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डिजिटल युग में प्रिंट मीडिया का विलुप्त होना देश की बौद्धिक निधि के लिए खतरा तो नहीं?

  एड. किशन भावनानी

महाराष्ट्र। भारत आदि अनादि काल से साहित्य का गढ़ रहा है। हम अगर भारत के इतिहास की गहराई में जाएं तो हमें रामायण, भागवत गीता सहित अनेक भाषाओं के अनेकों साहित्य ग्रंथ के रूप में अनमोल मोती मिलेंगे जो हमारी धरोहर है। हमारी सभ्यता, संस्कृति, संस्कार के प्रतीक हैं। हम भारतीयों ने पीढ़ियों से इस साहित्य को संजोकर रखा है और आगे भी हम अगली पीढ़ियों के लिए संजोकर रखेंगे। बात अगर हम करें वर्तमान डिजिटल युग की, तो हमें इसका आधारभूत सहारा मिला है।

अपने साहित्य को सुरक्षित और संरक्षित करने का, क्योंकि हस्तलिखित पौराणिक साहित्य की भी एक सीमा होती है और हो सकता थ आगे के सैकड़ों हजारों सालों में यह विलुप्तता के कागार पर होता। लेकिन, डिजिटल क्रांति ने इसे अब असंभव बना दिया है! अब हमें यकीन है हो चला है कि हमारा आदि से अनादि काल तक का भारतीय साहित्य पूर्णत: सुरक्षित रहेगा। साथियों, बात अगर हम आदि और अनादि काल से इस साहित्य को लिखने वालों की करें और वर्तमान पीढ़ी में नए साहित्यकारों की करें तो साहित्यकार, लेखक, विचारक राष्ट्र की बौद्धिक निधि होते हैं। उनका सम्मान करना हमारा कर्तव्य है और उनका सम्मान हमारे हृदय में है भी! लेकिन, अगर हम गहराई में जाएं तो साहित्यकारों, लेखकों, विचारकों के विचार, साहित्य, पाठकों तक पहुंचाने में सबसे बड़ी भूमिका आज प्रिंट मीडिया की है। प्रिंट मीडिया बौद्धिक निधि के विचारों को प्रकाशित कर उन विचारों को जीवंतता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है जो सराहनीय कार्य है। प्रिंट मीडिया को मिलकर विलुप्तता से हमें बचाना है, क्योंकि आज हम सब जानते हैं कि प्रिंट मीडिया की वित्तीय हालत नाजुक बनी हुई है।

मेरा मानना है कि कुछ ही संस्थान को छोड़कर अधिकतम प्रिंट मीडिया संस्थान वित्तीय समस्याओं से जूझ रहे हैं क्योंकि वर्तमान डिजिटल युग में हालांकि पीडीएफ फाइल के सहारे प्रिंट मीडिया का विस्तार, प्रसार बढ़ा है। मगर, उससे वित्तीय समस्याओं का समाधान नहीं निकलता है बल्कि, बढ़ जाता है। क्योंकि, आजकल करीब-करीब सभी लोगों के पास डिजिटल मोबाइल है और पीडीएफ देख पढ़ लेते हैं यदि कोई खरीदते भी हैं तो 2 से 5 रुपए उसकी कीमत है सिर्फ! उसके ऊपर भी सोशल मीडिया के कारण विज्ञापनों में भारी कमी आई है और सरकारें, राजनीतिज्ञ, राजनीतिक पार्टी, सामान्य और निजी विज्ञापनों में भी काफी गिरावट आई है। इस कारण से प्रिंट मीडिया की आर्थिक समस्या बढ़ गई है, जिसका शासन-प्रशासन को स्वतः संज्ञान लेने की ज़रूरत है। प्रिंट मीडिया को विलुप्तता से बचाने की महत्वपूर्ण ज़वाबदारी भी है क्योंकि यह भी लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है।

आम बजट 2022 में प्रिंट मीडिया के लिए कुछ शासकीय सहयोग की व्यवस्था का बजट बनाना था। ऐसा इसलिए क्योंकि, कोरोना काल में पत्रकारों और संस्थान से जुड़े कर्मचारियों को वित्तीय समस्या की भारी परेशानी का सामना करना पड़ा था। शासन-प्रशासन ने मामूली राहत की घोषणा पत्रकारों के लिए कर दी थी लेकिन, कोई इंसेंटिव या पैकेज नहीं दिया। इसपर भी शासन से निवेदन है कि प्रिंट मीडिया कर्मचारियों के लिए संशोधित बजट में एलोकेशन कर कोई राहत पैकेज केऐ व्यवस्था करे। साथ ही प्रिंट मीडिया संस्थानों को भी वित्तीय सहायता राहतकोष का निर्माण करना होगा। क्योंकि हम अगर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र का बारीकी से विश्लेषण करेंगे तो हजारों मीडिया संस्थान हैं जिसमें, मासिक, साप्ताहिक और दैनिक समाचार पत्र शामिल है, वो बंद पड़े हैं। क्योंकि आज के डिजिटल युग में वह घाटे में चल रहे हैं। उनके पास विज्ञापन आना बंद हो गए हैं, आय का दूसरा कोई साधन या स्त्रोत नहीं है। ऊपर से कर्मचारियों, पत्रकारों, ऑपरेटरों का वेतन और ऑफिस किराया, बिजली बिल, नगर पालिका और महानगरपालिका सहित अनेकों करो का बोझ। लॉकडाउन से प्रिंट मीडिया की हालत और भी खराब हुई है जिसका शासन-प्रशासन को गंभीरता से रेखांकित करना चाहिए। प्रिंट मीडिया को विलुप्तता से बचाने, किसी वित्तीय, राहत कोष बनाने का रणनीतिक रोडमैप बनाने की जरूरत है, जिसका निवेदन मैं इस आलेख के माध्यम से कर रहा हूं।

राष्ट्रपति सचिवालय की पीआईबी के अनुसार, उपराष्ट्रपति ने एक कार्यक्रम में अपने संबोधन में कहा, “इस अवसर पर लेखक और विचारक राष्ट्र की बौद्धिक पूंजी हैं। जो इसे अपने सृजनात्मक विचारों और साहित्य से समृद्ध करते हैं।” ’शब्द’ और ’भाषा’ को मानव इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण आविष्कार बताते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा है कि “साहित्य समाज की विचारधारा और परंपराओं का जीवंत वाहक है। कोई समाज जितना सुसंस्कृत होगा, उसकी भाषा उतनी ही परिष्कृत होगी। समाज जितना जागृत होगा, उसका साहित्य उतना ही व्यापक होगा।”

इसलिए, अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें, तो हम पाएंगे कि डिजिटल युग में प्रिंट मीडिया को विलुप्तता से बचाना है। साहित्यकार, लेखक, विचारक राष्ट्र की बौद्धिक निधि होते हैं, उनके विचारों को पाठकों तक पहुंचाने में प्रिंट मीडिया का अहम रोल है तथा बौद्धिक निधि के विचारों को प्रिंट मीडिया प्रकाशित कर विचारों को जीवंतता प्रदान करने की महत्वपूर्ण भूमिका सराहनीय है।

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