर लगातार आक्रामक है।

महंगाई: पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों से लेकर सब्जियों तक की कीमतों में आया उछाल जनता के लिए परेशानी का सबब है। इस मुद्दे को लेकर भी विपक्ष लामबंद है और सरकार गोलमोल जवाब दे रही है। महंगाई का मुद्दा भी चुनावों में जमकर उछाला जा रहा है।

कोरोना: कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में उत्तर प्रदेश में भी हाहाकार की स्थिति बनी थी, अस्पतालों में बेड से लेकर ऑक्सीजन तक के लिए लोग भटकते नजर आए लेकिन सरकार का कहना है कि राज्य में ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई, जबकि गंगा में तैरती लाशों ने अंतररार्ष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी थी। इस दाग को धोने के लिए सरकार नए प्रयास कर रही है लेकिन विपक्ष इन तस्वीरों का चुनाव में अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने से गुरेज नहीं कर रहा है।

मुफ्त का वादा: सत्तारूढ़ बीजेपी जहां चुनावों से पहले जनता को मुफ्त राशन और मोबाइल-टैबलेट दे रही है तो वहीं अन्य दलों में सत्ता में आने के लिए तमाम तरह के वादे किए जा रहे हैं, जिसमें बिजली बिल बकाये की माफी से लेकर मुफ्त तीर्थ यात्रा, पुरानी पेंशन की बहाली और किसानों को एमएसपी तथा सस्ती खाद तक शामिल हैं।

● लखनऊ में चौथे चरण के मतदान के बाद वोटर्स का मूड
● महंगाई बेरोजगारी के बाद राष्ट्रवाद और मुफ्त के राशन का मुद्दा हावी
● यूपी में सभी मुद्दों के समाधान के तौर पर “गौवंश को राज्यमाता का दर्जा” दिए जाने की मांग बना एक अनोखा मुद्दा

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में चौथे चरण के मतदान के दौरान लोगों में भारी उत्साह देखा गया। मंगलवार तक चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं ने पूरी तरह खामोशी बनाये रखी थी, किन्तु आज विभिन्न पोलिंग बूथों पर वोट डाल कर लौट रहे मतदाताओं ने चुनावी मुद्दों पर खुल कर बात की। मतदाताओं को टटोलने पर पता चला कि वे अपने-अपने मुद्दे को लेकर राजनैतिक दलों और प्रत्याशियों पर पैनी निगाह बनाये हुए हैं और अपने मनमुताबिक प्रत्याशी और राजनैतिक दलों का का चुनाव करने की तैयारी पहले से कर चुके हैं।

मतदान के बाद पोलिंग बूथ से बाहर निकल रहे लोगों से मुफ्त का वादा, महंगाई, कानून व्यवस्था, जातिवाद, धार्मिक ध्रुवीकरण, बेरोजगारी, राष्ट्रवाद आदि विषयों पर जब बात की गई तो पता चला कि लोगों ने यूपी की सरकार चुनने के लिए अपने मुद्दे पहले ही तय कर लिए थे। अधिकांश लोगों ने मंहगाई और बेरोजगारी को मुख्य समस्या मानते हुए मतदान किया। लखनऊ मध्य क्षेत्र में स्थानीय समस्याओं के साथ-साथ दलगत राजनीति का असर भी देखने को मिला। इसके अलावा सभी ने एक स्वर से बेरोजगारी और मंहगाई को परेशानी का सबसे बड़ा कारण बताया। नाम न छापने की शर्त पर एक वोटर का कहना था कि वर्तमान सरकार ने मंहगाई और बेरोजगारी के लिए कुछ नहीं किया। पेट्रोल सहित रोजमर्रा की चीजों की कीमतें आसमान छू रही हैं। ऐसे में आम आदमी कहां जाए। लोग जैसे तैसे जीवन गुजारने को मजबूर हैं। कुछ लोगों ने लखनऊ की गंगा जमुनी तहजीब को बचाए रखने की वकालत की। मतदाताओं के मन में जातिवाद कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। लेकिन धार्मिक ध्रुवीकरण को लोगों ने कतई पसंद नहीं किया। इसे वोट बटोरने का फार्मूला बताते हुए मतदाताओं का कहना है कि भाईचारा लखनऊ की सदियों पुरानी परम्परा है। यहां पड़ोसियों को जाति व धर्म से नहीं देखा जाता। पड़ोसियों को दाहिना हाथ बताते हुए एक सज्जन ने बताया कि हमारे यहाँ किसी भी सुख दुःख के मौके पर रिश्तेदार बाद में आते हैं, सबसे पहले पड़ोसी आ जाते हैं।

लखनऊ पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में जब मुफ्त के राशन, दवाई और फ्री बिजली के मुद्दे पर बात की गई तो इस पर लोग ज्यादा आकर्षित होते हुए दिखाई नहीं दिए। मतदाताओं का कहना था कि अगर रोजगार मिल जाए तो किसी को भी मुफ्त की जरूरत नहीं पड़ेगी। आसमान छूती मंहगाई कम होने पर दिहाड़ी मजदूर भी इज्ज़त की रोटी खा सकता है। राष्ट्रवाद पर यहां के लोगों का कहना है कि इस मुद्दे को धर्म से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए। हिन्दुस्तान में रहने वाले सभी लोग राष्ट्रवादी हैं। जरूरत पड़ने पर सभी लोग अपनी अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटने वाले। कैंट विधानसभा क्षेत्र में कुछ लोगों का रुझान मंहगाई, बेरोजगारी, धार्मिक ध्रुवीकरण से अलग हट कर एक नये मुद्दे की ओर देखने को मिला। कैंट के सदर बाजार क्षेत्र में वोट डाल कर लौट रहे सुनील कुमार वैश्य और अशोक कुमार वैश्य ने खुल कर बताया कि मंहगाई, बेरोजगारी, धर्म, और जातिवाद का सम्पूर्ण समाधान गौवंश की सुरक्षा है।

स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि यदि राज्य सरकार गौवंश का संरक्षण करने की कोई नीति बना ले तो तमाम समस्याएं अपने आप हल हो जाएंगी। गौवंश एक ऐसा जीव है जो हर तरह से सभी के लिए उपयोगी है। गाय के दुग्ध पदार्थ से लेकर गोबर और गोमूत्र तक सभी कुछ उपयोगी है। सुनील कुमार का कहना है कि अकेले गोबर और गोमूत्र के सद्उपयोग की योजना सरकारी स्तर पर बना ली जाये तो लोगों को एक ओर रोजगार मिल सकेगा दूसरी ओर पर्यावरण संरक्षण भी हो सकेगा। इसके अलावा रासायनिक खाद के बजाय उन्नत किस्म की जैविक खाद मिल सकेगी। एक अन्य मतदाता जितेन्दर सिंह का कहना था कि जब तक गाय को राज्यमाता का दर्जा देकर सरकारी नीतियां और कानून नहीं बनाए जाएंगे, तब तक न तो गौ उत्पाद का फायदा मिल सकेगा और न ही गाय का संरक्षण हो सकेगा।

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