लॉकडाउन के बीच देश के अलग अलग हिस्सों से अपने घर वापस जा रहे प्रवासी मजदूरों और कामगारों से ट्रेन में किराया वसूले जाने को लेकर देशभर में राजनीति हो रही है। हालांकि भारतीय रेलवे इस विस्बी में स्पष्टीकरण दे चुकी है मगर फिर भी सियासत तो अलग ही राह पर चल रही है।
केरल के तिरुवनंतपुरम से 1129 मजदूरों का जत्था लेकर विशेष ट्रेन सोमवार शाम देवघर के जसीडीह स्टेशन पहुंची। इनमें से अधिकांश मजदूर संतालपरगना के रहने वाले हैं। इसके अलावा साहेबगंज, पाकुड़, गोड्डा, गिरिडीह, गढ़वा, लातेहार, रामगढ़, धनबाद और गुमला जिला के रहने वाले हैं. इन सभी मजदूरों से रेल किराया लिया गया था।
घर लौटे इन मजदूरों और कामगारों का कहना है कि एक-एक मजदूर से 875 रुपये बतौर भाड़ा वसूला गया था, बहुतों को तो टिकट की राशि का जुगाड़ करने में भारी मसक्कत का सामना करना पड़ा, हालांकि इसी में उन्हें यात्रा के दौरान खाने का पैकेट भी उपलब्ध कराया गया था। स्टेशन पहुंचने के बाद सभी मजदूरों को बस से संबंधित जिले में भेजा गया।
इसी तरह सूरत से झारखंड आए 1200 मजदूरों ने भी रेल टिकट दिया। लॉकडाउन के बीच फंसे इन मजदूरों के पास सूरत में खाने पीने का ठिकाना नहीं था तो भला अपने गांव कैसे ट्रेन से यात्रा कर पाते. कई लोगों ने अपने गांव से रुपए मंगाए थे तो किसी ने अपने मालिक से उधार लिए थे। इन मजदूरों से यात्रा के लिए 700-700 रुपये लिए गए थे।
इस बीच झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने रेलवे पर बड़ा सवाल खड़ा किया है। उन्होंने कहा है कि रेलवे ने पीएम राहत कोष में 150 करोड़ रूपये का योगदान दिया है। कहीं ये पैसे मजदूरों से लेकर तो नहीं दिए गए। अगर ऐसा है तो आश्चर्य का विषय है। मजदूरों से रेल किराया लेने की खबरों पर सीएम हेमंत सोरेन ने यह बात कही थी। गौरतलब है कि बिहार और झारखंड से लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर बाहर राज्यों में जाकर बसे हुए हैं।