योगी आदित्यनाथ को अपने सन्यास आश्रम की विरासत में जन्मभूमि मंदिर आंदोलन मिला था। उनकी सदैव इसके प्रति आस्था रही है। यह संयोग है कि मंदिर निर्माण हेतु भूमिपूजन के ऐतिहासिक समय पर वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री है। इस अवसर पर उन्होंने एक विशेष लेख लिखा है। इससे उनकी भावनाओं को समझा जा सकता है। वतर्मान पीढ़ी में ही इस संवेदनशील विषय का समाधान हो गया। भविष्य के लिए समस्या नहीं रहेगी। यह बात योगी को संतुष्ट करती है। उनकी स्मृति में अनेक तथ्य तैरते है,इसमें आस्था की धाराएं है,संवैधानिक दायित्व के प्रति सजगता है,वर्तमान कोरोना संकट से लोगों को सुरक्षित रखने की संवेदना है। लेख में योगी शांति सौहार्द और समरसता के नए युग की कल्पना करते है,इसके लिए लोगों का आह्वान करते है। अयोध्या जी को विश्व स्तरीय विकसित नगरी बनाने का संकल्प लेते है। लिखते है कि विगत तीन वर्षों में विश्व ने अयोध्या की भव्य दीपावली देखी है,अब यहां धर्म और विकास के समन्वय से हर्ष की सरिता और समृद्धि की बयार बहेगी। भूमिपूजन से नए युग का प्रारंभ होगा। यह युग रामराज्य का होगा। इसमें लोक कल्याण का भाव की भावना समाहित होगी। वह स्मृति में अंकित इतिहास के पन्ने पलटते है। इसमें अनेक सन्तों,आश्रमों के साथ गोरक्षपीठ का भी अध्याय है। योगी राम चरित मानस की चौपाई का उल्लेख करते है, जासु बिरह सोचहुँ दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पाती।
रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता। आयउ कुसल देव मुनि त्राता।
भूमि पूजन पर लिखते है कि भाव विभोर कर देने वाली इस वेला की प्रतीक्षा में पांच शताब्दियाँ व्यतीत हो गईं। प्रतीक्षा और संघर्ष का क्रम सतत जारी रहा। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मार्गदर्शन,पूज्य संतों का नेतृत्व एवं विश्व हिन्दू परिषद की अगुवाई में आजादी के बाद चले सबसे बड़े सांस्कृतिक आंदोलन ने न केवल प्रत्येक भारतीय के मन में संस्कृति एवं सभ्यता के प्रति आस्था का भाव जागृत किया अपितु भारत की राजनीति की धारा को भी परिवर्तित किया। श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के प्रथम अध्यक्ष गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ जी महाराज ही थे।
वर्ष 1989 में जब मंदिर निर्माण हेतु प्रतीकात्मक भूमिपूजन हुआ तो भूमि की खोदाई के लिए पहला फावड़ा स्वयं पूज्य गुरूदेव महन्त श्री अवैद्यनाथ जी महाराज एवं पूज्य सन्त परमहंस रामचन्द्रदास जी महाराज ने चलाया था। स्पष्ट है कि योगी आदित्यनाथ बाल्यकाल में ही भावनात्मक रूप में इस आंदोलन से जुड़ गए थे। इतना ही नहीं परतंत्रता काल में श्रीराममंदिर के मुद्दे को स्वर देने का कार्य महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज ने किया था। उन्होंने राम मंदिर निर्माण हेतु सतत् संघर्ष किया। जब कथित विवादित ढांचे में श्रीरामलला का प्रकटीकरण हुआ,उस दौरान वहां तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर, गोरक्षपीठ महंत श्री दिग्विजयनाथ जी महाराज कुछ साधु।संतों के साथ संकीर्तन कर रहे थे। पूज्य संतों की तपस्या के परिणाम स्वरूप राष्ट्रीय वैचारिक चेतना में विकृत, पक्षपाती एवं छद्म धर्मनिरपेक्षता तथा साम्प्रदायिक तुष्टीकरण की विभाजक राजनीति का काला चेहरा बेनकाब हो गया।
श्रद्धेय अशोक सिंघल जी के कारण पहली शिला रखने का अवसर श्री कामेश्वर चौपाल जी को मिला। आज श्री कामेश्वर जी श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के सदस्य हैं। योगी उल्लास की इस बेला में वर्तमान परिस्थितियों को समझने का संदेश देते है। लिखते है कि श्री राम का जीवन हमें संयम की शिक्षा देता है। इस उत्साह के बीच भी हमें संयम रखते हुए वर्तमान परिस्थितियों के दृष्टिगत शारीरिक दूरी बनाये रखना है। क्योंकि यह भी हमारे लिए परीक्षा का क्षण है। इसलिये श्रद्धालु अपने निवास स्थान व पूज्य सन्त एवं धर्माचार्यगण देवमंदिरों में दीप जलाएं।
डॉ. दिलीप अग्निहोत्री