नाथ सम्प्रदाय के संबद्ध में अनेक साहित्य है। सामान्य व्यक्ति के लिए इनका अध्ययन करना व समझना आसान नहीं हो सकता। लेकिन शीर्ष श्री महंत के आचरण को देख कर किसी भी सम्प्रदाय कर विषय में अनुमान लगाया जा सकता है। योगी आदित्यनाथ नाथ सम्प्रदाय के गोरक्षपीठाधीश्वर है। उन्होने बचपन में सन्यास ग्रहण किया।
सन्यास जीवन पर वह पूरा अमल करते है। इसी के साथ उन्होने इसमें समाज सेवा का भी समावेश किया। इसमें भी उन्होंने अपनी क्षमता का उच्च प्रदर्शन किया,कर रहे है। इसी को कर्मयोग कहा गया। वह सन्यासी के साथ ही कर्म योगी भी है। योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में नाथ सम्प्रदाय का वैश्विक प्रदेय विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ किया। कहा कि नाथ पंथ सिद्ध सम्प्रदाय है।
वैश्विक विस्तार
योगी आदित्यनाथ ने कहा कि इस सम्प्रदाय के योगियों और संतों से जुड़े प्रसंग सभी को नाथ पंथ से जुड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। यही वजह है कि पूरी दुनिया में नाथ पंथ का विस्तार है। पाकिस्तान के पेशावर,अफगानिस्तान के काबुल और बांग्लादेश के ढाका को भी नाथ पंथ के योगियों ने अपनी साधना स्थली बनाया है।
भगवान शिव की परम्परा
योगी आदित्यनाथ ने कहा कि नाथ पंथ की परम्परा आदिनाथ भगवान शिव से शुरू होकर नवनाथ और चौरासी सिद्धों के साथ आगे बढ़ती है। यही वजह है कि पूरी दुनिया में इस सम्प्रदाय के मठ, मंदिर,धूना,गुफा,खोह देखने को मिल जाएंगे। नेपाल की राजधानी काठमांडू का मूल नाम काष्ठ मंडप था। यह काष्ठ मंडप नाम गोरखनाथ मंदिर से मिला है। जो काष्ठ मंडप पर आधारित था। काठमांडू के पशुपति नाथ मंदिर और पास की एक पहाड़ी के बीच बाबा गोरखनाथ का मंदिर आज भी मौजूद है। नेपाल के एक राजकुमार रत्नपरिक्षित ही रतननाथ के नाम से नाथ पंथ के बहुत सिद्ध योगी हुए।
बलरामपुर के देवीपाटन में जिस आदिशक्ति पीठ की स्थापना महायोगी गुरु गोरखनाथ ने की थी। वहां पूजा करने के लिए योगी रतननाथ प्रतिदिन दान से आया जाया करते थे। आज भी चैत्र नवरात्र पर एक यात्रा दान से आती है और प्रतिपदा से लेकर चतुर्थी तक वहां नाथ अनुष्ठान होता है। पंचमी से नवमी तक वहां पात्र देवता के रूप में महायोगी गुरु गोरखनाथ का अनुष्ठान होता है।
विखण्डन व विकृतियों का विरोध
मुख्यमंत्री ने कहा कि नाथ पंथ के योगियों ने समाज के विखण्डन का कारण बनने वाली विकृतियों के खिलाफ पुरजोर आवाज उठाई। विकृतियां तभी जन्म लेती हैं,जब व्यक्ति को खुद पर विश्वास नहीं होता। ऐसे में उसके सामने स्वयं को बचाने की चिंता होती है। इसी वजह से गुरु गोरखनाथ ने प्रत्यक्ष अनुभूति को जीवन का आधार बनाया।
प्रत्यक्ष अनुभूति पर आधारित न होने वाले तथ्यों को नाथ पंथ में कभी मान्यता नहीं मिली। यही वजह है आदि काल से नाथ पंथ का प्रभाव झोपड़ी से लेकर राजमहल तक रहा है। नाथ पंथ में जीवन में सात्विकता पर बहुत जोर दिया गया है।