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एकता की अलख

स्वाति 'सरु' जैसलमेरिया

एकता की अलख

हर दिशा से उठ रही
अराजकता की चिंगारियां
नफरत की आग में
जल रही है मानवता
मैं कौनसी एकता की अलख जगाऊँ
जुंझ रहे है सभी कोरोना महामारी से
मैं दानवों के दल से इंसान कहाँ से लांउ

हे स्वार्थी मनुष्य जाति तुम्हें प्रकृति कैसे माफ करेगी
तुम्हे तुम्हारें काले कारनामों की सज़ा जरूर मिलेगी
आंतकी इरादों की हार जरूर होगी
दानवों चेत जाओ तुम्हें क्या दंड की परिभाषा सिखाऊं
मैं दानवों के दल से इंसान कहाँ से लांउ

कुछ भी न कर पाने की ये हताशा
ये कैसी लाचारी ,ये कैसी विवशता
सब कुछ राख हो रहा
सब कुछ खाक हो रहा
कैसे सभी धर्मों से मनुष्य धर्म का मेल कराऊ ..
मैं दानवों के दल से इंसान कहाँ से लांउ

स्वाति ‘सरु’ जैसलमेरिया

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