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बहुमुखी प्रतिभा के धनी ठाणे मनपा प्रभारी मुख्याध्यापक राजकुमार यादव

 

जब हौसला बना लिया ऊंची उड़ान का,
फिर देखना फिजूल है कद आसमान का 

राजकुमार यादव

जिसने कभी आसमान का कद नहीं देखा, हौसलों से ओतप्रोत रहे सादगी की मूर्ति, मृदुभाषी, विविध पुरस्कारों से अलंकृत, प्रभारी मुख्याध्यापक श्री राजकुमार यादव का जन्म 5 मार्च1964 को उत्तर प्रदेश सुल्तान पुर जनपद के मूल निवासी एवं महाराष्ट्र में सम्मान दृष्टि भोगी श्री रामलखन यादव एवं स्व.छोटी बाई यादव के आगन में मुंबा देवी की पवित्र भूमि मुंबई के उपनगर पवई में प्रथम पुत्र के रूप में हुआ|

मां के स्नेहिल छाया में उनकी प्राथमिक शिक्षा बृहन्मुंबई महानगर पालिका भांडुप तथा माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक (एच.एस.सी.) (विज्ञान) की शिक्षा आई.डी.यू.बी.एस. ज्यू. कॉलेज भांडुप में हुई।आगे की शिक्षा शिक्षक पदविका प्रशिक्षण ठाणे से हुई| प्रशिक्षण पूर्ण होते जिस पवित्र भूमि पवई में उनका जन्म हुआ था वही उनकी पहली कर्मभूमि बनी| यह उनके लिए सौभाग्य की बात थी | इंदिरा देवी सरन विद्यालय में उनकी नियुक्ति 1987 में हुई| फिर 1988 में उनकी नियुक्ति मानपाडा ठाणे के प्रतिष्ठित विद्यालय भारतीय संस्कार में हुई|

जहां उन्होंने अपनी छवि को निखारते हुए एवं मित्रों के सहयोग से अमिट अध्यापन कार्य किया| कामयाबी उनके उची उड़ान के इंतजार में थी जिसने उनके जीवन की दिशा को सुनहरा मोड़ दिया ।13 नवंबर 1992 में ठाणे मनपा शिक्षण मंडल ने उन्हें चुन लिया। ठाणे मनपा शाला क्रमांक 42 शांति नगर उनकी नई कर्म स्थली बनी | जहां उन्होंने अपनी योग्यता एवं माता-पिता द्वारा दिए गए संस्कारों एवं शिक्षकों द्वारा दिए गए ज्ञान का समुचित उपयोग करने के लिए खुला आकाश मिला | सीखने की प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है इस अवधारणा को सही साबित करते हुए उन्होंने मुंबई विश्व विद्यालय से स्नातक एवं स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की|

कुछ ही दिनों में वे ठाणे मनपा शाला क्रमांक 127 में आए | जहां उन्होंने शिक्षकों को प्रशिक्षण देने एवं छात्रों की प्रगति के लिए निरंतर अध्ययन शीलता एवं साहित्यिक पंख लगाकर जीवन की उड़ान भरने लगे।

सन 1993 में विज्ञान प्रदर्शनी में उन्होंने विद्यार्थियों का ऐसा मार्गदर्शन किया कि उन्हें ठाणे मनपा विद्यालयों में तृतीय क्रमांक प्राप्त हुआ| यह हिंदी माध्यम के विद्यालय के कामयाबी का सूर्योदय था जिसने आपके हौसलों को नई मंजिल दी। तभी से आप उन्होंने विद्यालय को ठाणे मनपा के नक्शे पर अग्रणीय स्थान बनाऐ रखने में प्रयत्नशील रहे|

लगभग प्रत्येक वर्ष उनके मार्गदर्शन में विज्ञान प्रदर्शनी में प्रथम आने के पश्चात 5 बार प्रथम स्थान तथा 1996 – 1997 में ‘अंधे का तराजू’ तालुका स्तर पर प्रथम क्रमांक एवं जिला स्तर में प्रवेश करवाकर विद्यार्थियों ने ठाणे मनपा का नाम रोशन किया | विज्ञान प्रदर्शनी में उनके विषय लोगों के कौतूहल का विषय बना रहते थें । पालकों एवं विद्यार्थियों की उनके प्रति श्रद्धा की वजह से वे सुबह 7 बजे से शाम तक विद्यालय में विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करते रहते थे। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय विद्यार्थियों को दिया तथा समय का महत्तव समझाते हुए सदा कहते रहते थे कि ,

वक्त को जिसने ना समझा
खाक में वह मिल गया
वक्त का साया रहा तो, फूल बनकर खिल गया

विज्ञान प्रदर्शनी के साथ ही साथ शिष्यवृत्ती की परीक्षा हेतु रविवार तथा अवकाश के दिनों में आप छात्रों का मार्गदर्शन किया करते थे जिसकी प्रशंसा गट शिक्षा अधिकारी श्रीमती शरयू पालदे एवं श्रीमती लीना सहस्त्र बुद्धे किया करती थीं | जिसमें कई बार उनके विद्यार्थी शत-प्रतिशत उत्तीर्ण हुए जिसके परिणाम स्वरुप आज उनके कई विद्यार्थी बैंकों के उच्च पद पर कार्यरत हैं |

वे सदैव निबंध , भाषण प्रतियोगिता में भाग लेकर प्रथम स्थान प्राप्त कर अपनी योग्यता को साबित करने में सफल रहे हैं। सन् 2000 में सुमन मोटल्स ‘हो या फिर 2001 की मुंबई की सबसे चर्चित समन्वय संकल्प की शिक्षकों की निबंध स्पर्धा और 2002 में कांग्रेस द्वाराआयोजित निबंध स्पर्धा। इन तीनों में ‘प्रथम’ विजेता होना उनके श्रेष्ठ निबंध लेखन का परिचायक है। ठाणे मनपा के लिए गर्व की बात यह थी कि समन्वय संकल्प द्वारा आयोजित निबंध प्रतियोगिता में प्रथम आने पर मुंबई महानगर पालिका शाला के अधीक्षक द्वारा उन्हें पुरस्कृत किया गया यह ठाणे मनपा के लिए गौरव का क्षण था । इससे उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि

मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है 
पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों में उड़ान होती है 

1993 से 2008 तक उन्हें तालुका एवं राज्य स्तर पर लगातार शिक्षकों को प्रशिक्षण देने का अवसर मिला जिसे उऊ बखूबी निभाया । जिसकी प्रशंसा आज भी हिंदी, मराठी, उर्दू एवं अंग्रेजी माध्यम के शिक्षक करते हैं । उनमें निहित ज्ञान एवं उनकी मिलनसारिता , मृदुभाषीता के कारण वे सदैव शिक्षकों के प्रिय बने रहे । जिसने उन्हें नई ऊंचाई एवं पहचान दी । वर्ष 2000 से 2004 तक अंग्रेजी प्रशिक्षण में वे तज्ञ मार्गदर्शक रहे । 1999 – 2000 में उन्हें उत्कृष्ट तज्ञ मार्गदर्शन पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।

उनके परिश्रम एवं शिक्षा क्षेत्र में किए गए नव- नवीन प्रयोग और छात्रों के प्रति समर्पण भाव के कारण सात वर्ष में ही महापौर पुरस्कार के लिए फाइल जमा की गई परंतु उन्होंने उसे पंद्रह वर्ष पूर्ण होने पर जमा करने का निर्णय लिया । इससे यह सिद्ध होता है कि आपने पुरस्कार के लिए काम नहीं किया जबकि पुरस्कार उनका इंतजार कर रहा था। 2008 में उन्हें ठाणे आदर्श शिक्षक महापौर पुरस्कार से सम्मानित किया गया । वे जन्मभूमि मुंबई ,कर्मभूमि ठाणे एवं संस्कार भूमि सुल्तानपुर का ऋण चुकाने का अनवरत प्रयत्न करते रहे।

प्रतियोगिता में बढ़ाए गए प्रत्येक कदम उनके सफलता की कहानी थी। जिसे देखकर शिक्षक तथा छात्र प्रोत्साहित होते रहे हैं। वे शिक्षक समुदाय के प्रेरणा स्रोत रहे हैं। वे छात्रों को जिस कार्य को करने के लिए कहते थे उस कार्य को स्वत: करके दिखाते थे। उनके मार्गदर्शन में कई छात्रों ने निबंध प्रतियोगिता तथा भाषण प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया। वहीं वे शिक्षा के साथ ही खेल में भी छात्रों को प्रोत्साहित करते थे इसका प्रमाण 2008 की कबड्डी प्रतियोगिता थी, जिसमें उनके विद्यालय को प्रथम स्थान मिला।

उनको विभिन्न राज्यों से सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं जिसकी सूची बहुत लंबी है फिर भी महात्मा ज्योतिबा फुले अवार्ड (दिल्ली) डॉ. आंबेडकर फेलोशिप अवार्ड (दिल्ली) , साहित्य सारथी गौरव सम्मान (दिल्ली) , आदर्श समाज सेवा गौरव पुरस्कार (वर्धा) साहित्य अभ्युदय सम्मान (इंदौर) रचना प्रहरी सम्मान (अलीगढ़), राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान (बिहार )लोकमान्य तिलक पुरस्कार (वर्धा )लघु कथा प्रथम पुरस्कार( उदयपुर ),राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान (राजस्थान) द्रोणाचार्य व महात्मा फुले पुरस्कार (मुंबई)शहीद मंगल पांडे सम्मान (ठाणे)जैसे सैकड़ों पुरस्कार एवं सम्मान मिल चुके हैं।

यह उनके प्रखर योग्यता का प्रमाण है। जिसका श्रेय वे शिक्षकों एवं छात्रों को देते हैं। उनके द्वारा कई शैक्षणिक एवं सामाजिक लेख समाचार पत्रों तथा साप्ताहिक एवं मासिक पत्र पत्रिकाओ में आज भी प्रकाशित हो रहे हैं। उनके द्वारा ‘हमारे प्रेरणा स्रोत’ पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। आशीष प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कक्षा पांचवी से आठवीं तक स्वाध्याय पुस्तिका तथा दो मार्गदर्शक पुस्तिका का लेखन कार्य उन्होंने सफलता पूर्ण ढंग से किया।

उन्हें आसपास के अनेकों राज्यों से राज्य स्तरीय एवं राष्ट्रीय पुरस्कार से प्रतिवर्ष सम्मानित किया जाता रहा है। जिसे देखकर एवं सुनकर सभी शिक्षक- शिक्षिका एवं पदाधिकारी अपने आपको गौरवाविंत महसूस करते रहे हैं ।वे छात्रों के समक्ष सदैव एक आदर्श प्रस्तुत करते थे। उन्हें विभिन्न प्रतियोगिताओं में जब अव्वल स्थान मिलता था उसे देख एंव‌ सुनकर
उनके छात्र भी उसी पथ पर बड़े निर्भयता से चलने का प्रयास करते थे और उन्हें भी उनके मार्गदर्शन में सफलता मिलती रही है। मानो उन्होंने यह संदेश दिया था-

चलता रहूंगा पथ पर, चलने में माहिर बन जाऊंगा,
या तो मंजिल मिल जाएगी या अच्छा मुसाफ़िर बन जाऊंगा

ठाणे महानगरपालिका द्वारा आयोजित सभी कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति हिंदी माध्यम का नेतृत्व करती नजर आती रही।उनका नम्रता पूर्ण व्यवहार तथा छात्रों को सभी क्षेत्रों में अग्रणी स्थान दिलाने के लिए किया जाने वाले परिश्रम एवं प्रयास के सभी अधिकारी वर्ग तथा सहयोगी शिक्षक कायल हैं।वे सभी के प्रिय है ।

जिसमें मुंबई की सर्वश्रेष्ठ नगरसेविका सुनीता यादव एवं समाज सेवी एवं राजनेता रामनगीना यादव, डॉ.बाबूलाल सिंह और सभी के दिलों पर राज करने वाले सदैव सक्रिय नगर सेवक मनोज शिंदे, नगर सेवक श्री गुरुमुख सिंह, नगरसेवक माणिक पाटिल, शिक्षण समिति सदस्य सौ. मनीषा सचिन काबले, पूर्व नगरसेवक मदन कदम, पूर्व शिक्षण मंडल सदस्य व परिवहन समिती सभापती देवीदास चालके, शिक्षण मंडल अध्यक्ष विलास ठुसे तथा पूर्व शिक्षणाधिकारी, शिक्षण आयुक्त मनीष जोशी, बृहन्मुंबई महानगर पालिका के पूर्व विभाग निरीक्षक बंशीधर यादव, गटाधिकारी सौ. शरयू पालंदे, सौ.लीना सहस्त्रबुद्धे,सौ. मंगला भोईर,गटाधिकारी सौ. संगीता बामणे, कुंबले सर, गटप्रमुख राजेन्द्र परदेसी इत्यादि मान्यवरों द्वारा सम्मानित एवं आपकी प्रशंसा इस बात का प्रमाण है कि विद्यार्थियों के लिए समर्पित ठाणे महापालिका का नाम उज्जवल करने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। उनके प्रशासनिक अधिकारियों, पालकों, बालकों एवं शिक्षक बंधुओं से मधुर संबंध रहे हैं।

हिंदी माध्यम के साथ ही साथ मराठी, उर्दू, गुजराती ,अंग्रेजी माध्यम के शिक्षक- शिक्षिका भी उनके द्वारा किए गए कार्यो की भूरी भूरी प्रशंसा करते रहते हैं। उनके सभी के साथ मधुर एवं विनम्रता पूर्ण संबंध ‘विद्या ददाति विनमय’ को सार्थक सिद्ध करती है। हमारे जानकारी में ठाणे मनपा शिक्षण विभाग का कोई ऐसा शैक्षणिक कार्य नहीं रहा जिसमें उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए अपनी अमिट छाप न छोड़ी हो।

उन्होंने अध्यापन कार्य करते हुए पारिवारिक जिम्मेदारी भी बाखूबी निभाने का प्रयत्न किया है ।माता -पिता की सेवा करने का उनको सौभाग्य प्राप्त हुआ है।उनके दो पुत्रों में बड़ा पुत्र राधेश्याम यादव एम .ए., डीएड .और बी.एड., नालासोपारा के पुरुषोत्तम विद्यालय में शिक्षक पद पर कार्यरत हैं तथा पुत्रवधू श्रीमती पूजा यादव एम.कॉम., बी.एड. तथा छोटा पुत्र कैलाश यादव इंजीनियर है।

उनके कर्मक्षेत्र के सफलता पूर्ण समापन में उनके माता-पिता तथा धर्मपत्नी श्रीमती सुमन यादव और आपके कुछ करीबी मित्रों में अनिरूद्ध पांडे, विनोद दुबे, शिक्षाविद् चंद्रवीर बंशीधर यादव, शिक्षक सेना मुंबई उपाध्यक्ष मनीराम यादव, डॉ.आर.एम.पाल, दयाशंकर पाल, सुरेंद्र मिश्र, प्रधानाध्यापक विनोद पासी, डॉ.विजय यादव, बृजेश यादव, दीनानाथ यादव के सहयोग को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

उनके कार्य की शैली, स्वतंत्र विचार, सादगी, मार्गदर्शक लेख, सूत्रसंचालन हिंदी भाषा पर अच्छी पकड़ शरीर में स्पंदन पैदा कर देती है । वे सचमुच छात्रों तथा शिक्षकों के लिए बने रहे। उन्होंने अमूल्य योगदान शिक्षा क्षेत्र को दिया है। शिक्षा जगत के वे अमिट सितारे हैं।

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