राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के रायबरेली से लड़ने के सवाल ने आखिरकार कई सवालों को जन्म दिया है। वहीं प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) का चुनाव न लड़ना भी उनको सवालों के कटघरे में ला खड़ा किया है। भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान राहुल गांधी का नारा “डरो मत, भागो मत” को देखकर शायद यही लग रहा था कि राहुल गांधी अपनी दूसरी राजनीतिक पारी को काफी सोच समझ कर और उसे धार देकर सही पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन लोकसभा चुनाव की तैयारी को लेकर और टिकट वितरण को लेकर के राहुल गांधी की सारी तैयारियां धरी की धरी रह गई।
रायबरेली में नामांकन के अंतिम दिन नामांकन करने वाले राहुल गांधी की दशा उस ग्रामीण लड़के जैसी है, जो परीक्षा के ठीक 1 दिन पहले किताबों को पढ़कर परीक्षा देने जाता है। जिसका उद्देश्य परीक्षा में पास हो करके डिग्री हासिल करने तक रहता है यानी कि अपने आप को उच्च शिक्षा पाने वालों की कतार में खड़ा करना। शायद राहुल गांधी यह सोच रहे होंगे कि अंतिम दिन नामांकन करके पारिवारिक सहानभूति के नाम पर यह चुनाव जीत कर विरासत में मिली इस सीट को बचाकर रखा जा सके।
भाजपा के अन्याय का जवाब है कांग्रेस का न्याय पत्र- प्रियंका गांधी
लेकिन यह सवाल उठता है जिसने देश में जोर-शोर से यह आवाज उठाई की “डरो मत और भागो मत” उसी राहुल गांधी के सामने ऐसी कौन सी मजबूरियां हो गई की वह अमेठी न जाकर के पड़ोस की रायबरेली सीट से चुनाव लड़ना ही बेहतर समझा। लगता है कि राहुल गांधी ने जिस नारे को देश में जोर-शोर से प्रचार प्रसार किया और उसे पूरी तरह से लोगों के जुबान पर लाने का प्रयास किया। उसी राहुल गांधी ने अपने नारों को पैरों तले रौंद कर अमेठी से जाने को मजबूर हुए। क्या राहुल गांधी के अंदर अमेठी में स्मृति ईरानी के सामने लड़ने में साहस नहीं बन पाया, जो साहस उन्होंने दो बार भारत जोड़ो यात्रा निकाल करके दिखाने की कोशिश की।
अमेठी की सांसद स्मृति ईरानी जब पहली बार यहां चुनाव लड़ने आई, तो उन्हें राहुल गांधी के सामने हार का सामना करना पड़ा। लेकिन उनका धैर्य देखिए, इसके बावजूद भी वह अमेठी क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहीं और इसका परिणाम यह हुआ कि अगली बार उन्होंने राहुल गांधी को हराकर के जीत का स्वाद चखा। इसी स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को दक्षिण जाने को मजबूर किया था। अमेठी से राहुल गांधी एक बार क्या हारे उनका अमेठी से नाता हमेशा के लिए टूट गया। उत्तर से दक्षिण की तरफ पलायन कर जाने वाला नेता वापस उत्तर तो आया है मगर बगल वाली विरासत और सुरक्षित सीट का प्रत्याशी बनकर।
दूसरी बात प्रियंका गांधी की। प्रियंका गांधी को ले करके शुरू से ही यह चर्चा चल रही थी कि सोनिया गांधी की जगह अब रायबरेली से प्रियंका गांधी को चुनाव लड़ाया जाएगा यानी रायबरेली के उत्तराधिकार के रूप में प्रियंका गांधी को देखा जाने लगा था। रायबरेली में बाकायदा इसके पोस्टर भी छप चुके थे। लेकिन यूपी विधानसभा चुनाव के समय”लड़की हूं, लड़ सकती हूं” जैसा नारा देकर के देश भर से शाबाशी बटोरने वाली प्रियंका गांधी खुद अपने लिए इसी उत्तर प्रदेश में एक लोकसभा सीट तक हासिल नहीं कर पाई।
इसको देखकर के यह लगता है कि शायद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी में भीतर ही भीतर सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। इससे पहले भी रॉबर्ट वाड्रा ने अपनी इच्छा जाहिर की थी कि वह भी अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं। भाई-बहन की इस लड़ाई में बाजी राहुल गांधी के हाथ तो लगी है। क्या राहुल गांधी रायबरेली और वायनाड दोनों सीटें जीतकर के एक सीट से बहन प्रियंका गांधी को लोकसभा पहुंचने रास्ता साफ करेंगे या वहां भी खेला करके बहन प्रियंका गांधी की बढ़ती लोकप्रियता पर कैंची चलाने का प्रयास करेंगे?
अगर सही मायने में कहे तो कांग्रेस के इन दोनों नेताओं राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने जनता के समक्ष नारे तो बढ़िया दिए हैं। मगर हकीकत में उसे नारे का पालन करने से कतराते हैं या फिर जान बूझकर उसके साथ छेड़खानी जैसी स्थिति बनाते हैं।(व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं)