महिलाओं के लिए जरूरी एजुकेशन की मांग करते हुए तालिबानी गोली का शिकार हुईं पाक की 17 वर्ष की सामाजिक कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई को 2014 का नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. मलाला को पाक में स्त्रियों के लिए एजुकेशन को जरूरी बनाए जाने की मांग करने के चलते 9 अक्टूबर के दिन आतंकवादी संगठन तालिबान की गोली का शिकार होना पड़ा था.
1997 में पाक के खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत के स्वात जिले में मलाला का जन्म हुआ. मलाला के वालिद का नाम जियाउद्दीन यूसुफजई है. तालिबान ने 2007 से मई 2009 तक स्वात घाटी पर अपना अतिक्रमण जमा रखा था. इसी बीच तालिबान की दहशत से लड़कियों ने स्कूल जाना बंद कर दिया था. मलाल उस समय आठवीं की छात्रा थीं व उनका ज़िंदगी प्रयत्नयहीं से शुरुआत होता है. जब तालिबान ने स्वात घाटी पर कब्ज़ा कर लिया तो उन्होंने डीवीडी, डांस व ब्यूटी पार्लर पर बैन लगा दिया. 2018 के अंत तक वहां लगभग 400 स्कूल बंद हो गए. इसके बाद मलाल के पिता उसे पेशावर ले आए, जहां उन्होंने नेशनल प्रेस के समक्ष वो विख्यात सम्बोधन दिया जिसका शीर्षक था- हाउ डेयर द तालिबान टेक अवे माय बेसिक राइट टू एजुकेशन? तब वो महज 11 साल की थीं.
सन 2009 में उसने अपने छद्म नाम ‘गुल मकई’ से एक व्यक्तिगत समाचार चैनल के लिए एक डायरी लिखी. इसमें उसने स्वात में तालिबान के कुकृत्यों का पूरा उल्लेख किया था.डायरी लिखते हुए मलाला पहली बार संसार की निगाह में तब आईं, जब दिसंबर 2009 में जियाउद्दीन ने अपनी बेटी की पहचान को सार्वजनिक किया. 2012 में तालिबानी आतंकवादीउस स्कूल बस में घुस आए, जिसमे मलाला सवार थी व आतंकवादियों ने मलाला से सिर में गोली मार दी, गंभीर रूप से घायल मलाला का उपचार ब्रिटेन में चला व वे वहां से स्वस्थ होकर लौटीं, अब तक मलाला संसार भर में अपनी पहचान बना चुकी थीं. मलाला को नोबल पुरस्कार के अतिरिक्त अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार, पाक का राष्ट्रीय युवा शांति पुरस्कार (2011) जैसे कई बड़े सम्मान भी मिल चुके हैं.