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शौर्य व संस्कृति का समन्वय

भारतीय राष्ट्र की अवधारणा अति प्राचीन है। शाश्वत रूप में इसका युगों युगों से अस्तित्व रहा है। यही कारण है कि समय के साथ दुनिया की अनेक सभ्यता संस्कृति विलुप्त हो गई। इनके स्थान पर दूसरी सभ्यताओं का प्रादुर्भाव हुआ। सभ्यताओं के बीच संघर्ष भी चलता रहा है। विदेशी आक्रांताओं के कारण भारत का भूभाग अवश्य कम हुआ है। लेकिन राष्ट्र के रूप में भारत की विरासत आज भी व्यापक रूप में स्थापित है। शौर्य व संस्कृति के समन्वय ने ही भारत को विश्व ग्रुप के रूप में प्रतिष्ठित किया था। शौर्य के बल भारत ने पर कभी अपनी संस्कृति सभ्यता का विस्तार नहीं किया था। किसी के मत को परिवर्तित करने का प्रयास नहीं किया। यहां तो वसुधा को कुटुंब मानते हुए सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना की गई। गणतंत्र दिवस राष्ट्रीय शौर्य के प्रदर्शन का भी अवसर होता है। राष्ट्रीय राजधानी का राजपथ इसका गवाह बनता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से के गणतंत्र दिवस पर शौर्य के साथ भारतीय संस्कृति का सन्देश भी दिया जा रहा है।

पिछले दिनों सरकार ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर अभियान शुरू किया था। इसके अंतर्गत सैकड़ों रक्षा सामग्री के आयात पर प्रतिबंध लगाया गया। इनका निर्माण भारत स्वयं करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद ही इस दिशा में कदम उठाना प्रारम्भ कर दिया था। इसके सकारात्मक परिणाम मिल रहे है। पहले भारत की रक्षा आवश्यकताएं आयात पर ही निर्भर थी।

अब भारत ना केवल स्वावलम्बी व आत्मनिर्भर बन रहा है,बल्कि चालीस से अधिक देशों को सामरिक सामग्री का निर्यात भी करने लगा है। आत्मनिर्भर भारत व मेक इन इंडिया अभियान सफल हो रहा है। भारत मेक फ़ॉर वर्ल्ड की दिशा में अग्रसर है।

पिछले छह वर्षों के दौरान सामरिक सामग्री निर्यात में सात सौ प्रतिशत की वृद्धि हुई है। मध्य पूर्व,दक्षिण पूर्व, एशिया और लैटिन अमेरिकी देशों को आकाश मिसाइल, ब्रह्मोस मिसाइल,तटीय निगरानी प्रणाली,रडार और एयर प्लेटफार्म जैसे सुरक्षा उपकरण और हथियार निर्यात किया जा रहा है। स्वदेशी भारत ड्रोन दुनिया में सर्वाधिक उच्च तकनीक का है। इसके अलावा स्वदेशी एन्टी सबमरीन युद्धपोत आई इन एस कवरत्ती को भी नौसेना में शामिल किया गया है। यह भी राडार के पकड़ में नहीं आता। इसी प्रकार अर्जुन टैंक, पिनाक रॉकेट लांच सिस्टम,आकाश,नाग मिसाइल,तेजस विमान, ध्रुव हेलिकॉप्टर,अग्नि बैलिस्टिक मिसाइल, अस्त्र मिसाइल,अस्मि पिस्टल स्वदेशी है। इस आधार पर भारत कुछ विकसित देशों की बराबरी पर आ गया है। देश में अपाचे लड़ाकू हेलीकॉप्टर, राइफल्स आदि का भी निर्माण होगा। बुलेट प्रूफ जैकेट व बर्फीले क्षेत्रो के लिए जूतों का उत्पादन भी देश में हो रहा है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड का एलसीए तेजस एमके वन ए इसी साल जून में पहली उड़ान भरेगा। भारतीय वायु सेना को अंतिम परिचालन मंजूरी संस्करण के सभी दस हल्के लड़ाकू विमान सौंपने का मार्ग प्रशस्त हुआ। तेजस मार्क वन ए फाइटर जेट की हुई डील टू फ्रंट वार की तैयारियां कर रही भारतीय वायुसेना को नई आसमानी लड़ाकू ताकत देने वाली है। भविष्य में यह स्वदेशी लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना का रीढ़ साबित होगा। विमानों की आपूर्ति संभव हुई है।

दस विमान पहले से ही तैयार थे। कुछ सिस्टम इजरायल से डिलीवर किए जाने थे। एक बार उड़ान शुरू होने के बाद लगभग डेढ़ दो वर्ष का समय परीक्षण के लिए होता है। परीक्षण शुरू होने के बाद उम्मीद के मुताबिक डिलीवरी संभव होती है। तेजस की इस स्वदेशी परियोजना से करीब पांच सौ भारतीय कंपनियों को फायदा होगा जो विमान के अलग अलग पुर्जे देश में ही बनाएंगी। एक वर्ष पूर्व बेंगलुरु में एयरो इंडिया शो के दौरान भारतीय वायुसेना के लिए तिरासी एलसीए तेजस एमके वन ए की आपूर्ति के लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ अड़तालीस हजार करोड़ रुपये के सौदे पर हस्ताक्षर किए थे। इस सौदे के समय रक्षा मंत्रालय ने एचएएल से अगले दो वर्ष में तीन विमान और अगले पांच वर्षों तक प्रति वर्ष सोलह विमानों की आपूर्ति करने को कहा था। एलसीए एमके वन ए का परीक्षण करने के साथ साथ समानांतर विनिर्माण गतिविधियां शुरू करेंगे। उत्पादन बढ़ाने के लिए एचएएल ने पहले ही दो अतिरिक्त असेंबली लाइनें स्थापित की हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस सौदे से एक दिन पहले ही बेंगलुरु में तेजस की नई प्रोडेक्शन यूनिट का उद्घाटन किया था।

भारतीय वायुसेना को मिलने वाले एलसीए तेजस लड़ाकू विमान पैसठ प्रतिशत स्वदेशी होंगे। स्वदेशी रक्षा तकनीक को बढ़ावा देने के लिए देशी उत्तम राडार लगाये जायेंगे। यानी वायुसेना को मिलने वाले विमानों का पहला जत्था इजरायल के राडार की जगह देशी उत्तम राडार से लैस होगा। तिरासी एलसीए एमके वन ए में से तिरसठ विमानों में इलेक्ट्रॉनिक एईएस राडार लगेंगे,जिसके लिए डीआरडीओ और एचएएल में करार हुआ है। वायुसेना के पहले वाले ऑर्डर के चालीस एमके वन विमानों में मैकेनिकल इजराइली राडार लगाये जायेंगे। एचएएल ने तेजस में स्वदेशी सामग्री बढ़ाने का लक्ष्य बनाया था। इस बार का राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस पूरे देश में आजादी का अमृत महोत्सव के रूप में मनाया गया। सरकार ने तय किया है कि अब हर साल गणतंत्र दिवस का पर्व तेईस से तीस जनवरी तक सप्ताह भर का होगा। समारोह तेईस जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती से शुरू होकर तीस जनवरी को शहीद दिवस तक चलेंगे। राजपथ पर होने वाली भव्य परेड में भारत अपनी सैन्य शक्ति और सांस्कृतिक विविधता का प्रदर्शन किया गया।

पहली बार कई अनूठी पहल मुख्य परेड की शुरुआत राष्ट्रीय कैडेट कोर के शहीदों को शत शत नमन कार्यक्रम से हुई। पहली बार भारतीय वायु सेना के पचहत्तर विमान और हेलीकॉप्टर भव्य फ्लाईपास्ट किया। रक्षा और संस्कृति मंत्रालयों की ओर से आयोजित राष्ट्रव्यापी वंदे भारतम नृत्य प्रतियोगिता के माध्यम से चुने गए चार सौ अस्सी कलाकारों राजपथ पर परेड के दौरान अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। प्रत्येक पचहत्तर मीटर में दस स्क्रॉल और दर्शकों के बेहतर देखने के अनुभव के लिए दस बड़ी एलईडी स्क्रीन लगाई गई हैं। राजपथ पर परेड की शुरुआत से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर माल्यार्पण और शहीद वीरों को श्रद्धांजलि अर्पित की। पहली बार वायुसेना की सबसे बड़ी टुकड़ी पचहत्तर विमानों के साथ फ्लाई पास्ट में हिस्सा लिया। पांच राफेल लड़ाकू विमान ने विनाश फॉर्मेशन में राजपथ के ऊपर से उड़ान भरी। वरुण फॉर्मेशन में और पचहत्तर नंबर के आकार में सत्रह जगुआर लड़ाकू विमान आसमान में गर्जना की।

उत्तर प्रदेश की झांकी में काशी विश्वनाथ धाम को दर्शाया गया है। राजपथ पर परेड में उत्तर प्रदेश की झांकी में खास तौर पर विश्वनाथ धाम की झांकी और बनारस के घाट पर संस्कृति की झलक को शामिल किया गया है। गंगा स्नान करते साधु और पूजन करते हुए बटुकों का दल भी था। राजपथ की परेड में ये दूसरा अवसर है, जब काशी की खास झांकी शामिल हुई है। इसके पहले महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की झांकी परेड में शामिल हो चुकी है। काशी विश्वनाथ धाम के नव्य और भव्य विस्तारित स्वरूप को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत वर्ष दिसम्बर को शिवभक्तों और राष्ट्र के लिए समर्पित किया था। अब यह धाम श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है।

मंदिर में दर्शन पूजन करने वालों की संख्या कई गुना बढ़ गई है। इसके निर्माण में बालेश्वर,मकराना,कोटा, ग्रेनाइट,चुनार,मैडोना स्टोन,मार्बल आदि सात तरह के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। गंगा तट मणिकर्णिका घाट और ललिता घाट से धाम तक पचास हजार दो सौ वर्ग मीटर में विस्तारित यह धाम भव्य रूप में प्रतिष्ठित हुआ है। पिछले गणतंत्र दिवस पर यूपी ने अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण की झांकी प्रस्तुत की थी। जिसको प्रथम पुरष्कार मिला था। मंदिर निर्माण का सपना पांच शताब्दी पुराना रहा है। पहले इसका कोई समाधान दिखाई नहीं दे रहा था। अंततः यह सपना साकार हुआ। पांच सदियों का समय कोई कम नहीं होता। ऐसे में मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होना ऐतिहासिक व अभूतपूर्व था। श्री रामभूमि पर मंदिर निर्माण हेतु नरेंद्र मोदी ने भूमि पूजन किया था। उसके हुए गणतंत्र दीवस परेड में इस ऐतिहासिक प्रसंग की अभिव्यक्ति सहज स्वभाविक थी। यह समाधान शांति व सौहार्द के साथ हुआ।

भारत के मूल संविधान में श्रीराम का चित्र भी सुशोभित था। योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में भव्य दीपोत्सव का शुभारंभ किया था। इसके माध्यम से त्रेता युग की झलक दिखाने का प्रयास किया गया। अब यह अयोध्या की परंपरा में समाहित हो गया है। पिछली बार उत्तर प्रदेश की झांकी में दीपोत्सव को भी सजाया गया था। दीपोत्सव की भव्यता रामायण के प्रेरक प्रसंगों पर आधारित झांकी भी प्रदर्शित की थी। इसमें रामायण की रचना करते महर्षि वाल्मीकि,उनके आश्रम और पीछे मंदिर की प्रतिकृति थी। अयोध्या हमारे लिए पवित्र नगरी है और राममंदिर हर आस्थावान के लिए श्रद्धा का विषय है। इस प्राचीन नगरी की प्राचीन विरासत की झांकी का प्रदर्शन किया गया था। झांकी में भगवान राम के प्रतिरूप के साथ कलाकारों का दल था। निषादराज गृह,शबरी के बेर, पाषाण अहिल्या, संजीवनी लाते हनुमान,जटायु राम संवाद और अशोक वाटिका के दृश्य भी आकर्षक थे।

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