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ग्रामीण भारत में कोरोना का तांडव और न इलाज की व्यवस्था, न जांच का इंतजाम

        अजय कुमार

उत्तर प्रदेश के गांवों को कोरोना की दूसरी लहर ने बुरी तरह से चपेट में ले लिया है। पहली लहर में जो कोरोना गांव-देहात वालों का बाल भी बांका नहीं कर पाया था,दूसरी लहर में उसने ग्रामीण भारत को पूरी तरह से चपेट मंे ले लिया है।  ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि ऐसा कैसे हो गया। अबकी से ग्रामीण भारत बच क्यों नहीं पाया तो इसका सबसे सीधा और सरल जबाव यही है पंचायत चुनाव। पंचायत चुनाव के चलते करीब एक माह तक प्रत्याशियों ने गांव-देहात में धुआंधार प्रचार किया था।घर-घर जाकर मतदाताओं से वोट ही नहीं मांगे गए,अपितु आपसी भाईचारें के चलते चाय-पानी का भी दौर खूब चला। प्रत्याशियों के पक्ष में चैपालों पर मजमा जुटा। न किसी ने मास्की जरूरत महसूस की, न किसी को दो गज की दूरी की चिंता थी। कहने वाले कह सकते हैं कि ग्रामीणों में कभी भी शहरियों जैसी जागरूकता नहीं दिखाई पड़ती है। इसी लिए गाॅव में कोरोना से बचने के लिए सरकारी प्रोटोकाॅल की अनदेखी हो रही थी, जिस कारण ही कोरोना ने संक्रमण ने रौद्र रूप धारण कर लिया।

लेकिन हकीकत इतनी भर नहीं है गा्रमीण भारत में कोरोना फैलने की और भी कई वजह हैं। इसके पीछे की तीन सबसे बड़ी वजहों की बात की जाये तो एक तो कोरोना काल में बेरोजगारी के चलते शहरों से गांव की तरफ रूख करने वाले लाखों लोगों का पलायन,वैसे पलायन कोरोन की पहली लहर के समय भी देखने को मिला था,परंतु तब केन्द्र द्वारा कोरोना संक्रमण की आहट सुनाई देते ही लाॅकडाउन कर दिया गया,जिस कारण जो लोग बेरोजागार होने के कारण गांव-घर वापस आये थ,े वह अपने साथ इतनी बुरी तरह से संक्रमण को साथ नहीं आए थे। बहरहाल बात दूसरी वजह की कि जाए तो इलाहाबाद हाईकोर्ट का योगी सरकार को किसी भी स्थिति में पंचायत चुनाव कराने का आदेश और तीसरे वह लोग थे जो पंचायत चुनाव में अपने प्रत्याशी का चुनाव प्रचार करने और मतदान के लिए बड़ी संख्या में देश के कोने-कोने से पूरे के पूरे परिवार सहित गांव पहुंचे थे,जो आए तो थे अपने समर्थक उम्मीदवार का प्रचार करने और वोट डालनेे,लेकिन साथ में जाने-अनजाने में कोराना वायरस भी ले आए थे।

इन्हीं लोगों के द्वारा कोरोना प्रदेश के तमाम गांवों में भी पहुंच गया। इसके अलावा अन्य वजहों की बात की जाए तो गांव और शहर सिक्के के दो पहलू जैसे हैें जिनकों अलग करके नहीं देखा जा सकता है।

अगर गांव देहात से लोग इलाज कराने शहर आते हैं तो फिर दूध- सब्जी से लेकर दाल-दलहन तक भी बेचने के लिए भी  तो ग्रमीणों को शहर आना ही पड़ता है,जब यह शाम को शहर से गांव लौटते हैं तो कोई नही जानता यह कौन सी बीमारी लेकर आ जाते हैं, इन्हीं वजहों के चलते गांवों की गलियों में मौत को आसानी से ग्रामीणों को अपनी गिरफ्त में लेते देखा जा सकता है। मौत का यह दानव गांवों में  इसलिए और मुश्किलंे बढ़ा रहा है क्यों कि अपने देश के गांव-देहातों में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल किसी से छिपा नहीं है। गांवों में मौजूद आगंनबाड़ी की कार्यकत्रियां और आशा बहने भी असहाय हैं। ऐसे में देसी नुस्खे या झोला छाप डाक्टरों के सहारे जो ठीक हो जाए तो सही,वर्ना इनकों मौत के चंगुल में जाने स बचाना असंभव हो जाता है। कुछ आर्थिक रूप से सम्पन्न लोग इलाज के लिए शहर की तरफ भागते भी हैं तो यहां आकर और शहरी अस्पतालों और डाक्टरों की लाचारी देखकर बेबश हो जाते हैं। इनको न कहीं भर्ती मिलती है, न इलाज ही उपलब्ध हो पाता है। हालात यह है कि सरकारी दावों और आकड़ों पर किसी को भरोसा नहीं रह गया है,लेकिन इसके अलावा और कोई प्रमाणिक रास्ता भी नहीं है जिससे जमीनी हकीकत को समझा जा सके।

केन्द्र के आंकड़ों पर भरोसा किया जाए तो उत्तर प्रदेश के एक तिहाई गांवों में कोविड संक्रमण पहुंच चुका है।  29 हजार से ज्यादा गांवों में संक्रमण के मामलों की पुष्टि हो चुकी है। केंद्र सरकार लगातार राज्यों में सर्विलांस रिपोर्टिंग कर रही है। केन्द्र के आंकड़ें बताते हैं कि गांवों में हालात दुरुस्त नहीं हैं। गत दिवस तक यूपी में तकरीबन 90 हजार गांवों में राज्य सरकार ने सर्वे किया। इनमें से तकरीबन 29 हजार गांव यानी कि एक तिहाई गांवों तक कोविड के संक्रमण की दस्तक हो चुकी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में कोविड पर नजर रखने वाली कमेटी ने राज्य सरकार को बहुत बारीक नजर रखने का निर्देश दिया है। अधिकारियों का भी कहना है कि एक तिहाई गांवों में संक्रमण होना मामूली बात नहीं है। अगर हम इस संक्रमण का प्रसार इन गांवों से आगे जाने से नहीं रोक पाए तो हालात बिगड़ सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांवों में पैर पासरते कोरोना संक्रमण की गंभीरता देखते हुए उन जिलो के कलेक्टरों से सीधा संवाद कर रहे हैं,जहां कोरोना विकराल रूप लेने लगा है। संवाद के पीछे मोदी की मंशा यही है कि ताकि इन जिलों के गांवों में ज्यादा से ज्यादा मॉनिटरिंग हो सके और संक्रमण पर रोक लगाई जा सके। पीएम मोदी कोविड की शुरुआत से ही इस बात को लेकर चिंता जता रहे थे कि गांवों में कोविड का प्रसार न के बराबर हो। क्योंकि उन्हें इस बात का अंदाजा था कि अगर हालात गांवों में खराब होने लगे तो स्थितियां बेकाबू हो सकती हैं।

उत्तर प्रदेश में रिकवरी रेट भले ही करीब 92 प्रतिशत हो गया है लेकिन, आफत टलती नहीं दिख रही क्योंकि गांवों की ओर देखने पर पता चलता है कि सरकार के नियंत्रण में बहुत कुछ नहीं भी है। बलिया से बिजनौर तक कई गांव ऐसे हैं, जहां पिछले एक-डेढ़ महीनों में दर्जनों मौत हुई है और अब तो खुद सरकार भी मान रही है कि 28 हजार से ज्यादा गांवों की हालत नाजुक है। उत्तर प्रदेश में गांवों की तस्वीर घबराहट पैदा करने वाली है, सरकारी आंकड़ों पर ही गौर करें  17 मई तक 8124 रैपिड रेस्पॉन्स टीम ने 89,512 गांवों का दौरा किया. इस दौरान 18 लाख 18 हजार लोगों की जांच की गई और इनमे से 28 हजार 742 गांवों में कोविड के लिहाज से खतरनाक स्थिति मिली। लखनऊ जिले के समेसी गांव में बीते डेढ़ महीने में 45 लोगों की मौत हो चुकी है. ज्यादातर परिवार बुखार की चपेट में हैं। गांव की 55 साल की महिला अन्नपूर्णा शुक्ला की 26 अप्रैल को मौत हो गई। उनके बेटे ललित ने बताया कि जांच से लेकर इलाज तक बहुत संघर्ष किया लेकिन, हताशा के अलावा कुछ भी हाथ ना लगा। इसी गांव के सरजू प्रसाद की मौत एक मई को हुई थी। मजबूरी में घरवालों को झोला-छाप डॉक्टर की शरण में जाना पड़ा क्योंकि दूसरा कोई विकल्प ही नहीं था।

इसी तरह से पश्चिमी यूपी के शाहजहांपुर में गांवों की गलियां सूनी पड़ी हुई हैं। विराहिमपुर गांव में पिछले 15 दिनों में लगभग 20 लोगों की जान जा चुकी है। सफाई और स्वास्थ्य की व्यवस्था यहां वर्षों से ध्वस्त है। गांव के लोगों के पास हमेशा की तरह अभावों का रोना है और प्रशासन के पास वही रटा रटाया जवाब।

गांवों में बिगड़े हालातों को देखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने टेस्टिंग पर तो जोर दिया ही है इसके अलावा आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने के निर्देश भी सीएम द्वारा दिए गए हैं। इसके अलावा गांवों में कोरोना की रोकथाम के काम में उन डॉक्टरों को भी शामिल किया जाएगा, जिन्होंने विदेश से एमबीबीएस की डिग्री लेने के बाद अब तक देश में मेडिकल प्रैक्टिस के लिए जरूरी परीक्षा को पास नहीं किया है। इस संबंध में इंडियन मेडिकल काउंसिल से सलाह ली जा रही है. राज्य में एमबीबीएस के चैथे और पांचवें वर्ष के छात्रों की कोविड ड्यूटी के निर्देश तो पहले ही जारी कर दिए गए थे.।  तीसरी लहर की आशंका देखते हुए हर जिले में पीडियाट्रिक आईसीयू भी बनाए जा रहे हैं और सबसे अहम बात ये कि सभी गांवों के लिए 97 हजार निगरानी समिति तैयार की गई है, जोकि घर-घर स्क्रीनिंग कर रही है.

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