देश की पूर्व पीएम डाक्टर मनमोहन सिंह ने नरेन्द्र मोदी सरकार पर हमला कहा है। मनमोहन सिंह ने बोला कि नरेन्द्र मोदी सरकार के चौतरफा कुप्रबंधन के चलते अर्थव्यवस्था में मंदी छा गई है। उन्होंने नोटबंद को एक गलत निर्णय बताया।
मनमोहन सिंह ने कहा, ‘आज अर्थव्यवस्था की स्थिति बहुत चिंताजनक है। पिछली तिमाही जीडीपी (GDP) केवल 5 फीसदी की दर से बढ़ी , जो इस ओर संकेत करती है कि हम एक लंबी मंदी के दौर में हैं। हिंदुस्तान में ज्यादा तेजी से वृद्धि करने की क्षमता है, लेकिन नरेन्द्र मोदी सरकार के चौतरफा कुप्रबंधन के चलते अर्थव्यवस्था में मंदी छा गई है।
‘नोटबंदी एक गलत निर्णय था’
पूर्व पीएम ने कहा, ‘चिंताजनक बात यह है कि विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर केवल 0.6 फीसदी है। इससे साफ हो जाता है कि हमारी अर्थव्यवस्था अभी तक नोटबंदी के गलत निर्णय व जल्दबाज़ी में लागू किए गए GST की नुकसान से उबर नहीं पाई है। ‘
घरेलू मांग में बहुत ज्यादा गिरावट है व वस्तुओं के उपयोग की दर 18 महीने में सबसे निचले स्तर पर है। नॉमिनल जीडीपी वृद्धि दर 15 वर्ष के सबसे निचले स्तर पर है। करराजस्व में बहुत कमी आई है।
‘टैक्स आतंकवाद बेरोकटोक चल रहा है’
उन्होंने कहा, ‘टैक्स ब्युओएंसी, यानि जीडीपी की तुलना में कर की वृद्धि काल्पनिक रहनेवाली है क्योंकि छोटे और बड़े सभी व्यवसायियों के साथ ज़बरदस्ती हो रही है है व करआतंकवाद बेरोकटोक चल रहा है। निवेशकों में उदासी का माहौल हैं। ये अर्थव्यवस्था में सुधार का आधार नहीं हैं। ‘
मोदी सरकार की नीतियों के चलते भारी संख्या में नौकरियां समाप्त हो गई हैं। अकेले ऑटोमोबाईल सेक्टर में 3.5 लाख लोगों को नौकरियों से निकाल दिया गया है। असंगठित क्षेत्र में भी इसी प्रकार बड़े स्तर पर नौकरियां कम होंगी, जिससे हमारी अर्थव्यवस्था में सबसे निर्बल कामगारों को रोज़ी-रोटी से हाथ धोना पड़ेगा ।
ग्रामीण हिंदुस्तान की स्थिति बहुत गंभीर है। किसानों को उनकी फसल के उचित मूल्य नहीं मिल रहे व गांवों की आय गिर गई है। कम महंगाई दर, जिसका नरेन्द्र मोदी सरकारप्रदर्शन करना पसंद करती है, वह हमारे किसानों की आय कम करके हासिल की गई है, जिससे देश में 50 फीसदी से ज्यादा जनसंख्या पर चोट मारी गई है।
‘संस्थानों पर हमले हो रहे हैं’
पूर्व पीएम ने कहा, ‘संस्थानों पर हमले हो रहे हैं व उनकी स्वायत्तता समाप्त की जा रही है। सरकार को 1.76 लाख करोड़ रु। देने के बाद भारतीय रिजर्व बैंक की आर्थिक कुप्रबंधन को वहन कर सकने की क्षमता का टेस्ट होगा, व वहीं सरकार इतनी बड़ी राशि का प्रयोगकरने की फ़िलहाल कोई योजना न होने की बात करती है। ‘
इसके अतिरिक्त इस सरकार के कार्यकाल में हिंदुस्तान के आंकड़ों की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिन्ह लगा है। बजट घोषणाओं एवं रोलबैक्स ने अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के विश्वास को झटका दिया है। भारत, भौगोलिक- सियासी गठजोड़ों के कारण वैश्विक व्यापार में उत्पन्न हुए अवसरों का फायदा उठाते हुए अपना निर्यात भी नहीं बढ़ा पाया।नरेन्द्र मोदी सरकार के कार्यकाल में आर्थिक प्रबंधन का ऐसा बुरा हाल हो चुका है।
हमारे युवा, किसान व खेत मजदूर, उद्यमी एवं सुविधाहीन और गरीब वर्गों को इससे बेहतर स्थिति के हक़दार हैं। हिंदुस्तान इस स्थिति में ज्यादा समय नहीं रह सकता।इसलिए मैं सरकार से आग्रह करता हूँ कि वो बदले की पॉलिटिक्स छोड़े व सभी बुद्धिजीवियों एवं विचारकों का योगदान लेकर हमारी अर्थव्यवस्था को इस मानव-निर्मित संकट से बाहर निकाले।