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अक्षय वट की टहनी नहीं, वृक्ष का करिये पूजन

नागेन्द्र बहादुर सिंह चौहान

बरगद के पेड़ को अक्षयवट कहा जाता है। इस वृक्ष का पौराणिक महत्व है। धरती पर इस वृक्ष की बड़ी लम्बी आयु होती है। वट सावित्री व्रत रहने वाली सुहागिन स्त्रियां अपने पति के स्वस्थ और दीर्घायु रहने के लिए वटवृक्ष की पूजा-अर्चना करती हैं। बरगदाही अमावस्या के दिन अक्षयवट के नीचे बैठकर सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती-सुनाती हैं।

इधर, कुछ वर्षों से अज्ञानी लोग वटवृक्ष की टहनी काट कर घर ले जाते हैं। फिर उनके घर की औरतें अक्षयवट की सांकेतिक पूजा-अर्चना करती हैं। यह पूरी तरह से गलत है। दरअसल, अक्षयवट में त्रिदेव का निवास होता है। बरगद की जड़ में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और ऊपरी भाग में शिव निवास करते हैं। इसी पेड़ के नीचे सावित्री ने अपने मृत पति सत्यवान को जीवित किया था। इसी वटवृक्ष के नीचे भगवान शिव ने तपस्या की थी। प्रलयकाल में भगवान विष्णु भी इसी पेड़ का आश्रय लेते हैं। तथागत भगवान बुद्ध को बरगद के नीचे ही ज्ञान प्राप्त हुआ था। बौद्ध धर्म में बरगद को बोधि वृक्ष कहते हैं।


वट सावित्री व्रत में सुहागिन स्त्रियां अपने अखण्ड सौभाग्य और जीवनसाथी के आरोग्यता के लिए अक्षयवट की पूजा-अर्चना करती हैं। व्रतधारी महिलाएं पूजा करने तक निर्जला व्रत रहती हैं। इसलिए बरगद पेड़ की टहनी के बजाय वटवृक्ष का ही पूजन करना चाहिए। तभी वट सावित्री व्रत का फल प्राप्त होगा।

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