अयोध्या। ‘रामनवमी’ यह शब्द ही अपने आप में एक अतीत को व्यक्त कर रहा होता है। वैसे तो प्रत्येक कल्प के मन्वंतरों में त्रेतायुग में भगवान राम का अवतार होता है किंतु यदि वर्तमान चतुर्युगी की बात करें तो आज से लगभग 9 लाख वर्ष पूर्व चैत मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि (नौमी तिथि मधुमास पुनीता) को मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु राम ने श्री अयोध्या में अवतीर्ण होकर रिक्ता कही जाने वाली तिथि को पूर्ण करते हुए अपनी आदर्श लीलाओं के द्वारा संसार के मानव के समक्ष उत्कृष्ट मानवता के आदर्शों की स्थापना की थी।
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उनका चरित्र न केवल विरक्त साधु-सन्यासियों के लिए अपितु गृहस्थों के लिए भी संजीवनी हैं। गृहस्थ जीवन में जिन-जिन संबंधों और समस्याओं से वास्ता पड़ता है रामायण में उन सबका समाधान अंकित हैं। भारतीय संस्कृति के उन्नत आदर्श का स्मरण कराता हुआ यह पर्व आज भी पथभ्रष्ट मानव समाज के सामने सुख एवं शांति के सच्चे मार्ग को प्रस्तुत करने में समर्थ है।
आज जब संसार में सर्वत्र स्वार्थ और लोलुपता का बोलबाला है, सभी प्राणी अपना कर्तव्य भूल कर अपने हित को ही सर्वोपरि मन कर जात, समाज, धर्म और संस्कृति को स्वार्थ की बलि वेदी पर उत्सर्ग करने में नहीं हिचकिचाते। भाई-भाई, पिता पुत्र, सास बहू, मित्र-मित्र की रात दिन की कलह ने जब जीवन को नरक से भी बततर बना दिया हो, तब रामनवमी जैसे त्योहारों की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। आज आवश्यकता है प्रभु राम के आदर्शों को समझने और समझाने की।
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रामनवमी की महत्ता का उल्लेख करते हुए महंत दिनेशाचार्य महाराज ने बताया कि श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।हिंदू संस्कृति की पूर्ण प्रतिष्ठा उनके चरित्र में समाहित है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के लिए उसमें आदर्श है। हिंदू संस्कृति का स्वरूप ‘श्रीरामचरित मानस’ के दर्पण में पूर्णता प्रतिबिंबित हुआ है।
‘श्री वाल्मीकि रामायण’ और गोस्वामी तुलसीदास जी के ‘श्रीरामचरित मानस’ श्रीराम के मंगलमय चरित्र से लोक में कल्याण का प्रसार करते हैं। भारत का वह आदर्श आज मानवमात्र का गेय,-ध्येय बने, तभी मानव सुसंस्कृत बन सकेगा।यह रामनवमी पर्व केवल मंदिरों में ही नहीं अपितु प्रत्येक घर में मनाया जाना चाहिए। वस्तुतः प्रभु राम की आज्ञा का पालन तथा उनके आदर्शोँ को समझना चाहिए।
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उनका चरित्र न केवल विरक्त साधु-सन्यासियों के लिए अपितु गृहस्थों के लिए भी संजीवनी हैं। गृहस्थ जीवन में जिन-जिन संबंधों और समस्याओं से वास्ता पड़ता है रामायण में उन सबका समाधान अंकित हैं। भारतीय संस्कृति के उन्नत आदर्श का स्मरण कराता हुआ यह पर्व आज भी पथभ्रष्ट मानव समाज के सामने सुख एवं शांति के सच्चे मार्ग को प्रस्तुत करने में समर्थ है।
आज जब संसार में सर्वत्र स्वार्थ और लोलुपता का बोलबाला है, सभी प्राणी अपना कर्तव्य भूल कर अपने हित को ही सर्वोपरि मन कर जात, समाज, धर्म और संस्कृति को स्वार्थ की बलि वेदी पर उत्सर्ग करने में नहीं हिचकिचाते। भाई-भाई, पिता पुत्र, सास बहू, मित्र-मित्र की रात दिन की कलह ने जब जीवन को नरक से भी बततर बना दिया हो, तब रामनवमी जैसे त्योहारों की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। आज आवश्यकता है प्रभु राम के आदर्शों को समझने और समझाने की।
रामनवमी की महत्ता का उल्लेख करते हुए महंत दिनेशाचार्य ने बताया कि श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।हिंदू संस्कृति की पूर्ण प्रतिष्ठा उनके चरित्र में समाहित है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के लिए उसमें आदर्श है। हिंदू संस्कृति का स्वरूप ‘श्रीरामचरित मानस’ के दर्पण में पूर्णता प्रतिबिंबित हुआ है।
‘श्री वाल्मीकि रामायण’ और गोस्वामी तुलसीदास जी के ‘श्रीरामचरित मानस’ श्रीराम के मंगलमय चरित्र से लोक में कल्याण का प्रसार करते हैं। भारत का वह आदर्श आज मानवमात्र का गेय,-ध्येय बने, तभी मानव सुसंस्कृत बन सकेगा।यह रामनवमी पर्व केवल मंदिरों में ही नहीं अपितु प्रत्येक घर में मनाया जाना चाहिए। वस्तुतः प्रभु राम की आज्ञा का पालन तथा उनके आदर्शोँ को जीवन में आत्मसात करना उनकी सर्वोत्तम पूजा है।
रिपोर्ट-जय प्रकाश सिंह