उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ऐन पहले दलबदल करने वाले ज्यादातर विधायकों का दांव खाली गया और ऐसे 80 प्रतिशत जनप्रतिनिधि सियासी संग्राम में सफलता हासिल नहीं कर सके.
दलबदल कर विभिन्न राजनीतिक दलों का हाथ थामने वाले इन 21 विधायकों में से सिर्फ चार को ही जीत नसीब हुई है। पाला बदलने वाले इन विधायकों में से 9 भाजपा जबकि 10 सपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे।
जिन प्रमुख नेताओं को हार का सामना करना पड़ा उनमें उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य व धर्म सिंह सैनी के अलावा बरेली की पूर्व महापौर सुप्रिया ऐरन शामिल हैं। ये नेता चुनाव से ऐन पहले समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे।
अदिति सिंह ने हाल ही में कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा था और उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया गया था। हालांकि राकेश सिंह भाजपा के टिकट पर रायबरेली लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली हरचंदपुर विधानसभा सीट से जीत हासिल करने में विफल रहे।
उन्होंने कहा कि इसमें किसी पार्टी की विचारधारा से जुड़ाव या पसंद नहीं होती। आज के दौर में दलबदल के पीछे अवसरवाद शब्द ज्यादा प्रभावी दिखाई देता है। इसे वृहद और सूक्ष्म स्तरों पर देखा जाना चाहिए। वृहद स्तर पर यदि एक प्रत्याशी किसी विशेष दल के लिए अनुकूल स्थिति महसूस करता है तब ऐसी स्थिति में वह दल बदल सकता है।