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नाका गुरुद्वारा में साहिब श्री गुरु हरिगोबिन्द साहिब का प्रकाश पर्व (जन्मोत्सव) एवं आषाढ़ माह संक्रान्ति पर्व मनाया गया

लखनऊ। मीरी पीरी के मालिक, बन्दी छोड़ दाता, सिखों के छठे गुरु श्री गुरु हरिगोबिन्द साहिब जी का प्रकाश पर्व (जन्मोत्सव) एवं आषाढ़ माह संक्रान्ति पर्व ऐतिहासिक गुरूद्वारा श्री गुरू नानक देव जी नाका हिंडोला,लखनऊ में 15. जून (बुधवार) को बड़ी श्रद्धा एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।

प्रातः श्री सुखमनी साहिब के पाठ के उपरांत रागी जत्था भाई राजिन्दर सिंह जी ने अपनी मधुरवाणी में आषाढ़ “तपंदा तिसु लगै हरि नाहु न जिंना पास।।” शब्द कीर्तन गायन किया। मुख्य ग्रन्थी ज्ञानी सुखदेव सिंह ने आषाढ़ माह पर व्याख्या करते हुए बताया कि आषाढ़ का महीना तपश से भरा हुआ होता है इस माह में श्री गुरु अरजन देव जी के उपदेश द्वारा क्रोध की अग्नि नाम जपने व ध्यान करने से शान्त हो सकती है। प्रभु भक्ति एवं वाहिगुरु के नाम की ठंडक की वजह से ही श्री गुरु अरजन देव जी गरम तवे पर बैठकर भी मुस्कराते रहे और कहा कि हमारा हृदय नाम जपने से शान्त और ठंडक भरा है। हमें इसकी गर्मी महसूस नहीं होती।

शाम का विशेष दीवान श्री रहिरास साहिब के पाठ से आरम्भ हुआ उसके उपरांत हजूरी रागी भाई राजिन्दर सिंह ने अपनी मधुरवाणी में शबद कीर्तन एवं नाम सिमरन द्वारा समूह संगत को निहाल किया। ज्ञानी सुखदेव सिंह ने श्री गुरु हरिगोबिन्द साहिब जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि गुरू जी का जन्म श्री गुरु अरजन देव जी व माता गंगा जी के घर श्री अमृतसर में हुआ था। श्री गुरु अरजन देव जी की शहीदी के बाद आप गद्दी पर विराजमान हुए व दो तलवारें धारण की एक मीरी की और एक पीरी की। मीरी का मतलब बादशाहत, ताकत, शक्ति, भाव जो लोग दुनिया में जुल्म कर रहे है मैं मीरी की तलवार पहन कर उन्हें जुल्म करने से रोकूंगा और पीरी का मतलब जो लोग पीर फकीर अधर्मी बनकर पाप कर रहे हैं, मैं उनके पाप को प्रकट करुंगा व सच्चे धर्माथियों की रक्षा करुंगा। जहाँ श्री गुरु अरजन देव जी ने श्री अमृतसर में हरिमन्दिर साहिब की सर्जना की जो भक्ति का प्रतीक है, वहाँ श्री गुरु हरिगोबिन्द साहिब जी ने हरिमन्दिर साहिब के ठीक सामने अकाल तख्त की सर्जना की जो शक्ति का प्रतीक है।

गुरु जी ने दुनिया के भले के लिये पानी की कमी को देखकर जगह-जगह कुएं खुदवाये और ऊँच नीच के भेदभाव को खत्म किया। गुरु जी की दिन प्रतिदिन बढ़ती ताकत को देखकर जुल्म का शिकार हुए ईर्शालु सहन न कर सके व गुरु जी को ग्वालियर के किले में बन्द कर दिया। जहाँ मुगल बादशाह जहाँगीर के सताये हुए 52 हिन्दू राजा भी कैद थे जिनका राजपाट जहाँगीर ने अपने कब्जे में कर लिया था, पर कुछ समय बाद जहाँगीर ने गुरु जी को मुक्त करने का आदेश दिया। गुरु जी ने कहा हम अकेले किले से बाहर नहीं जायेंगे। अगर हमें रिहा करना है तो इन 52 हिन्दू राजाओं को भी रिहा करना होगा। जहाँगीर को गुरु जी की शर्त माननी पड़ी। इस तरह गुरु जीे उन 52 हिन्दू राजाओं को लेकर किले से बाहर निकले और उनका राजपाट वापस दिलवाया। तभी से गुरु जी को ‘‘बन्दी छोड़ दाता’’ भी कहा जाता है।

विशेष रूप से पधारे बीबी कंवलजीत कौर मसकीन मारकंडा वालों ने ‘पंज पिआले पंज पीर छठमु पीरु बैठा गुर भारी।’ अरजन काइआ पलटि कै मूरति हरिगोबिन्द सवारी।गायन कर समूह संगत को मंत्र मुग्ध कर दिया। कार्यक्रम का संचालन सतपाल सिंह मीत ने किया। लखनऊ गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी एवं ऐतिहासिक गुरूद्वारा श्री गुरू नानक देव जी नाका हिंडोला लखनऊ के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह बग्गा ने समूह संगत को आषाढ़ माह संक्रान्ति पर्व एवं श्री गुरु हरिगोबिन्द साहिब जी के प्रकाश पर्व (प्रकाशोत्सव) की बधाई दी। दोनों दीवानों की समाप्ति के पश्चात हरमिन्दर सिंह टीटू महामंत्री की देखरेख में दशमेश सेवा सोसाइटी के सदस्यों द्वारा पूड़ी-आलू,खीर, मिस्से प्रसादे एवं लस्सी का लंगर वितरित किया गया।

रिपोर्ट -दयाशंकर चौधरी 

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