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मानवता के अपराधियों को जनता माफ नहीं करेगी

सभ्यता के विकास के साथ दुनिया में पाशविक प्रवृत्तियां बढ़ जाती है। जब भी देश-समाज में आपदाएं आती हैं, दो प्रकार के लोग सक्रिय हो जाते हैं। एक वो, जो आपदाओं के समय, आहत जनता को, किसी न किसी तरह मदद पहुंचाने के लिए सेवा और दान कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। दूसरे वो हैं, जो भयानक संकट के समय भी काला बाज़ारी, जमाखोरी के ज़रिये अपने घर भरने में लग जाते है। ये लोग जनता के दुःख-दर्द और परेशानियों को बिल्कुल नहीं समझते। इनके कारनामों से कई लोगों की जान तक चली जाती है।

  • Published by- @MrAnshulGaurav, Written by- Rajkumar Jain Rajan
  • Thursday, 03 Febraury, 2022
राजकुमार जैन राजन

महाभारत के एक प्रसंग के अनुसार,  “कुछ लोगों के लिए तो अर्थ ही अनर्थ का कारण होता है। जो केवल धन से ही कल्याण की कामना करता है, वह कल्याण नहीं पा सकता।”  इसी तरह विनोबा भावे ने कहा, “फुटबॉल की तरह धन का खेल होना चाहिए। गेंद को कोई अपने पास नहीं रखता। वह जिसके पास पहुंचती है वही उसे फैंक देता है।” पैसों को इस तरह फेंकते जाइये, तो समाज के शरीर में उसका प्रवाह बहता रहेगा और समाज का आरोग्य कायम रहेगा। दूसरी तरफ, चाणक्य का कहना था कि, “जिसके पास धन होता है, उसी के बहुत से मित्र होते हैं। जिसके पास धन होता है, उसी के बहुत से बन्धु-बांधव होते हैं। जिसके पास धन होता है, वही पुरुष गिना जाता है और जिसके पास धन होता है, वही जीवित होता है।”

पूंजीवाद की ओर बढ़ रही आज की दुनिया को चाणक्य की बात ही सच लगती है। शायद, इसी कारण रातों-रात लखपति बनने का सपना देखने वालों के लिए कोरोना त्रासदी अलाद्दीन के चिराग़ की तरह हो गई है। सभ्यता के विकास के साथ दुनिया में पाशविक प्रवृत्तियां बढ़ जाती है। जब भी देश-समाज में आपदाएं आती हैं, दो प्रकार के लोग सक्रिय हो जाते हैं। एक वो, जो आपदाओं के समय, आहत जनता को, किसी न किसी तरह मदद पहुंचाने के लिए सेवा और दान कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। दूसरे वो हैं, जो भयानक संकट के समय भी काला बाज़ारी, जमाखोरी के ज़रिये अपने घर भरने में लग जाते है। ये लोग जनता के दुःख-दर्द और परेशानियों को बिल्कुल नहीं समझते। इनके कारनामों से कई लोगों की जान तक चली जाती है।

पर, इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। पैसा बनाना ही इनके लिए महत्वपूर्ण हैं। इन्हें मानव के रूप में दानव कहना उचित ही होगा। कोरोना त्रासदी के कारण जब हर तरफ मौत दहाड़ रही थी, तब स्वास्थ्य के लिए जरूरी दवाओं, ऑक्सीजन सिलेंडरों और जीवनरक्षक सुविधाओं की जमाखोरी, कालाबाज़ारी और मुनाफाखोरी ने हद से ज़्यादा बढ़ गयी थी। आज कानून व्यवस्था, समाज सब गूंगे हो गए हैं और ये मानवता के अपराधी अट्टहास कर रहे हैं। राजनीतिक दल भी आपदाओं में जनता की न सुनकर अपनी राजनीति चमकाने के अवसर ढूंढते रहते हैं।

एक तरफ कोरोना त्रासदी, चीन की दादागिरी, शेयर बाजार की उठापठक, बेकाबू महंगाई तो दूसरी तरफ आतंकवाद, जातिवाद और प्राकृतिक आपदाओं ने जन-जीवन की हवा ही निकाल दी है। सरकार की सतर्कता से लोगों को कुछ राहत मिली, वरना दशहत में घिरे लोगों की हालत और भी गंभीर हो जाती। आज सच्चाई यह है कि समाज में त्याग, संवेदना, मेहनत, संघर्ष जैसे शब्दों का मोल खत्म होता जा रहा है। एक जमाना था, जब बुजुर्ग कहते थे कि मेहनत की कमाई में बरकत होती है। बेईमानी का पैसा जैसे आता है वैसे ही चला जाता है। भाग्यवान वह है जिसका धन गुलाम है और अभागा वह है जो धन का गुलाम है। आज समाज मे इंसान धन का गुलाम होता जा रहा है, इसलिए अपराध बढ़ते जा रहे हैं।

यह कितने दुःख और ग्लानि का विषय है कि आज मानव अर्थलोलुपता में अपनी अमूल्य मानवता को बेचते हुए भी नहीं सकुचाता। उसके व्ययवहार और आचरण में मानवीय चरित्र और आदर्श खोते चले जा रहे हैं। सामाजिक, राजनीतिक ढांचा इतना दूषित हो चला है कि हर पल दशहत बनी रहती है। लोग अपनी आकांक्षाओं ओर लालसाओं को बहुत बढ़ाए जा रहे हैं। अपने जीवन स्तर को इस प्रकार बना रहे हैं कि उसके अनुरूप साधन सामग्री जुटाने के लिए उन्हें प्रचूर मात्रा में धन अपेक्षित होता है। यही लालसा उन्हें धनार्जन के उचित-अनुचित का विवेक नहीं करने देती और वे झूठ, चोरी, धोखा, छल, प्रपंच जैसी किसी भी दुष्प्रवृत्ति को करते संकोच नहीं करते।

रिपोर्ट बताती है कि जब से मंदी का दौर चला है तब से काला बाजारी, बैंक डकैतियां, हत्याएं और अपहरण के मामले बढ़े हैं। अपने घाटे को पूरा करने के लिए अपनों का ही अपहरण कर फिरौती मांगी जा रही है। पूरा देश त्राहिमाम कर रहा है। सिस्टम में बैठे कुछ काले चेहरे छोटे-छोटे स्वार्थों के लिए इनकी मदद करते हैं। विपदाओं में हर जगह जमाखोरी, कालाबाज़ारी, मुनाफाखोरी बढ़ जाती है। कोरोना त्रासदी ने तो इस अपराध की पराकाष्ठा ही कर दी। इससे बढ़कर किसी समाज या देश के लिए शर्म की और क्या बात हो सकती है। अब वक्त आ गया है कि ऐसे जमाखोरों व काला बाजारियों के खिलाफ सख्त से सख्त कदम उठाए जाएं। जीवन बचाने वाली सामग्री को आवश्यक वस्तु अधिनियम या महामारी अधिनियम के अंतर्गत लाने के लिए प्रबल इच्छा शक्ति दिखाई जाएं। अपराधियो के लिए कठोर सजा व मृत्युदण्ड का प्रावधान किया जाए। ऐसे कानून बनेंगे तो डर रहेगा, अन्यथा कोई हल सम्भव नहीं है। इन मामलों में ढील, भेदभाव, मुनाफाखोरी, कालाबाज़ारी करने वालों एवम इनको संरक्षण देने वाले राजनीतिज्ञों को अब जनता माफ नहीं करेगी।

एक विद्वान ने ठीक ही कहा है कि यदि तुम थोड़े में ही अपना काम अच्छी तरह चलाना चाहते हो, तो किसी चीज में पैसा लगाने से पहले स्वयं अपने से तीन प्रश्न पूछ लिया करो। पहला, क्या वास्तव में मुझे इस वस्तु की आवश्यकता है? दूसरा क्या इसके बिना भी मेरा काम चल सकता है? तीसरा मेरे लालच के कारण किसी की जान चली जाए तो? यदि वह मेरा बेटा, पत्नी और कोई सगा होता तो?

आज दीन-धर्म, ईमान सब कुछ धन के आसपास घूमने लगा है। शायद इसीलिए सामाजिक मूल्य गिरते जा रहे हैं। यह माना कि भूखा आदमी व्याकरण से भूख नहीं मिटाता, उसी प्रकार प्यासा आदमी काव्य रस से तृप्त नहीं होता। विद्या से किसी ने अपना कुल उद्धार नहीं किया। अतः धन का उपार्जन जरूरी है। उसके बिना सभी कुल व्यर्थ हैं। यह धन का ही प्रभाव है कि अपूज्य व्यक्ति भी पूज्य हो जाता है, लेकिन यह ज्यादा समय तक नहीं चलता। धन के लिए नैतिक स्तर को गिराना कोई आवश्यक नहीं है। अमूल्य जीवन को चांदी के चंद टुकड़ों की कीमत पर न बेचें। मानव यह क्यों नहीं सोचता है कि जिस धन प्राप्ति के लिए वह इतना पाप करता है, मरने के समय क्या वह साथ जाएगा? फिर अनावश्यक धन के लिए इतना अपराध क्यों कि किसी का जीवन तक खतरे में पड़ जाए या किसी की जान तक चली जाए।

सच तो यह है कि विज्ञान ने नयी-नयी चीजों का आविष्कार कर दैनिक जीवन को विलासिता से भर दिया है। धन कमाना अच्छी बात है लेकिन एक ही रात में अमीर बनने का सपना देखने का अर्थ है कि हम मेहनत का लंबा मार्ग छोड़, छोटे रास्ते से’ आगे बढ़ना चाहते हैं। महत्वाकांक्षी होना बुरा नहीं, लेकिन उन आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए छोटा या गलत मार्ग चुनना मुसीबतों को आमन्त्रित करना है। अपराधों की ओर आकर्षित हो रही युवा पीढ़ी को देखते हुए बुजुर्ग कहने लगे हैं , “अरे भाई, जिस कमाई की रोटी खाओगे वैसे ही तो बनोगे।”  उनका यह कहना किसी सीमा तक ठीक ही है। वक्त के साथ चलो और भविष्य के लिए थोड़ा जोड़कर रखों, ताकि मुसीबत आने पर आत्महत्या करने या अपराध के मार्ग पर चलने की जरूरत न पड़े। मनुष्य अपने विवेक को जगाए और सद्गुणों, सद्कर्मों से अपने जीवन को महकाए। पतन के गर्त से निकलकर मानवता का राजमार्ग अपनाए।

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