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काशी विश्वनाथ का पुरातात्विक सर्वे का निर्णय स्वागतयोग्य -ऋषि त्रिवेदी

लखनऊ। अखिल भारत हिन्दू महासभा, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष ऋषि त्रिवेदी ने आज यहां काशी विश्वनाथ मन्दिर के मामले में पुरातात्विक सर्वे के न्यायालय के आदेश का स्वागत करते हुये केन्द्र सरकार से वर्ष 1991 में बनाये गये प्लसेज ऑफ वर्षिप एक्ट को समाप्त कर मुगलकाल से लेकर अब तक तोड़े गये हिन्दू धार्मिक स्थलों को वास्तविक स्वरूप लौटाने के लिये कदम उठाये। श्री त्रिवेदी ने कहा कि इस निर्णय से हिन्दू महासभा को पूरा भरोसा है कि काशी विश्वनाथ मन्दिर में दूसरे धार्मिक स्थल के अतिक्रमण से जल्द मुक्त होगा, यही नहीं बल्कि राम मन्दिर की कानूनी लड़ाई जीतने के बाद देश की हिन्दू जनता में विश्वास जगा है कि आने वाले दिनों में मुगलकाल और भारत की आजादी के कश्मीर घाटी आदि क्षे़त्रों में तोड़े गये सभी हिन्दू धार्मिक स्थल अपने पुराने स्वरूप में वापस लौटेगें।

हिन्दू महासभा के प्रदेश अध्यक्ष श्री त्रिवेदी ने काशी के साथ-साथ न्यायालय में विचाराधीन मथुरा स्थित कृष्ण जन्मभूमि और लखनऊ के लक्ष्मण टीले के मामले को फास्टट्रैक कोर्ट में चलाकर मामले को जल्द से जल्द हल कर यह सभी सम्पत्तियां हिन्दू समाज को सौंप जाये, यहीं नहीं बल्कि नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्रित्व काल में बनाये गये वर्ष 1991 में बनाये गये प्लसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को समाप्त कर मोदी सरकार देश में खासकर मुगलकाल के दौरान इस्लामिक आततायियों द्वारा तोड़े गये मन्दिरों को वास्तविक स्वरूप में लौटाने के लिये त्वरित काररवाई करें।

ऋषि त्रिवेदी ने कहा कि काशी विश्वनाथ मन्दिर के पुरातात्विक सर्वे के निर्णय के बाद मुस्लिम समुदाय प्लसेज ऑफ वर्शिप एक्ट का आधार बनाकर अपील करने की बात कर रहा है, जिससे साफ है कि मुस्लिम समुदाय मानता है कि काषी विश्वनाथ मन्दिर को गिराकर मुगल शासक औरंगजेब ने तथाकथित ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करवाया था। उल्लेखनीय है कि इस मामले में न्यायालय में याचिकाकर्ता ने सबूत के तौर पर पुराने दस्तावेज भी सौंपे गए. फिलहाल फास्ट ट्रैक कोर्ट ने मंदिर-मस्जिद परिसर में पुरातत्व विभाग को खुदाई और सर्वेक्षण के आदेश दिए हैं. जो भी हकीकत हो, इसके बाद ही पता चल सकेगी। वहीं कृश्ण जन्मभूमि मामले में पक्षकार बनी हिन्दू महासभा के प्रदेश अध्यक्ष ऋषि त्रिवेदी ने कहा कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि के 13 एकड़ के कटरा केशव देव मंदिर के परिसर पर 17वीं शताब्दी में शाही ईदगाह बनाया गया था. उनका कहना है कि फिलहाल जहां मस्जिद है, वहीं किसी समय कंस का कारागार था और फिर कृष्ण मंदिर हुआ।

बाद में मुगलों ने इसे नष्ट करवाकर शाही ईदगाह मस्जिद बनवा दी. इस मामले में भी यही कहा जा रहा है कि मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिर तोड़ने का आदेश दिया था। श्री त्रिवेदी ने बताया कि प्लसेज ऑफ वर्षिप एक्ट के खिलाफ भी सुप्रीमकोर्ट में एक अधिवक्ता द्वारा चुनौती दी जा चुकी है, जिसमें कहा गया है कि आक्रामणकारियों ने कई धर्मों के पूजा स्थलों को तोड़कर अपने धर्म स्थल बना दिए. अब कानून बनाकर हमें उन पूजा स्थलों का सच जानने से रोकना असंवैधानिक है। हालांकि हिन्दू महासभा ने साफ कहा है कि प्लसेज ऑफ वर्षिप एक्ट के मामले में न्यायालय के निर्णय का इंतजार न कर केन्द्र सरकार को इस एक्ट को खत्म कर मुगलकाल में तोड़े गये हिन्दू धार्मिक स्थलों को वास्तविक स्वरूप लौटाने के लिये नया कानून लाये।

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