• भगवान का स्मरण एवं सत्य का अनुसरण तथा गुरु का वंदन जीवन में सुख शान्ति और समृद्धि लाने का मंत्र
• विचारो की भिन्नता के बाद भी रहनी चाहिए परिवार में एकता
•गुरु ही दिखता है ईश्वर के बताए हुए मार्ग पर चलने की राह
लखनऊ। पूर्व उपमुख्यमंत्री डा दिनेश शर्मा ने कहा कि गुरु की आराधना ही ईश्वर के सानिध्य का मार्ग प्रशस्त करती है। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर यहां उपस्थित लोगों ने आज केवल गुरु की नहीं बल्कि ईश्वर की वन्दना भी की है जो उनके घरों में सुख समृद्धि और शान्ति लेकर आएगी।
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गुरु पूर्णिमा के अवसर पर ओम नम: शिवाय आश्रम में आयोजित गुरु पूजन कार्यक्रम में हजारों शिव भक्तों को सम्बोधित करते हुए डा शर्मा ने श्रावण माह को भगवान शंकर की आराधना का माह बताते हुए कहा कि भगवान विष्णु जब शयन के लिए चले जाते हैं तब भगवान शंकर की आराधना पूरे विश्व में मानव का कल्याण करती है।
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उन्होंने कहा कि आज का दिन उस गुरु के स्मरण का दिन है जो जीवन में इंसान बनने का पाठ पढाता है। यह गुरु ही है जो ईश्वर के बताए हुए मार्ग पर चलने की राह दिखाता है। भगवान राम ने भी बजरंगी बली को आशीर्वाद देते हुए कहा था कि जहां सत्य तथा धर्म का अनुसरण हो और ईश्वर की भक्ति हो वहां पर बजरंग बली मेरा प्रतिरूप बनकर इस मानव जाति के कल्याण के लिए प्रकट हों। यहां पर उपस्थित लोगों को बजरंग बली का आशीर्वाद जरूर मिल रहा होगा क्योंकि वे यहां गुरु की आराधना के साथ ईश्वर की आराधना करते हुए ओम नम: शिवाय का जाप भी कर रहे हैं।
डा शर्मा ने कहा कि भगवान का स्मरण एवं सत्य का अनुसरण तथा गुरु का वंदन ऐसा मंत्र है जो जीवन में सुख शान्ति और समृद्धि लाता है। उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति का जब जन्म होता है तो वह रोते हुए जन्म लेता है और उसके बाद बडा होते समय भी वह अनके कारणों से दुखी रहता है तथा जब वह संसार छोडता है तब भी लोग उसे रोते हुए ही विदा करते हैं। जन्म से लेकर संसार को छोडने के बीच के समय में ईश्वर और गुरु की वंदना का समय व्यक्ति को प्रसन्नता का भाव देता है। यहां पर उपस्थित लोग आज उस आनन्द के क्षण को जी रहे हैं।
उन्होंने उपस्थित लोगों को शिव परिवार के सदस्यों की सवारी का उदाहरण देते हुए कहा कि एक दूसरे का दुश्मन होने के बावजूद आपस में सामंजस्य बनाकर एक साथ में रहते हैं। उसी प्रकार विचारो की भिन्नता के बाद भी परिवार में एकता रहनी चाहिए। भगवान शिव का आज श्रावण मास में लोगों के लिए संदेश यही है कि आपस में सामंजस्य बनाकर रहने से बडा कोई दूसरा सुख नहीं है।