माँ गांधारी
सुनो हे! गांधारी माँ तुम से कुछ कहना चाहती हूँ,
महाभारत खत्म जीवन की,खुश रहना चाहती हूँ।महाभारत सी घटना घटी है,मेरे भी इस जीवन में,
जिसकी थकन अभी तक बाकी हैं मेरे तन मन में।जल्दी ही गुजरा मेरा बचपन और जवानी पूरी हुई,
आधी अधूरी और एक कड़वी सी कहानी पूरी हुई।जीवन में यूँ कभी किसी के ऐसे भी दुर्दिन फिरे नहीं,
किसी और का दुखड़ा किसी और हिस्से गिरे नहीं।मन की चिड़िया उड़कर देखती है मुझको चहुंओर,
ऐसे लगता अंबर नाप रहा है नैनों से धरती का छोर।है जीवन का यह तृतीय चरण मेरी सेवा का मोल दो,
सांसरिक मोह माया की पट्टी इन नयनों से खोल दो।मीना सामंत, न्यू दिल्ली
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