भारत में प्रारंभ में जिस तरह तमाम देशों को टीके उपलब्ध कराएं, उससे दुनिया को उम्मीदें बढ़ गई हैं। इन उम्मीदों को पूरा करने के साथ भारत अपने घरेलू जरूरतों को तभी सही तरह से पूरी कर सकता है, जब देश में पर्याप्त संख्या में टिको का उत्पादन हो।
“रूस में बने स्पूतनिक नामक टीके के साथ अन्य टिको का भी भारत में जल्द उत्पादन शुरू करने की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जानी चाहिए।”
एक ऐसे समय जब 45 वर्ष से कम आयु वालों को भी कोरोना रोधी टीका लगाने की मांग तेज होने के साथ टीकाकरण की रफ्तार बढ़ाने की भी आवश्यकता है। तब पर्याप्त संख्या में टिको की उपलब्धता सुनिश्चित करने के उपाय किए जाने चाहिए। ऐसे उपाय इसलिए जरूरी है, क्योंकि कोविशिल्ड टीके का उत्पादन करने वाले सिरम इंस्टीट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला यह कह रहे हैं कि टिका उत्पादन की क्षमता बढ़ाने के लिए तीन हजार करोड़ रुपए की दरकार है।
उन पर टिका उत्पादन की क्षमता बढ़ाने का दबाव पहले से है, क्योंकि इस टीके का निर्माण करने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका को ये शिकायत है कि सिरम इंस्टीट्यूट वांछित संख्या में टिके की आपूर्ति नहीं कर पा रहा है। ऐसे में भारत सरकार को यह देखना ही चाहिए कि इस इंस्टीट्यूट के साथ कोवैक्सीन नमक टीका बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक भी कम समय में ज्यादा टिको का उत्पादन करने में समर्थ हो।
“इस पर इसलिए भी ध्यान दिया जाना चाहिए क्योंकि देश के साथ विदेश में भी भारत में बनाए जा रहे टिको की मांग बढ़ रही है।”
यह ठीक है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने टिको की कमी संबंधी कुछ राज्यों के बयानों को खारिज किया, लेकिन इससे इनकार नहीं कि उनका उत्पादन बढ़ाने की जरूरत तो है ही। यदि ऐसा हो सके तो किशोरों को न सही, 20 वर्ष के ऊपर के लोगों को तो टीका लगाने का काम शुरू ही हो सकता है। इसकी आवश्यकता इसलिए महसूस की जा रही है, क्योंकि एक तो अब अपेक्षाकृत कम आयु वाले कोरोना संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं और दूसरे, कुछ देश अपनी युवा आबादी को भी टीकाकरण कर रहे हैं। तथ्य यह भी है कि दुनिया के कई देश जहां 40 – 50% आबादी का टीकाकरण कर चुके हैं, वही भारत अभी 10% के आंकड़ों को भी नहीं छू सका है। बड़ी आबादी वाला देश होने के नाते ऐसा होना स्वाभाविक है, लेकिन आज की आवश्यकता तो यही है कि जितनी जल्दी संभव हो ज्यादा से ज्यादा लोगों को टिका लगे।
शाश्वत तिवारी