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बसपा की मुसीबत नहीं हो रही कम

लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी में अनुशासन को शीर्ष पर रखने की पार्टी मुखिया मायावती की वरीयता अब पार्टी के लिए मुसीबत बन रही है। मायावती का पार्टी के नेता के साथ कार्यकर्ता पर अनुशासन के नाम पर सख्त रवैया पार्टी में बाहर से आने वाले लोगों के कदम खींच रहा है।

मायावती की सख्ती भी

बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती की सख्ती भी बहुजन समाज पार्टी के लिए मुसीबत बनती जा रही है। गत एक माह में दो दर्जन से अधिक वरिष्ठ नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाने से संगठनात्मक गतिविधियां भी प्रभावित हो रही हैं। संगठन का हाल देखकर बसपा नेतृत्व ने विधान परिषद स्नातक व शिक्षक क्षेत्र निर्वाचन से किनारा कर लिया है। इतना ही नहीं, अगले वर्ष होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की तैयारी भी ठप पड़ी है।

बहनजी की सख्ती की मार पूर्वांचल से लेकर पश्चिम तक लगातार बढ़ती जा रही है। पूर्व विधायक रविंद्र मोल्हू, मेरठ की महापौर सुनीता वर्मा, पूर्व विधायक योगेश वर्मा, उत्तराखंड प्रभारी रहे सुनील चित्तौड़, पूर्व मंत्री रामवीर उपाध्याय, नारायण सिंह सुमन, पूर्व विधायक कालीचरण सुमन, तिलकचंद अहीरवार, वीरू सुमन, भारतेंदु अरुण, मलखान सिंह व्यास, कमल गौतम, प्रेमचंद और विक्रम सिंह जैसे नेताओं का निष्कासन कार्यकर्ताओं को हजम नहीं हो पा रहा है।

पुराने एवं समर्पित कार्यकर्ताओं को मलाल है कि बसपा प्रमुख मायावती की कार्रवाई के शिकार दलित नेता ही अधिक बन रहे हैं। एक पूर्व विधायक का कहना है कि मुस्लिम नेताओं की खामियों को अनदेखा किया जा रहा है। केवल दलित ही साफ्ट टारगेट बनाए जा रहे हैं। उनका कहना है कि सक्रिय नेताओं को एक-एक करके पार्टी से बाहर करना 2022 में भारी पड़ेगा। हाल के उपचुनावों में भी बसपा को नुकसान उठाना पड़ा था। समाजवादी पार्टी से गठबंधन तोडने को लेकर भी कार्यकर्ताओं का एक खेमा नाराज उनका कहना है कि इस फैसले से बसपा का दलित-मुस्लिम गठबंधन भी कमजोर पड़ा है।

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