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विश्व एड्स दिवस : एड्स की जागरूकता ही बचाव- लाल बिहारी लाल

लगातार थकान, रात को पसीना आना, लगातार डायरिया, जीभ-मुंह पर सफेद धब्बे, सुखी खांसी, लगातार बुखार रहना आदी पर एड्स की संभावना हो सकती हैं।

नई दिल्ली। लगभग 200-300 साल पहले इस दुनिया में मानवों में एड्स का नामोनिशान तक नही था। यह सिर्फ अफ्रीकी महादेश में पाए जाने वाले एक विशेष प्रजाति के बंदर में पाया जाता था । इसे कुदरत के अनमोल करिश्मा ही कहे कि उनके जीवन पर इसका कोई प्रभाव नही पडता था। वे सामान्य जीवन जी रहे थे।

ऐसी मान्यता है कि सबसे पहले एक अफ्रीकी युवती इस बंदर से अप्राकृतिक यौन संबंध स्थापित की और वह एड्स का शिकार हो गई क्योकि अफ्रीका में सेक्स कुछ खुला है, फिर उसने अन्य कईयों से यौन संबंध बनायी और कईयों ने कईयों से इस तरह एक चैन चला और अफ्रीका महादेश से शुरु हुआ यह #एड्स की बीमारी आज पूरी दुनिया को अपने आगोश में ले चुकी है। इस रोग को पहली बार 1981 में मान्यता दी गई और 27 जुलाई 1982 को एड्स के रुप में जाना गया। 2007 में ह्वाइट हाउस ने प्रतीक के रुप में रेड रिबन को रखा और यही रेड रिबन आज इस एड्स की पहचान बन गया है।

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आज पूरी दुनिया में 40 मिलियन के आसपास एच.आई.बी.पाँजिटीव है इनमें से 25 मिलियन तो डिटेक्ट हो चुके हैं जिसमें सिर्फ अमेरिका में ही 1 मिलियन इस रोग से प्रभावित हैं। हाल ही में जारी संयुक्त राष्ट्रसंघ की ताजा रिपोरट के अनुसार एच.आई.वी. से प्रतिदिन 6,800 लोग संक्रमित हो रहें हैं तथा कम से कम 5,700 लोग एड्स के कारण मौत को गले लगा रहे। अर्थात विश्व में प्रति मिनट एड्स से लगभग 25 लोग काल को गाल में समा जाते है। संयुक्त राष्ट्र संघ के ताजा आंकड़े के हिसाब से 36.9 मिलीयन से अधिक एड्स से ग्रसित है। 21.7 मिलीयन से ज्यादा एंटी रेटेरोवायरल दवाई ले रहे है औऱ 2017 में 1.8 मिलीयन इसके शिकार हुए थे।

वही भारत की बात करें तो 2017 में 2.1 मिलियन एड्स संक्रमित थे। 88,000 नये मरीज बढ़े वही 69,000 की मौत हुई और 56 प्रतिशत ब्यस्क रिट्रोवायरल दवा ले रहे थे। अपने देश में 1986 में पहला केस मद्रास में आया था। भारत सरकार ने ऱाष्ट्रीय एड्स कंट्रोल आर्गेनाजेशन (#नाको) बनाया है और 2024 तक भारत को इस पर काबू करने का लक्ष्य है। भरत में इसके रफ्तार को #काबू में कर लिया गया है। अपने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी एड्स पैर पसार चुका है। 2018 में 22,000 मरीज पंजीकृत थे वही आज 1,65,000 से ज्यादा केस हो चुके है। पिछले साल तक 36,924 पंजीकृत थे और 20,994 का इलाज चल रहा है।

भारत में कुछ मशहूर रेड लाइट एरिया–मुम्बई,सोना गाछी (कोलकाता), बनारस, चतुर्भुज स्थान (मुज्जफरपुर), मेरठ एवं सहारनपुर आदि है। उनमें कुछ साल पहले तक तो सबसे ज्यादा सेक्स वर्कर मुम्बई में इस एड्स से प्रभावित थे पर आज एड्स से सबसे ज्यादा प्रभावित सेक्स कर्मी लुधियाना(पंजाब) में है और राज्यो की बात करे तो सर्वाधिक महाराष्ट्र में है। इसके बाद दूसरे स्थान पर आंध्र प्रदेश है। इस बीमारी के फैलने का मुख्य कारण (80-85 प्रतिशत) असुरक्षित #यौन_संबंध के कारण (तरल पदार्थ के रुप में बीर्य) – ब्यभिचारियों, बेश्याओं, वेश्यागामियों एंव होमोसेक्सुअल है।

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इसके अलावे संक्रमित सुई के इस्तेमाल किसी अन्य के साथ प्रयोग करने से,संक्रमित रक्त चढाने से तथा बच्चों में मां के जन्म के समय 20 प्रतिशत का जोखिम और स्तनपान के समय 35 प्रतिशत का जोखिम रहता है एड्स के फैलने का। इस बीमारी के चपेट में आने पर एम्यूनी डिफेसियेंसी(रोग प्रतिरोधक क्षमता) कम हो जाती है।जिससे मानव काल के ग्रास में बहुत तेजी से बढ़ता है और अपने साथी को भी इस चपेट मे ले लेता है। अतः जरुरी है कि आप अपने साथी से यौन संबंध बनाने के समय सुरक्षित होने के लिए कंडोम का प्रयोग अवश्य करें। सन 1981 में इसके खोज के बाद अभी तक 30 करोड से ज्यादा लोग काल के गाल में पूरी दुनिया में समा चुके हैं।

      लाल बिहारी लाल

इस बीमारी को फैलने में भारत के ग्रामिण इलाके में गरीबी रेखा से नीचे, अशिक्षा, रुढीवादिता, महँगाई और बढती खाद्यानों के दामों के कारण पापी पेट के लिए इस कृत(पाप) को करने पर उतारु होना पडता है। इससे बचने के लिए सुरक्षा कवच के रुप में कंडोम का उपयोग एवं साथी के साथ ही यौन संबंध बनायें रखना ही सर्वोत्म उपाय है। इसके साथ ही अपने शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आयुर्वेद पध्दति अपनाना चाहिये।

जिसमें गेंहू के ज्वारे, गिलोय, तुलसी के पते, बेल के फल का रस अपना के इससे लड़ा जा सकता है। इसके साथ ही साथ ही कुछ शारीरीक व्यायाम-साइकिल चलाना, तैराकी करना, पैदल चलना, एरोबिक करने से भी इसे कम करने में मदद मिलेगी। #होमियोपैथी में भी एमयुनी बढ़ाने की कई दवाये है। अमेरिका में इसके दवाई बनाने के लिए हुए कुछ परीक्षण में सफलता मिली है। बंदरो पर हुए टेस्ट में हमें कामयाबी मिली है। दुनिया में 186 देशो से मिले आकडो पर आधारित एचआईवी/एड्स ग्लोबल रिर्पोट-2012 के मुताबिक भारत में 2001 से 2011 के मुकावले नए मरीजो की संख्या में 25 प्रतिशत की कमी आई है। 40-55 प्रतिशत मरीजो को एंटी रेटेरोवायरल दवायें उपलब्ध है। लेकिन अभी भी विश्व में इसका खतरा टला नहीं है। बर्ष 2011 में 20.5 करोड लोग इसके चपेट मे आयें हैं। जबकि 50 प्रतिशत की कमी आई है। रिर्पोट के अनुसार 2005 से 2011 के बीच पूरी दुनिया में 24 प्रतिशत कम मौत दर्ज की गई है। यह अच्छी बात है पर अभी भी इसके लिए जागरुकता की सख्त जरुरत है। इस संदर्भ में सबसे पहले 1977 में ही वैज्ञानिकों ने इसके प्रति सचेत हो गये थे औऱ विश्व भर के 200 से ज्यादा वैज्ञानिकों का एक सम्मेलन

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