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वरिष्ठ नागरिकों, पत्रकारों आदि की रेल रियायतें समाप्त करना दुर्भाग्यपूर्ण व जनहित विरोधी: गणेश ज्ञानार्थी

मोदी ने मरहम खूब लगाया, किन्तु नाकारा रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव ने गरीबी की खाल उधेड़कर लहूलुहान किया। पता नहीं किस तुफैल में प्रधानमंत्री ने अश्विनी पर दांव लगाकर रेलवे को अदूरदर्शी व फुके हुए नौकरशाह के हाथों सौंप दिया, जिससे भारतीय रेल सेवा संवर्ग के ईमानदार काबिल अधिकारी और….. 

     गणेश ज्ञानार्थी

इटावा। सामाजिक कार्यकर्ता गणेश ज्ञानार्थी ने एक विज्ञप्ति में कहा है कि ‘‘अच्छे दिन आयेंगे….’’ जैसी उम्मीदें पाले बैठी जनता की आशाओं पर तुषारापात करने का कीर्तिमान हासिल करके नौकरशाह से रेलमंत्री बने अश्विनी वैष्णव ने मोदी सरकार के प्रति जनता को लामबन्द करने का सुनहरा अवसर विपक्ष को प्रदान कर दिया है।

देखना यह है कि जनता की आशावादिता को निराशा के समुद्र में धकेलने वाले मंत्री को प्रधानमंत्री मोदी कब तक ढोते है और अपनी लोकप्रियता को छार-छार करने का अवसर उन्हें प्रदान करते हैं? उन्होंने प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप कर सारी रियायतें शीघ्र बहाल करने की मांग जनहित में की हैं।

सच्चाई यह भी है कि कोरोना काल में अभावग्रस्त जनता पर मरहम लगाने का काम मोदी जी ने खूब किया। बड़ी रेल मंत्री ने दुखी जनता की पीठ पर कोड़े बरसा कर लहुलुहान करने का पाप जमकर किया और रेलवे को अनैतिक अवैधानिक तरीकों से जनता की जेब काटने के सारे उपाय धृष्टता और निर्लज्जता पूर्वक किये, जो मोदी जी की लोकप्रियता को आघात लगाने वाले रहे।

स्तम्भकार ज्ञानार्थी का कहना है कि संसद से स्वीकृत वरिष्ठ नागरिकों समेत पत्रकारों आदि की रेल रियायतों को स्थाई रूप समाप्त करने की घोषणा कोई अकर्मण्य, निराशावादी और अलोकतांत्रिक तानाशाह व्यक्ति ही कर सकता है, जो अश्विनी ने स्वयं को सिद्ध करके बता दिया है। संसद के सदनों को विश्वास में लिये बिना प्रधानमंत्री मोदी की सरकार को मुश्किलों में धकेलने वाले नाकारा रेल मंत्री का यह कथन कि ‘‘बुजुर्गों समेत किसी श्रेणी में रियायतों को बोझ नहीं उठा सकती रेलवे’’ स्पष्ट रूप से जनहित विरोधी है, जो भारत की जनता को किसी भी कोण से अस्वीकार्य होगा।

उन्होंने कहा कि जमीन से जुड़ा कोई समर्पित राजनेता इस प्रकार की बेहूदी घोषणा बिना संसद में बहस के मनमाने ढंग से करने की तो कल्पना भी नहीं कर सकता। मोदी सरकार में सर्वश्रेष्ठ साबित होने वाले मंत्री नितिन गड़करी चाहे कोई लाख उपाय करते मगर ऐसी घोषणा तो कदापि न करते। पता नहीं किस तुफैल में प्रधानमंत्री ने अश्विनी पर दांव लगाकर रेलवे को अदूरदर्शी व फुके हुए नौकरशाह के हाथों सौंप दिया, जिससे भारतीय रेल सेवा संवर्ग के ईमानदार काबिल अधिकारी और अपनी कुशलता के लिये विश्वविख्यात अभियन्ता वर्ग ही नहीं विशाल रेलपरिवार के बहुस्तरीय कर्मी भी बेहद दुःखी हैं, जिनकी पीड़ा यदि प्रधानमंत्री के कानों तक पहुंचती तो उन्हें अपने फैसले पर खुद तकलीफ होती।

ज्ञानार्थी ने कहा कि रेलवे भारतीय जनता की समपत्ति है, न कि किसी पूूंजीवादी घराने की समपत्ति, जिसमें भ्रष्टाचार रोकने, सम्पत्तियों की बर्बादी रोकने और आय बढ़ाने के नैतिक उपाय करने की माथापच्ची करने में विफल रेलमंत्री मोदी सरकार के लिये अभिशाप सिद्ध हुए हैं, जिन्हें यह कहने में जरा सी भी लज्जा नहीं आई कि टिकटों में 50 प्रतिशत भार रेलवे पहले ही वहन कर रही है। जबकि सच्चाई यह है कि गरीब जनता अधिकारियों आदि पर 50 गुने से अधिक वेतन व्यय करने को अभिशप्त है। यदि अश्विनी जी अपनी विलासिता और अंहकार त्याग कर रेल पूर्व मंत्रियों की कार्य निष्ठा और जनहितकारी कदमों से कुछ सीखने का हौसला पैदा करते तो इतनी निर्लज्जता से अपनी नाकामियों को बोझ जनता के सर पर डालने का दुर्भाग्यपूर्ण पराक्रम नहीं कर सकते थे।

उन्होंने कहा कि कोरोना काल के नाम पर जनता 10 रुपये टिकट की यात्रा 35 रु0 में करने को अर्थात पैसेन्जर ट्रेन की यात्रा एक्सप्रेस किराये में करने को अभिशप्त इसलिये है कि अश्विनी जैसे अविवेकवान संवेदनहीन मंत्री को मोदी जी ढो रहे हैं और जनता अभी तक मोदी जी के नाम पर ज्यादतियां बर्दाश्त कर रही है।

विज्ञप्ति के अनुसार जार्ज फर्नाण्डीज, माधवराव सिंधिया, रामविलास पासवान, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी एवं सुरेश प्रभु, जैसे लोकप्रिय रेल मंत्रियों और सीके जाफर शरीफ, सदानन्द गौड़ा जैसे नाकारा और विवादित रेलमंत्रियों पर विगत दशकों में लगातार समीक्षात्मक टिप्पणियां, प्रशंसायें और जनहितकारी समालोचनायें प्रसारित करने वाले स्तम्भकार ज्ञानार्थी का कहना है कि अश्विनी जी के तमाम फैंसलों पर लाल झण्डे वाली यूनियनों के मालिकान क्यों उत्साहित हैं, यह जांच का विषय है।

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