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Ayodhya में बौद्ध : सच और साक्ष्य

राम की नगरी Ayodhya की महिमा किसी से छुपी नहीं है। यह सीधे तौर पे राम की नगरी कही जाती है। अयोध्या एक तरफ जहाँ पुरे विश्व में अपना स्थान रखता ही है वहीँ इस बार दीपावली में किये गए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के वृहद् स्वरुप में दीपोत्सव के कार्यक्रम के बाद अयोध्या का एक अलग ही मनमोहक दृश्य लोगों के सामने आया। एक तरफ जहाँ राम की नगरी होने के नाते राम के भक्तों की हमेशा भीड़ रहती हैं वही नगर में स्थित रामलला के परम भक्त हनुमान की हनुमानगढ़ी भी कुछ कम नहीं है। पर क्या आप जानते हैं की राम की नगरी में बौद्ध धर्म की भी पावन नगरी है।
अगर आप नहीं जानते तो लेख ये आप के ही लिए है-

अयोध्या(Ayodhya) और बौद्ध ?

सभी को पता है की भगवान राम की नगरी अयोध्या हिन्दुओं के लिए क्या स्थान रखती है। आधुनिक शोधानुसार भगवान राम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व हुआ था।
वहीँ इतिहासकार कहते हैं की 1528 में बाबर के सेनापति मीर बकी ने अयोध्या में राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनवाई थी। वहीँ ये भी बताया जाता है की उस समय बहुत से हिन्दुओं की हत्या कर दी गयी थी।
वही बता दें की अयोध्या में रामजन्मभूमि का विवाद अब भी उलझा ही हुआ है। ये तो ऐसी बाते हैं जो सर्वज्ञात है। पर ये भी जानना ज़रूरी है की अयोध्या पर बौद्ध और जैन धर्म के भी पावन जगह है जिनको लेकर बौद्ध और जैन भी अयोध्या पर अपना अधिपत्य दर्शाते हैं।

बौद्ध और जैन धर्म के अनुयायियों का दावा

एक तरफ जहाँ हिन्दू राम जन्मभूमि को लेकर दावा करते हैं वही जन्मभूमि के अलावा अन्य जगहों पर जैन और बौद्ध धर्म के पवित्र स्थल है। हम सभी जानते हैं की अयोध्या में अनेकों महापुरुषों की वीरगाथाएँ प्रसिद्ध है। अयोध्या रघुवंशी राजाओं की बहुत पुरानी राजधानी रह चुकी है। एक तरफ जहाँ हिन्दुओ में भगवान श्रीराम ,लक्ष्मण आदि जाने जाते हैं वही बौद्ध व जैन में ऋषभदेव, अजीतनाथ, अभिनंदन, सुमतिनाथ और अनंतनाथजी जैसे तीर्थकर भी अपना अलग ही स्थान रखते हैं।

जन्मभूमि का स्थान बौद्ध समुदाय का होने का दावा

उज्जैन यात्रा के दौरान सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्री रामदास आठवले ने अयोध्या के विषय में बोलते हुए कहा था की,”अयोध्या में जिस जमीन को लेकर झगड़ा हो रहा है असल में वह बौद्धों की है। ”

खुदाई में मिले कई साक्ष्य

बता दें की 1981-1982 ईस्वीं में अयोध्या के सीमित क्षेत्र में एक उत्खनन किया गया था।
यह उत्खनन मुख्यत: हनुमानगढ़ी और लक्ष्मणघाट क्षेत्रों में हुआ था।
अयोध्या में खुदाई के दौरान जहां हिन्दू धर्म से सम्बंधित साक्ष्य मिले वही बौद्ध धर्म से जुड़े कला और शिल्प के भी कई साक्ष्य प्राप्त हुए थे। दरअसल, जहां से बुद्ध के समय के कलात्मक पात्र मिले थे, माना जाता है कि यहां बौद्ध स्तूप था।

  • ऐसा कहते हैं कि भगवान बुद्ध की प्रमुख उपासिका विशाखा ने बुद्ध के सानिध्य में अयोध्या में धम्म की दीक्षा ली थी।
  • इसी के स्मृतिस्वरूप में विशाखा ने अयोध्या में मणि पर्वत के समीप बौद्ध विहार की स्थापना करवाई थी।
  • यह भी कहते हैं कि बुद्ध के माहापरिनिर्वाण के बाद इसी विहार में बुद्ध के दांत रखे गए थे।
  • यह भी कहा जाता है की सातवीं शाताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उस समय यहां पर  20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे।

संयुक्तनिकाय में उल्लेख आया है कि बुद्ध ने यहां की यात्रा दो बार की थी।

उत्‍खनन का बाद की प्रमाणिकता

दरअसल अफवाहों के चलते बहुत भ्रम फ़ैल गया जिसके कारण प्रमाणिकता को लेकर सभी भ्रमित हैं।
वहीं पिछले कुछ समय पूर्व में कुछ पुरातत्वविदों यथा- प्रो. ब्रजवासी लाल, हंसमुख धीरजलाल सांकलिया, हेमचन्द्र राय चौधरी, वी.सुन्दराजन और मुनीश चन्द्र जोशी ने रामायण इत्यादि में वर्णित अयोध्या में हुए उत्खनन के अवशेषों के अध्ययन किए हैं।
उन्होंने बताया की यहां हिंदू, जैन, बौद्ध और इस्लाम धर्म से जुड़ी कई चीजें मिली है।

मिले कई साक्ष्य

दरअसल हिन्दू और बौद्ध में हमेशा से ही लगभग एक जैसी जीवनशैली की प्रमाणिकता मिली है।
इस भावना के ही चलते जब कोई मंदिर बनाया जाता था तो उसमें हिन्दू और बौद्ध धर्म से जुड़े प्रतीकों को स्तंभों पर अंकित किया जाता था। हम आम तौर पर देखते हैं की हिन्दू या बौद्ध दोनों मंदिरो में आपस का समन्वय मिल ही जाता है।
जहां तक बात अयोध्या की है तो वहां बुद्ध ने सिर्फ विहार ही किया है। उस समय अयोध्या को साकेत के नाम से जाना जाता था। अयोध्या में आज भी ऋषभदेव या अन्य बौद्ध धर्म से मूर्ति व मंदिर देखने को मिलते है।

इन्ही सब को देखते हुए और रिपोर्ट की प्रमाणिकता के आधार पर कही न कही किन्तु यह समझा जा सकता है की अयोध्या में बौद्ध धर्म भी अपना दावा क्यों करता है।

 

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  वरुण सिंह

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