लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण की 13 सीटों पर भी सत्तापक्ष व विपक्ष के सामने बढ़त बनाने की चुनौती है। पिछले चुनाव में इन 13 सीटों में सत्ता पक्ष के खाते में 11 तो विपक्ष को मात्र दो ही सीटें मिली थीं। ऐसे में सत्ता पक्ष जहां सभी 13 सीटें जीतने की जुगत में लगा है, तो विपक्ष अधिक सीटें जीतने के लिए जातीय गोलबंदी करने में जुटा है। ऐसे में इस चरण में भी बढ़त बनाने को लेकर पक्ष और विपक्ष एक दूसरे को कांटे की टक्कर देने की तैयारी में हैं।
इसी चरण में में पीएम मोदी की वाराणसी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जिले गोरखपुर जैसी सीटों पर भी चुनाव होना है। पिछले चुनाव के परिणामों पर गौर करें तो भाजपा से आगे निकलने के लिए विपक्ष को कुल पड़ने वाले मतों मे कम से कम 15 प्रतिशत अधिक वोट हासिल करना होगा। हालांकि, यह कर पाना बहुत आसान नहीं है, क्योंकि इस चरण में भाजपा के साथ जातीय समीकरण साधने वाले वह तीन दल भी साथ खड़े हैं। राजभर, चौहान और गैर यादव ओबीसी पर प्रभाव रखते हैं।
बसपा बन सकती है खतरा
बीते चुनाव में भाजपा के बाद बसपा ने सबसे ज्यादा छह सीटें हासिल की थीं। हालिया चुनाव में भी बसपा ने इन सीटों पर टिकट वितरण में सोशल इंजीनियरिंग का इस्तेमाल तो किया है, लेकिन मुस्लिमों पर ज्यादा भरोसा जताते हुए विरोधी दलों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। छठे और सातवें चरण की 27 में से 8 सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं।
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इसके अलावा जौनपुर और बलिया में यादव प्रत्याशी को मौका दिया है। जौनपुर में बसपा के वर्तमान सांसद श्याम सिंह यादव दोबारा चुनाव लड़ रहे हैं। सलेमपुर सीट पर बसपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर मैदान में हैं। इसके अलावा दोनों चरणों की चार सुरक्षित सीटों पर भी बसपा का पलड़ा भारी रह सकता है। प्रतापगढ़ और मिर्जापुर में ब्राह्मण प्रत्याशी को टिकट दिया गया है।
पिछले चुनाव में भाजपा से विपक्ष को कम मिले थे वोट
2019 के लोकसभा चुनाव में इन 13 सीटों पर पड़े कुल मतों में भाजपा को औसतन 52.11 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि विपक्ष को 37.43 फीसदी ही वोट हासिल हुए थे। वह भी तब जब सपा का बसपा से गठबंधन था। इस बार बसपा अलग है और सपा का कांग्रेस से गठबंधन है। ऐसे में इस बार भाजपा से अधिक सीट जीतने के लिए इंडी गठबंधन के सामने पिछली बार की तुलना में 15 फीसदी से अधिक वोट हासिल करने की चुनौती है।