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शिक्षामित्रों का बुरा हाल, दर्द सुनने वाला कोई नहीं

परिषदीय विद्यालयों में कार्यरत शिक्षा मित्रों का बुरा हाल है, शिक्षकों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर शिक्षण ब्यवस्था का कार्य करने वाले अल्प मानदेय में नौनिहालों को शिक्षा दे रहे हैं।
शिक्षा मित्रों की समस्याओं को सरकार व विभाग के समक्ष रखने वाले शिक्षक नेता राजेश मिश्र ने बताया कि किससे समस्या रखे जब कोई बात पर अमल नहीं करता।


वर्ष 2004 के पहले शिक्षा मित्रों की नियुक्ति बेसिक शिक्षा विभाग के निर्देश पर ग्राम शिक्षा समिति की ओर से की गई, जिससे वर्ष 2004 के पूर्व नियुक्त शिक्षा मित्रों का मानदेय बेसिक शिक्षा विभाग करता है, जबकि वर्ष 2004 के बाद वर्ष 2010 तक ग्राम शिक्षा समिति की ओर से नियुक्त शिक्षा मित्रों का मानदेय सर्व शिक्षा अभियान की ओर से किया जाता है।

विकास खंड मेजा के 75 ग्राम पंचायतों में परिषदीय विद्यालयों में कार्यरत शिक्षा मित्रों की संख्या लगभग 150 है। उधर विकास खंड उरूवा में स्थित 150 संविलियन विद्यालयों में शिक्षा मित्रों की संख्या 117 है, इनमें दो शिक्षा मित्र की दुर्घटना में मौत हो चुकी है। सूत्रों की मानें तो शिक्षा मित्रों को पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने एन सी टी ई से परमिशन लेकर दूरस्थ शिक्षा विधि से प्रदेश के एक लाख 24 हजार शिक्षकों को प्रशिक्षण दिलाया इसके बाद अखिलेश यादव की सरकार ने स्थाई शिक्षक का दर्जा देते हुए बेसिक शिक्षा विभाग के स्कूलों में समायोजित कर दिया। कई माह तक वेतन पाने वाले ऐसे शिक्षकों को कोर्ट ने फिर शिक्षा मित्र पद पर वापस कर दिया। अपने हक की लड़ाई लड़ते हुए शिक्षा मित्रों ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली, जहां सरकार की हाई पावर कमेटी सही पैरवी नही कर सकी, जिससे शिक्षा मित्रों को सफलता नहीं मिल सकी। शिक्षक नेताओं की पैरवी पर सरकार ने परीक्षा लेते हुए कुछ शिक्षा मित्रों को समायोजित किया, जबकि हजारों शिक्षा मित्र अब तक अपने मूल पद पर कार्य कर रहे हैं।

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